Prakeerna Yoga in Astrology | प्रकीर्ण योग ज्योतिष में महत्व और फलादेश

Sooraj Krishna Shastri
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Prakeerna Yoga in Astrology | प्रकीर्ण योग ज्योतिष में महत्व और फलादेश

"प्रकीर्ण योग" ज्योतिष शास्त्र के गूढ़ एवं विविध भावों के फलादेश का सार प्रस्तुत करता है। प्रकीर्ण योग (Prakeerna Yoga) का ज्योतिषीय महत्व जानिए। इसमें पञ्चम, सप्तम, द्वितीय, दशम और द्वादश भाव से संतान, पत्नी, पिता, धन और यात्राओं का विस्तृत फलादेश मिलता है।"

प्रकीर्ण योग (Prakeerna Yoga) – विस्तृत विवेचन


(1) श्लोक

पुत्राद्देवमहीपपुत्रपितृधी पुण्यानि सञ्चिन्तयेत्,
यात्रामस्तसुतस्वकर्मभवनैर्दूराटनं रिफतः ।

व्याख्या

  • पञ्चम भाव से देवता, पृथ्वी का स्वामीत्व (राज्य), पुत्र, पिता, बुद्धि और पुण्य का विचार करना चाहिए।
  • सप्तम, पञ्चम, द्वितीय और दशम भावों से यात्रा सम्बन्धी फलादेश किया जाता है।
  • व्यय भाव (१२वाँ घर) से विदेश या दूरदेश भ्रमण का विचार करना चाहिए।

भावार्थ
👉 ज्योतिष में पञ्चम भाव को धर्म, विद्या, बुद्धि, संतान और पुण्यकर्म का प्रतिनिधि माना गया है।
👉 यात्रा सम्बन्धी विचार मुख्यतः सप्तम (विदेश), द्वितीय (दूर प्रदेश), दशम (कर्मजन्य) और पञ्चम (धार्मिक यात्रा) से किया जाता है।
👉 व्यय भाव (१२वाँ) हमेशा दूरदेश, परदेश या विदेश भ्रमण से सम्बन्धित है।

Prakeerna Yoga in Astrology | प्रकीर्ण योग ज्योतिष में महत्व और फलादेश
Prakeerna Yoga in Astrology | प्रकीर्ण योग ज्योतिष में महत्व और फलादेश



(2) श्लोक

लग्नाद्वन्धुदिनेशतः पितृमुखं जीवात्मजस्थानतः,
पुत्रप्राप्तिमनंग वित्तपसितैः स्त्रीसम्पदश्चिन्तयेत् ॥

व्याख्या

  • लग्न से चतुर्थ भाव देख कर मातृसुख, गृह आदि का विचार करें।
  • सूर्य से पिता-सुख का विचार करें।
  • गुरु और पञ्चम भाव से पुत्र प्राप्ति का विचार करें।
  • सप्तम और द्वितीय भाव तथा शुक्र से स्त्री और स्त्री-संपत्ति का विचार करें।

भावार्थ
👉 चतुर्थ भाव मातृसुख, गृह-भूमि, स्थायी संपत्ति और सुख का कारक है।
👉 सूर्य सदैव पिता और आत्मा का द्योतक है।
👉 गुरु एवं पञ्चम भाव संतान-प्राप्ति के निर्णायक माने जाते हैं।
👉 सप्तम, द्वितीय भाव और शुक्र से स्त्री-धन, पत्नी का सौंदर्य, दाम्पत्य सुख और स्त्री से संबंधित फल देखे जाते हैं।


(3) श्लोक

लग्नात्पुत्रकलत्रभे शुभपतिप्राप्तेऽथवालोकिते
चन्द्राद्वा यदि सम्पदस्ति हि तयोज्ञेयोऽम्यथाऽसंभवः ।

व्याख्या

  • यदि लग्न से पुत्र और पत्नी स्थान (पञ्चम और सप्तम भाव) पर शुभग्रह हो अथवा उन्हें देखता हो,
  • अथवा चन्द्रमा से भी वही स्थिति हो, तो पुत्र एवं स्त्री संबंधी सुख और संपत्ति निश्चित मानी जाती है।
  • अन्यथा सम्भावना बहुत कम होती है।

भावार्थ
👉 ज्योतिषीय निर्णय में लग्न और चन्द्र लग्न दोनों का विचार करना अनिवार्य है।
👉 यदि दोनों से पञ्चम (पुत्र भाव) और सप्तम (पत्नी भाव) शुभ ग्रहों से प्रभावित हों, तो जीवन में पुत्र और पत्नी का सुख एवं संपत्ति निश्चित मिलती है।
👉 यदि शुभ ग्रह न हों या पापग्रह प्रभावी हों तो संतान या पत्नी सुख में बाधा होती है।


(4) श्लोक

पान्थानोदयगे रवौ रविसुते मीनस्थिते दारहा
पुत्रस्थानगतश्च पुत्रमरणं पुत्रोऽवनेर्यच्छति ।॥

व्याख्या

  • यदि सूर्य उदय लग्न में हो और शनि मीन राशि में स्थित हो, साथ ही पञ्चम भाव में पापग्रह बैठा हो,
  • तो पुत्र का नाश अथवा पुत्र के कारण कष्ट की सम्भावना रहती है।

भावार्थ
👉 यहाँ सूर्य-शनि स्थिति पुत्र सुख में बाधा का सूचक मानी गई है।
👉 पञ्चम भाव में पापग्रह (शनि, राहु, केतु, मंगल) संतान को पीड़ित कर सकते हैं।
👉 ऐसी स्थिति होने पर व्यक्ति को संतान हानि या संतान-संबंधी दुःख हो सकता है।


(5) सिद्धान्त (संक्षेप में)

  1. पञ्चम भाव – पुत्र, विद्या, बुद्धि, पुण्यकर्म, राज्य संबंधी सुख।
  2. सप्तम भाव – दाम्पत्य सुख, पत्नी, विदेश यात्रा, व्यापार।
  3. द्वितीय भाव – परिवार, वाणी, धन, यात्राएँ।
  4. दशम भाव – कर्म, पेशा, यात्राएँ।
  5. व्यय भाव (१२वाँ) – विदेश भ्रमण, व्यय, त्याग।
  6. चतुर्थ भाव – मातृसुख, गृह, वाहन, स्थायी संपत्ति।
  7. सूर्य – पिता और आत्मबल।
  8. गुरु एवं पञ्चम – संतान प्राप्ति।
  9. शुक्र, सप्तम और द्वितीय भाव – स्त्री सुख एवं संपत्ति।


प्रकीर्ण योग – सारणी( Table of Prakirna Yoga)

भाव / ग्रह विचार का विषय
पञ्चम भाव देवता, पुत्र, पिता, बुद्धि, धर्म, पुण्य, विद्या, राज्य-सुख
सप्तम भाव पत्नी, विवाह, दाम्पत्य सुख, विदेश यात्रा, व्यापार
द्वितीय भाव परिवार, धन, वाणी, यात्राएँ, स्त्री-संपत्ति
दशम भाव कर्म, व्यवसाय, यात्राएँ, राजकार्य
व्यय भाव (१२वाँ) विदेश / दूरदेश भ्रमण, व्यय, त्याग
चतुर्थ भाव मातृसुख, गृह, भूमि, स्थायी संपत्ति, वाहन
सूर्य पिता का सुख, आत्मबल
गुरु एवं पञ्चम भाव पुत्र प्राप्ति, संतान का सुख
शुक्र, सप्तम एवं द्वितीय भाव स्त्री, पत्नी-सुख, स्त्री से प्राप्त संपत्ति
लग्न एवं चन्द्र लग्न यदि पञ्चम और सप्तम शुभग्रहों से प्रभावित हों तो पुत्र और पत्नी-सुख निश्चित, अन्यथा बाधा
विशेष योग सूर्य उदयलग्न में, शनि मीन राशि में तथा पञ्चम में पापग्रह → संतान हानि या पुत्रजन्य कष्ट

🙏 इस प्रकार प्रकीर्ण योग विविध भावों से पुत्र, पत्नी, पिता, माता, पुण्य, धन, यात्रा और संतान-सुख आदि का सम्यक विचार प्रस्तुत करता है।

"Know the significance of Prakeerna Yoga in Astrology (ज्योतिष शास्त्र) – Learn how 5th, 7th, 2nd, 10th & 12th houses influence progeny, wife, father, wealth, travels and fortune in horoscope."

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