सुदर्शन चक्र और काशी दहन कथा | Sudarshan Chakra Kashi Story – वाराणसी की उत्पत्ति

Sooraj Krishna Shastri
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सुदर्शन चक्र और काशी दहन कथा | Sudarshan Chakra Kashi Story – वाराणसी की उत्पत्ति

 जानिए पौराणिक कथा जब भगवान श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र ने काशी को भस्म कर दिया और कालांतर में वरुणा और असि नदियों के मध्य पुनः बसने पर इस नगर का नाम वाराणसी पड़ा। Sudarshan Chakra Kashi Story in Hindi.


सुदर्शन चक्र द्वारा काशी का दहन और वाराणसी की पुनः स्थापना

१. जरासंध का उदय और उसकी शक्ति

मगध का राजा जरासंध अत्यंत बलशाली, वीर और क्रूर था। उसके पास अपार सैनिक बल, हाथी, रथ, घोड़े और अनेक दिव्य अस्त्र-शस्त्र थे। उसकी शक्ति के कारण आसपास के सभी राजाओं को उससे मित्रता रखनी पड़ती थी।

  • जरासंध की दो पुत्रियाँ – अस्ति और प्राप्ति – मथुरा के अत्याचारी राजा कंस के साथ परिणय सूत्र में बंधी थीं।
  • जब श्रीकृष्ण ने प्रजा को कंस के अत्याचारों से मुक्त करने के लिए उसका वध किया, तो यह समाचार सुनकर जरासंध क्रोधाग्नि में जल उठा।

२. मथुरा पर आक्रमण

जरासंध ने प्रतिशोधवश बार-बार मथुरा पर आक्रमण किया।

  • किंतु प्रत्येक युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण और बलराम ने उसे पराजित कर जीवित छोड़ दिया।
  • बार-बार हारने पर भी जरासंध का क्रोध शांत न हुआ।
  • एक अवसर पर उसने कलिंगराज पौंड्रक और काशीराज के साथ मिलकर मथुरा पर आक्रमण किया।

👉 परिणामस्वरूप –

  • जरासंध भाग खड़ा हुआ,
  • पौंड्रक और काशीराज भगवान के हाथों वीरगति को प्राप्त हुए।
सुदर्शन चक्र और काशी दहन कथा | Sudarshan Chakra Kashi Story – वाराणसी की उत्पत्ति
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३. काशीराज का तप और शिव वरदान

काशीराज की मृत्यु के बाद उसका पुत्र राजा बना। वह पिता की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए उद्यत हुआ।

  • उसने यह समझ लिया कि सीधे युद्ध में श्रीकृष्ण को हराना असंभव है
  • इसलिए उसने घोर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया।
  • तप से प्रसन्न होकर शिव ने वरदान माँगने को कहा।

काशीराज ने केवल एक ही वर माँगा –

"मुझे ऐसा साधन दीजिए जिससे मैं श्रीकृष्ण का वध कर सकूँ।"

भगवान शिव ने बहुत समझाया, परंतु वह अपनी जिद पर अडिग रहा। अंततः शिव ने मंत्रबल से एक भयंकर कृत्या (अत्यंत भयावह, दाहक और विनाशकारी शक्ति) उत्पन्न की।

शिव ने चेतावनी दी –

"वत्स! यह कृत्या जिस दिशा में जाएगी, उस दिशा का नगर या राज्य भस्म हो जाएगा।
किंतु ध्यान रहे – किसी ब्राह्मण भक्त पर इसका प्रयोग मत करना। यदि ऐसा किया, तो इसका प्रभाव निष्फल हो जाएगा।"

यह कहकर भगवान शिव अंतर्धान हो गए।


४. कृत्या का द्वारका गमन

इधर भगवान श्रीकृष्ण, कालयवन के वध के बाद मथुरा छोड़कर समुद्र तट पर द्वारका नगरी में निवास करने लगे थे।

  • काशीराज ने कृत्या को द्वारका भेजा, ताकि वह श्रीकृष्ण का वध कर सके।
  • किंतु श्रीकृष्ण ब्राह्मण भक्त थे। शिव की शर्त के कारण कृत्या उनका कुछ भी अनिष्ट न कर सकी।

५. सुदर्शन चक्र का प्रकोप

तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र कृत्या की ओर प्रवाहित किया।

  • सुदर्शन अग्नि की लपटों के समान भयंकर ज्वालाएँ उगलता हुआ उसकी ओर दौड़ा।
  • प्राण संकट देख कृत्या भयभीत होकर भाग खड़ी हुई और सीधे काशी की ओर भागी।
  • सुदर्शन ने उसका पीछा किया और काशी पहुँचकर पहले तो कृत्या को भस्म कर दिया।

परंतु चक्र का क्रोध शांत नहीं हुआ।

  • उसने सम्पूर्ण काशी नगरी को भस्मसात कर धूल में मिला दिया
  • महलों, मंदिरों, उपवनों, सब कुछ अग्नि में जलकर राख हो गया।

६. काशी का पुनर्निर्माण और नामकरण

कालांतर में, नगर का पुनः निर्माण हुआ।

  • यह नगर दो नदियों वरुणा और असि के मध्य बसा।
  • अतः इसका नाम पड़ा – वाराणसी
  • यही वाराणसी आगे चलकर सनातन धर्म का महान तीर्थ, मोक्षभूमि और अविनाशी नगर कहलाया।

७. घटना का दार्शनिक अर्थ

इस घटना का गहरा संदेश है –

  1. अहंकार और प्रतिशोध से प्रेरित होकर किया गया तप भी अंततः विनाशकारी सिद्ध होता है।
  2. ईश्वर के प्रति शुद्ध भक्ति ही सबसे बड़ी रक्षा है।
  3. सुदर्शन चक्र केवल दुष्टों का ही नाश करता है, वह धर्म की रक्षा का प्रतीक है।
  4. वाराणसी का नाश और पुनर्निर्माण यह बताता है कि यह नगर अनादि और शाश्वत है – भस्म होकर भी बार-बार पुनः जीवित होता है।

🌸 इस प्रकार सुदर्शन चक्र ने काशी को भस्म कर दिया, और बाद में यह नगर पुनः निर्मित होकर मोक्षनगरी वाराणसी के रूप में प्रसिद्ध हुआ।

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