प्रणाम के प्रकार | Types of Pranam in Hinduism | त्रिकोण, षट्कोण, अर्धचन्द्र, दण्डवत, अष्टांग

Sooraj Krishna Shastri
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प्रणाम के प्रकार | Types of Pranam in Hinduism | त्रिकोण, षट्कोण, अर्धचन्द्र, दण्डवत, अष्टांग

 प्रस्तुत विषय अत्यन्त रोचक और गूढ़ है। मैं इसे व्यवस्थित, विस्तारपूर्वक तथा बिन्दुवार रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ, ताकि “प्रणाम के प्रकार” का संपूर्ण विवेचन स्पष्ट और क्रमबद्ध रूप में सामने आ सके—

 हिन्दू धर्म में प्रणाम (Namaskar) के विभिन्न प्रकार – त्रिकोण प्रणाम, षट्कोण प्रणाम, अर्धचन्द्र प्रणाम, प्रदक्षिण प्रणाम, दण्डवत प्रणाम, अष्टांग प्रणाम और उग्र प्रणाम। इनके विधि, महत्व और सम्बद्ध देवताओं का संपूर्ण विवरण यहाँ पढ़ें।


🙏 प्रणाम के प्रकार (सात रूपों में विवेचना)

भारतीय संस्कृति में प्रणाम केवल शिष्टाचार ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और योगिक दृष्टि से भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण साधना है। प्रत्येक प्रकार का प्रणाम विशेष देवता अथवा साधना से सम्बद्ध होता है।

शास्त्रों में कहा गया है—

“त्रिकोणमथ षट्कोणमर्द्धचन्द्रं प्रदक्षिणम् ।
दण्डमष्टाङ्गमुग्रञ्च सप्तधा नतिलक्षणम् ॥”

अर्थात् – त्रिकोण, षट्कोण, अर्धचन्द्र, प्रदक्षिणा, दण्डवत्, अष्टांग और उग्र – ये सात प्रकार के प्रणाम हैं।

प्रणाम के प्रकार | Types of Pranam in Hinduism | त्रिकोण, षट्कोण, अर्धचन्द्र, दण्डवत, अष्टांग
प्रणाम के प्रकार | Types of Pranam in Hinduism | त्रिकोण, षट्कोण, अर्धचन्द्र, दण्डवत, अष्टांग



१. त्रिकोण प्रणाम

  • विधि :
    ईशान से अग्निकोण जाकर फिर पुनः ईशान तक आना, अथवा दक्षिण से वायव्य जाकर वहाँ से ईशान होते हुए पुनः दक्षिण लौटना – इससे त्रिकोण रूपी प्रणाम होता है।
  • विशेषता :
    यह प्रणाम त्रिकोणाकार गति से सम्पन्न होता है।
  • भेद :
    शिवलिंग की परिक्रमा त्रिकोण नहीं बल्कि अर्धचन्द्राकार कही जाती है।
    शास्त्र में उल्लेख है –
    “अर्धचन्द्रं महेशस्य पृष्ठतश्च समीरिता, शिवप्रदक्षिणे मन्त्री अर्द्धचन्द्रक्रमेण तु।”

२. षट्कोण प्रणाम

  • विधि :
    दक्षिण से वायव्य → वहाँ से ईशान → फिर दक्षिण → त्यागकर अग्निकोण → वहाँ से नैर्ऋत्य → वहाँ से उत्तर → और फिर पुनः अग्निकोण – इस प्रकार छह कोणों की गमन विधि से किया जाने वाला नमस्कार षट्कोण प्रणाम कहलाता है।
  • विशेषता :
    यह शिव और माता दुर्गा को अत्यन्त प्रिय माना गया है।

३. अर्धचन्द्र प्रणाम

  • विधि :
    दक्षिण से वायव्य जाकर और वहाँ से पुनः दक्षिण लौटकर अर्धचन्द्राकार गति से किया गया प्रणाम।
  • विशेष प्रयोग :
    शिवलिंग के पूजन में अर्धचन्द्र प्रणाम आवश्यक माना गया है।
  • लोक परम्परा :
    पूजा से पहले और बाद में शिवलिंग के सम्मुख प्रायः यही प्रणाम किया जाता है।

४. प्रदक्षिण प्रणाम

  • विधि :
    देवता या पूज्य वस्तु के चारों ओर वर्तुलाकार परिक्रमा करते हुए नमस्कार करना।
  • विशेषता :
    यह सरल, सर्वसुलभ और सर्वमान्य प्रणाम है।

५. दण्डवत प्रणाम

  • विधि :
    अपना आसन छोड़कर पीछे हटकर भूमि पर दण्डवत (सीधा) लेटकर किया गया प्रणाम।
  • विशेषता :
    इसमें सम्पूर्ण शरीर भूमि से स्पर्श करता है।
  • देवताओं हेतु :
    यह सभी देवों के लिए योग्य है।

६. अष्टांग प्रणाम

  • विधि :
    दण्डवत होकर हृदय, चिबुक, मुख, नासिका, ललाट, ब्रह्मरन्ध्र और दोनों कान – इन आठ अंगों को क्रमशः भूमि पर स्पर्श कराना।
  • विशेषता :
    इसे साष्टांग प्रणाम भी कहा जाता है।
  • निषेध :
    स्त्रियों के लिए अष्टांग प्रणाम वर्जित है।
  • भेद :
    कालिकापुराण और अन्य ग्रंथों में इसके विभिन्न प्रकार बताए गए हैं।

७. उग्र प्रणाम

  • विधि :
    वर्तुलाकार तीन प्रदक्षिणाएँ करके, और उसी समय ब्रह्मरन्ध्र को भूमि से स्पर्श कराना।
  • विशेषता :
    इसे उग्र नमस्कार कहा जाता है।
  • देवता :
    यह भगवान विष्णु की भक्ति और कृपा को शीघ्र प्राप्त कराने वाला है।

🌸 अन्य प्रणाम प्रचलन

१. पञ्चांग प्रणाम

  • इसमें पाँच अंग भूमि को स्पर्श करते हैं।
  • यह साधारण नमस्कार का रूप है।
  • उत्तरवर्ती ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है।

२. साष्टांग प्रणाम

  • अष्टांग प्रणाम का ही सर्वाधिक प्रसिद्ध रूप।
  • भक्तिपूर्वक पूर्ण शरीर को भूमि पर अर्पित करना।

📖 शास्त्रीय प्रमाण

महाभारत (उद्योग पर्व) –

“ऊर्ध्वं प्राणा ह्युतक्रामन्ति यून: स्थविर आयति।
प्रत्युत्थानाभिवादाभ्यां पुनस्तान् प्रतिपद्यते॥”

👉 अर्थ : जब कोई माननीय वृद्ध पुरुष निकट आता है, उस समय नवयुवक के प्राण ऊपर उठने लगते हैं। जब वह वृद्ध के स्वागत में खड़ा होता है और प्रणाम करता है, तब प्राण पुनः अपनी वास्तविक स्थिति को प्राप्त करते हैं।


🌺 प्रणाम के लाभ

  • माता-पिता, आचार्य, विद्वान और वृद्धजनों को उठकर प्रणाम करने से –
    दीर्घायु, विद्या, यश और बल की प्राप्ति होती है। "अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः। चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलम्।।"
  • मन के भीतर से संदेह, अहंकार और नकारात्मकता का नाश होता है।
  • यह केवल शिष्टाचार न होकर आध्यात्मिक ऊर्जा का आदान-प्रदान भी है।


📊 प्रणाम के प्रकार – चार्ट

क्रम प्रणाम का नाम विधि (कैसे किया जाता है) विशेषता सम्बद्ध देवता / प्रयोग
1 त्रिकोण प्रणाम ईशान → अग्निकोण → ईशान या दक्षिण → वायव्य → ईशान → दक्षिण त्रिकोणाकार गति से नमस्कार शिवलिंग पूजन में प्रयुक्त, परन्तु वास्तविक शिव-परिक्रमा अर्धचन्द्राकार है
2 षट्कोण प्रणाम दक्षिण → वायव्य → ईशान → दक्षिण → अग्नि → नैर्ऋत्य → उत्तर → अग्नि छह कोणों की गति से प्रणाम शिव व माता दुर्गा को प्रिय
3 अर्धचन्द्र प्रणाम दक्षिण → वायव्य → पुनः दक्षिण अर्धचन्द्राकार प्रणाम शिवलिंग पूजन में विशेष, पूजा से पहले और बाद में अनिवार्य
4 प्रदक्षिण प्रणाम देवता की वर्तुलाकार परिक्रमा सर्वसुलभ और सरल प्रणाम सभी देवताओं हेतु
5 दण्डवत प्रणाम आसन छोड़कर पीछे हटकर भूमि पर दण्डवत लेटना सम्पूर्ण शरीर भूमि से स्पर्श करता है सभी देवताओं हेतु
6 अष्टांग प्रणाम हृदय, चिबुक, मुख, नासिका, ललाट, ब्रह्मरन्ध्र, दोनों कान – भूमि स्पर्श सम्पूर्ण समर्पण पुरुषों हेतु; स्त्रियों के लिए वर्जित
7 उग्र प्रणाम तीन प्रदक्षिणाएँ करके ब्रह्मरन्ध्र को भूमि से स्पर्श कराना उग्र, गहन भक्ति का प्रतीक भगवान विष्णु की भक्ति हेतु
पञ्चांग प्रणाम पाँच अंग भूमि को स्पर्श करते हैं साधारण नमस्कार रूप सामान्य प्रयोग
साष्टांग प्रणाम सम्पूर्ण शरीर भूमि को अर्पित सर्वाधिक प्रसिद्ध रूप भक्तिपूर्ण समर्पण का प्रतीक

✨ निष्कर्ष

भारतीय परम्परा में प्रणाम की विविध पद्धतियाँ केवल औपचारिक क्रिया नहीं, बल्कि गहन आध्यात्मिक साधना हैं। प्रत्येक प्रणाम का विशिष्ट देवता, शक्ति और साधना से सम्बन्ध है।
प्रणाम करते समय भाव, श्रद्धा और नम्रता सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण हैं।

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