अथर्ववेद का रहस्यमय श्लोक “अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या” मानव शरीर को देवों की अयोध्या के रूप में वर्णित करता है। इस वेदवाक्य में कहा गया है कि शरीर में आठ चक्र (ऊर्जाकेंद्र) और नौ द्वार (इन्द्रिय मार्ग) हैं। इन चक्रों के माध्यम से प्राणशक्ति का प्रवाह होता है, और यही शरीर परमात्मा का निवास स्थान बनता है। जब मन, वाणी और कर्म शुद्ध होते हैं, तब यह शरीर ही अयोध्या पुरी बन जाता है जहाँ श्रीराम का वास होता है। जानिए इस श्लोक का गूढ़ अर्थ, योगिक और वैदिक दृष्टिकोण, तथा “हिरण्ययः कोशः” अर्थात आत्मा रूपी स्वर्णमय चेतना का रहस्य।
अष्टचक्रा नवद्वारा अयोध्या – Human Body as Divine Ayodhya | Atharva Veda Secret Explained
🌺 **अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या |
**अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या |
तस्यां हिरण्ययः कोशः स्वर्गो ज्योतिषावृतः ||**
(अथर्ववेद 10.2.31)
🔹 शाब्दिक अर्थ
- अष्टचक्रा — आठ चक्रों (ऊर्जाकेंद्रों) वाली,
- नवद्वारा — नौ द्वारों (इन्द्रियों) से युक्त,
- देवानाम् — देवताओं (दैवी शक्तियों) की,
- पुरी अयोध्या — वह अयोध्या पुरी है, जिसे कोई जीत नहीं सकता; जो अमर और पवित्र है।
- तस्याम् हिरण्ययः कोशः — उस अयोध्या में स्वर्णिम (तेजस्वी) कोष है,
- स्वर्गः ज्योतिषा आवृतः — जो परम प्रकाश (आध्यात्मिक ज्योति) से आच्छादित स्वर्ग के समान है।
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अष्टचक्रा नवद्वारा अयोध्या – Human Body as Divine Ayodhya | Atharva Veda Secret Explained |
🌿 भावार्थ
🔶 आठ चक्र (Aṣṭa Chakra) — शरीर की दैवी यंत्रणा
1️⃣ मूलाधार चक्र (Mūlādhāra Chakra)
- स्थान — रीढ़ की हड्डी के सबसे नीचे, गुदा के समीप।
- कार्य — यह स्थिरता, बल, और वीर्यशक्ति का केंद्र है।
- फल — इस चक्र के जागृत होने से व्यक्ति उर्ध्वरेता (ऊर्ध्वगामी शक्ति वाला) बनता है।
2️⃣ स्वाधिष्ठान चक्र (Svādhiṣṭhāna Chakra)
- स्थान — मूलाधार से चार अंगुल ऊपर।
- कार्य — भावनाओं, प्रेम, और अहिंसा का केंद्र।
- फल — रोग और थकावट दूर होती है; शरीर में सौम्यता और करुणा आती है।
3️⃣ मणिपूरक चक्र (Maṇipūraka Chakra)
- स्थान — नाभि के स्थान पर।
- कार्य — शरीर का संतुलन और पाचन नियंत्रण।
- फल — यह चक्र शरीर में संयम और अनुशासन की भावना उत्पन्न करता है।
4️⃣ सूर्य चक्र (Sūrya Chakra)
- स्थान — नाभि से ऊपर, हृदय की धड़कन के पीछे।
- कार्य — समस्त आंतरिक अवयवों का नियंत्रण; प्राणशक्ति का कोष यहीं स्थित है।
- विशेष — इस पर आघात से प्राण का नाश हो सकता है; इसे “पेट का मस्तिष्क” भी कहा गया है।
5️⃣ अनाहत चक्र (Anāhata Chakra)
- स्थान — हृदय के मध्य।
- कार्य — प्रेम, भक्ति और करुणा का स्रोत।
- फल — बल, भक्ति और दिव्य प्रेम की भावना का जागरण।
6️⃣ विशुद्धि चक्र (Viśuddhi Chakra)
- स्थान — कण्ठ के मूल में।
- कार्य — वाणी और अभिव्यक्ति का केंद्र।
- फल — इस पर संयम से बाह्य जगत् की विस्मृति और आंतरिक साधना प्रारंभ होती है।
- लाभ — तारुण्य, उत्साह और स्फूर्ति बनी रहती है।
7️⃣ आज्ञा चक्र (Ājñā Chakra)
- स्थान — दोनों भ्रूमध्य (भवों के बीच)।
- कार्य — निर्णय, नियंत्रण, और आत्मचेतना का केंद्र।
- फल — व्यक्ति को यह अनुभव होता है कि शरीर का प्रत्येक कार्य आत्मा की आज्ञा से संचालित है।
8️⃣ सहस्रार चक्र (Sahasrāra Chakra)
- स्थान — मस्तिष्क के शीर्ष पर (तालु के ऊपर)।
- कार्य — समस्त शक्तियों और चेतना का मूल केंद्र।
- फल — आत्मसाक्षात्कार, ब्रह्मानंद की प्राप्ति।
🔷 नव द्वार (Nava Dvāra) — शरीर के द्वार
शरीर को “नवद्वारा पुरी” कहा गया है क्योंकि इसमें नौ द्वार हैं —
- दो आँखें 👁️👁️
- दो कान 👂👂
- दो नासाछिद्र 👃
- एक मुख 👄
- एक मलद्वार
- एक मूत्रद्वार
🌞 दार्शनिक व्याख्या
यह वेदवाक्य हमें बताता है कि —
“अयोध्या” कोई बाहरी नगरी मात्र नहीं, बल्कि यह देह रूपी चेतन नगरी है, जहाँ देवतुल्य ऊर्जाएँ निवास करती हैं।
🌺 सार
- “अष्टचक्रा नवद्वारा अयोध्या” — मानव शरीर स्वयं ईश्वर की नगरी है।
- “हिरण्ययः कोशः” — आत्मा, चेतना, परम तेज का प्रतीक है।
- “स्वर्गो ज्योतिषा आवृतः” — जब भीतर का प्रकाश प्रकट होता है, तभी वास्तविक स्वर्ग का अनुभव होता है।
🌼 आध्यात्मिक संदेश
अपने शरीर, विचार और कर्म को पवित्र रखिए।इस अयोध्या पुरी में श्रीराम स्वयं विराजमान होंगे।योग, प्राणायाम और ध्यान के माध्यम से इन चक्रों को जाग्रत कीजिए —तब ही आप उस “हिरण्ययः कोशः” — दिव्य स्वर्णिम चेतना — को अनुभव कर पाएंगे।
क्या आप जानते हैं? वेदों में कहा गया है कि हमारा शरीर ही देवताओं की अयोध्या है — आठ चक्रों और नौ द्वारों से युक्त यह पुरी स्वयं ईश्वर का निवास स्थान है। जानिए अथर्ववेद का यह दिव्य रहस्य और योगिक विज्ञान का गूढ़ अर्थ।