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Guru Shishya Relationship: संस्कृत श्लोक "यथा खनन् खनित्रेण नरो वार्यधिगच्छति" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
1. श्लोक
2. English Transliteration
3. हिन्दी अनुवाद
जैसे मनुष्य कुदाल से निरन्तर धरती खोदकर जल प्राप्त करता है, उसी प्रकार गुरु की सेवा करने वाला शिष्य गुरु के पास स्थित विद्या को प्राप्त करता है।
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| Guru Shishya Relationship: संस्कृत श्लोक "यथा खनन् खनित्रेण नरो वार्यधिगच्छति" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण |
4. शब्दार्थ
- यथा = जैसे
- खनन् = खोदते हुए
- खनित्रेण = कुदाल द्वारा
- नरः = मनुष्य
- वारि = जल
- अधिगच्छति = प्राप्त करता है
- तथा = वैसे ही
- गुरु-गताम् = गुरु में निहित, गुरु के पास स्थित
- विद्याम् = ज्ञान, शिक्षा
- शुश्रूषुः = गुरु की आज्ञा और सेवा करने वाला शिष्य
- अधिगच्छति = प्राप्त करता है
5. व्याकरणात्मक विश्लेषण
- खनन् (khanan) – वर्तमान कृदन्त (Present Participle) रूप; "खन्" धातु से, अर्थ: "खोदते हुए"।
- खनित्रेण (khanitreṇa) – तृतीया विभक्ति, एकवचन; "खनित्र" (कुदाल) शब्द से।
- नरः (naraḥ) – प्रथमा विभक्ति, एकवचन; कर्ता।
- वारि (vāri) – द्वितीया विभक्ति, एकवचन; कर्म।
- अधिगच्छति (adhigacchati) – वर्तमानकाल, प्रथमपुरुष, एकवचन; "गम्" धातु का उपसर्गयुक्त रूप (अधि + गम् = प्राप्त करना)।
- तथा (tathā) – अव्यय; "वैसे ही"।
- गुरुगताम् (gurugatām) – "गुरु" + "गताम्" (गत, प्राप्त, निहित); द्वितीया विभक्ति, एकवचन।
- विद्याम् (vidyām) – द्वितीया विभक्ति, एकवचन।
- शुश्रूषुः (śuśrūṣuḥ) – कर्ता रूप; इच्छाप्रत्यय "शुश्रूष" (सेवा करने की इच्छा रखने वाला)।
- अधिगच्छति (adhigacchati) – वही क्रिया (ज्ञान प्राप्त करता है)।
6. आधुनिक सन्दर्भ
यह श्लोक आज की शिक्षा व्यवस्था में भी अत्यंत प्रासंगिक है।
- आज के विद्यार्थी अधिकतर केवल सूचना (Information) प्राप्त करना चाहते हैं, परन्तु ज्ञान (Wisdom) गुरु की छाया में ही पनपता है।
- इंटरनेट अथवा पुस्तकों से जानकारी मिल सकती है, लेकिन जीवन में विवेक, मूल्य और सच्चा मार्गदर्शन गुरु-सेवा व उनके सान्निध्य से ही प्राप्त होता है।
- “Service and Surrender” गुरु-शिष्य संबंध का आधार है। बिना श्रद्धा और सेवा-भाव के प्राप्त की गई विद्या अधूरी रहती है।
7. संवादात्मक नीति कथा
स्थान – एक आश्रम, गुरु और शिष्य वार्तालाप कर रहे हैं।
शिष्य – गुरुदेव! मैं दिन-रात शास्त्र पढ़ता हूँ, परन्तु मुझे लगता है कि ज्ञान भीतर तक नहीं उतर रहा।
शिष्य – तब उस ज्ञान तक कैसे पहुँचा जा सकता है?
गुरु – जिस प्रकार कुदाल से धरती खोदकर जल निकाला जाता है, उसी प्रकार गुरु की सेवा, श्रद्धा और आज्ञापालन से शिष्य ज्ञान प्राप्त करता है।
शिष्य – अब समझ गया गुरुदेव, पुस्तकें केवल कुदाल हैं, पर जल तो आपकी कृपा से ही मिलेगा।
8. निष्कर्ष
यह श्लोक हमें यह नीति देता है कि –
- विद्या केवल पुस्तकों से नहीं मिलती, अपितु गुरु-सेवा, श्रद्धा और विनय से मिलती है।
- जैसे परिश्रमपूर्वक खोदने से ही जल प्राप्त होता है, वैसे ही निष्ठापूर्वक सेवा से ही गुरु-हृदय में स्थित ज्ञान का जल प्रकट होता है।
- आधुनिक युग में यह शिक्षा हमें यह भी याद दिलाती है कि केवल ‘डिग्री’ ही विद्या का प्रमाण नहीं है, बल्कि गुरु-सम्पर्क से जो ‘जीवन-विद्या’ मिलती है वही सबसे श्रेष्ठ है।
👉 यह सम्पूर्ण श्लोक विद्यार्थियों को शिक्षा देता है कि गुरु की सेवा, श्रद्धा और अनुशासन ही ज्ञान की कुंजी है।

