द्वन्द्व समास (Dvandva Samas) – परिभाषा, प्रकार, उदाहरण और पाणिनीय सूत्र सहित सम्पूर्ण परिचय

Sooraj Krishna Shastri
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द्वन्द्व समास (Dvandva Samas) वह समास है जिसमें सभी पदों का अर्थ समान रूप से प्रधान होता है। यहाँ जानिए — इसकी परिभाषा, सूत्र (चार्थे द्वन्द्वः २.२.२९), प्रकार – इतरेतर योग, समाहार और एकशेष द्वन्द्व, तथा अनेक उदाहरण सरल भाषा में।

द्वन्द्व समास (Dvandva Samas) – परिभाषा, प्रकार, उदाहरण और पाणिनीय सूत्र सहित सम्पूर्ण परिचय


🌿 द्वन्द्व समास (Dvandva Samas)

✳️ १. परिभाषा एवं स्वरूप (Definition and Nature)

द्वन्द्व समास वह समास है जिसमें समस्त पद में आए हुए सभी पदों (पूर्वपद और उत्तरपद) का अर्थ समान रूप से प्रधान होता है।
इसे उभयपदार्थप्रधान समास कहा जाता है।

🔹 सूत्र: “प्रधानता उभयपदार्थप्रधानो द्वन्द्वः”
🔹 अर्थ: जहाँ दोनों पदों (या अधिक) का अर्थ समान रूप से प्रधान हो, वहाँ द्वन्द्व समास होता है।

🪷 मुख्य लक्षण:

  • सभी पद अर्थ में समान महत्व रखते हैं।
  • विग्रह में ‘’ (और) का प्रयोग होता है।
  • समस्त पद का लिङ्ग, वचन और विभक्ति प्रायः अन्तिम पद के अनुसार होती है।
  • यदि समूह अर्थ हो, तो नपुंसकलिङ्ग एकवचन रूप बनता है (समाहार द्वन्द्व)।

✳️ २. पाणिनीय सूत्र (Governing Sutra)

क्रम सूत्र अष्टाध्यायी संख्या अर्थ (Meaning)
चार्थे द्वन्द्वः २.२.२९ जब अनेक संज्ञा पद ‘च’ (और) के अर्थ में प्रयुक्त हों, तब द्वन्द्व समास होता है।

📘 उदाहरण:
रामः च कृष्णः च → रामकृष्णौ (राम और कृष्ण)

द्वन्द्व समास (Dvandva Samas) – परिभाषा, प्रकार, उदाहरण और पाणिनीय सूत्र सहित सम्पूर्ण परिचय
द्वन्द्व समास (Dvandva Samas) – परिभाषा, प्रकार, उदाहरण और पाणिनीय सूत्र सहित सम्पूर्ण परिचय



✳️ ३. द्वन्द्व समास के प्रमुख भेद (Major Types of Dvandva Samas)

द्वन्द्व समास के तीन मुख्य भेद माने जाते हैं 👇

क्रम भेद (Type) विशेषता (Feature) परिणाम (Result)
इतरेतर योग द्वन्द्व प्रत्येक पद का अर्थ बना रहता है। द्विवचन या बहुवचन रूप।
समाहार द्वन्द्व सभी पद मिलकर समूह अर्थ देते हैं। नपुंसकलिङ्ग एकवचन।
एकशेष द्वन्द्व समान पदों में से केवल एक ही पद शेष रहता है। एक पद समूह का प्रतिनिधि बनता है।

🪷 (क) इतरेतर योग द्वन्द्व (Itaretara Yoga Dvandva)

इसमें प्रत्येक पद का अर्थ समान रूप से महत्वपूर्ण रहता है।
वचन पदों की संख्या के अनुसार होता है।

प्रकार विग्रह (Vigraha) समस्त पद (Samasta Pad) वचन
द्विपद रामः च कृष्णः च रामकृष्णौ द्विवचन
बहुपद रामः च कृष्णः च शिवः च रामकृष्णशिवाः बहुवचन

🪷 (ख) समाहार द्वन्द्व (Samāhāra Dvandva)

इस समास में पदों का व्यक्तिगत अर्थ लुप्त होकर समूह (संग्रह) का बोध होता है।
समस्त पद नपुंसकलिङ्ग एकवचन होता है।

सूत्र अष्टाध्यायी संख्या विशेषता उदाहरण
द्वन्द्वश्च प्राणितूर्यसेनाङ्गानाम् २.४.२ प्राणी के अंगों, वाद्य या सेना के अंगों के समूह का अर्थ। पाणिपादम् (हाथ और पैर का समूह)
समूहार्थक प्रयोग। यवचणकम् (जौ और चने का समूह)

🪷 (ग) एकशेष द्वन्द्व (Ekasesha Dvandva)

इसमें अनेक समान रूप वाले पदों में से केवल एक ही पद शेष रहता है, जो पूरे समूह का प्रतिनिधित्व करता है।

सूत्र अष्टाध्यायी संख्या विशेषता उदाहरण
सरूपाणाम् एकशेष एकविभक्तौ १.२.६४ समान रूप वाले पदों में से एक ही पद शेष रहता है। बालकः च बालकः च → बालकौ
वृद्धो यूना १.२.६५ माता-पिता जैसे युग्म में एक ही पद प्रतिनिधि बनता है। माता च पिता च → पितरौ / मातापितरौ

✳️ ४. द्वन्द्व समास की पहचान (How to Identify)

  1. सभी पदों के अर्थ समान रूप से प्रमुख हों।
  2. विग्रह में ‘’ (और) का प्रयोग किया जा सके।
  3. लिङ्ग और वचन अन्तिम पद या समूह के अर्थ के अनुसार हो।

✳️ ५. प्रमुख उदाहरण (Important Examples)

क्रम विग्रह समस्त पद प्रकार
रामः च लक्ष्मणः च रामलक्ष्मणौ इतरेतर योग
माता च पिता च मातापितरौ एकशेष
पाणी च पादौ च पाणिपादम् समाहार
सूर्यः च चन्द्रः च सूर्यचन्द्रौ इतरेतर योग

✳️ ६. निष्कर्ष (Conclusion)

द्वन्द्व समास संस्कृत भाषा में उन स्थितियों का द्योतक है जहाँ अनेक वस्तुओं, व्यक्तियों या विचारों को “और” के भाव से जोड़कर संक्षिप्त, सुसंरचित और संतुलित अभिव्यक्ति प्राप्त की जाती है।

✨ “द्वन्द्व समास भाषिक समरसता और संतुलन का प्रतीक है —
जहाँ अनेकता में एकता का भाव समाहित है।” 🌸


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