संस्कृत व्याकरण में समास क्या है? इसके प्रकार, सूत्र, लक्षण व उदाहरण सहित सम्पूर्ण व्याख्या। अव्ययीभाव, तत्पुरुष, द्वन्द्व, बहुव्रीहि समास का संक्षिप्त सार।
संस्कृत में समास (Samas in Sanskrit Grammar) – प्रकार, सूत्र, लक्षण, उदाहरण सहित सम्पूर्ण व्याख्या
🪷 संस्कृत में समास (Samas in Sanskrit Grammar)
१. समास की परिभाषा (Definition of Samas)
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संस्कृत में समास (Samas in Sanskrit Grammar) – प्रकार, सूत्र, लक्षण, उदाहरण सहित सम्पूर्ण व्याख्या |
🔹 समास का शाब्दिक अर्थ — “संक्षेपण” (Conciseness) है।🔹 समास का व्याकरणिक अर्थ — दो या अधिक शब्दों का एक पद में संयोग।
२. समास की आवश्यकता और उपयोगिता (Importance and Usefulness of Samas)
उद्देश्य | विवरण |
---|---|
संक्षिप्तता (Conciseness) | समास भाषा को संक्षिप्त बनाता है — अधिक अर्थ को कम शब्दों में व्यक्त करता है। |
सौंदर्य (Beauty) | समास से वाक्य में मधुरता और सुगठन आता है। |
अर्थगौरव (Depth of Meaning) | समास से शब्दों में गहराई और व्यंजना उत्पन्न होती है। |
काव्य-सौष्ठव (Poetic Grace) | काव्य, श्लोक, और सूत्रों में अर्थघनत्व के लिए समास का प्रयोग अत्यावश्यक है। |
३. समास के निर्माण की प्रक्रिया (Formation Process of Samas)
- दो या अधिक पद (words) लिए जाते हैं।
- उनके बीच की विभक्ति या उपपद (जैसे – “के”, “से”, “और”, “को”) हटा दिए जाते हैं।
- अर्थ की एकता बनाए रखते हुए नया समस्त पद (compound word) बनता है।
उदाहरण:
- विग्रहः — राज्ञः पुरुषः (राजा का पुरुष)
- समस्त पदः — राजपुरुषः👉 यहाँ “राज्ञः” (षष्ठी विभक्ति) और “पुरुषः” मिलकर एक नया समस्त पद बन गया है।
४. समास से सम्बन्धित सूत्र (Paninian Sutras on Samas)
पाणिनीय व्याकरण में समास की चर्चा अष्टाध्यायी के द्वितीय अध्याय, प्रथम पाद में विस्तृत रूप से हुई है। प्रमुख सूत्र हैं—
- “सुपो धातुप्रातिपदिकयोः” — (२।१।४) — समास की सामान्य स्थिति बताता है।
- “समर्थः पदविधिः” — (२।१।१) — समर्थ पदों में ही समास सम्भव है।
- “अलौकिकवृत्तिः समासः” — व्याकरणाचार्यों की परिभाषा – समास लौकिक वाक्य-विन्यास से भिन्न, एक कृत्रिम संक्षिप्त संरचना है।
५. समास के प्रमुख भेद (Main Types of Samas)
पदों की प्रधानता और अर्थ के आधार पर समास को सामान्यतः चार मुख्य भेदों में बाँटा गया है, जबकि तत्पुरुष के अंतर्गत दो उपभेद और जोड़ने पर कुल छः प्रकार प्रचलित हैं।
क्रमांक | समास का नाम | प्रधान पद | विशेष लक्षण |
---|---|---|---|
1 | अव्ययीभाव समास (Avyayibhava) | पूर्वपद (अव्यय) | पहला पद अव्यय होता है, समस्त पद भी अव्यय बनता है। |
2 | तत्पुरुष समास (Tatpurusha) | उत्तरपद | दूसरे पद की प्रधानता, पहले पद में विभक्ति का लोप। |
2.1 | कर्मधारय उपभेद | समान विभक्ति | एक पद विशेषण, दूसरा विशेष्य। |
2.2 | द्विगु उपभेद | संख्यावाचक पूर्वपद | पहला पद संख्या सूचक। |
3 | द्वन्द्व समास (Dvandva) | दोनों पद समान | दोनों की समान प्रधानता, ‘च’ अर्थ प्रकट। |
4 | बहुव्रीहि समास (Bahuvrihi) | कोई नहीं | समस्त पद किसी तीसरे वस्तु का विशेषण बनता है। |
६. समासों का क्रमवार विवेचन (Detailed Explanation of Each Type)
(१) अव्ययीभाव समास (Avyayibhava Samas)
- समस्त पद अव्यय हो जाता है।
- अर्थ: किसी क्रिया, अवस्था या काल का बोध कराता है।
उदाहरण:
विग्रह | समस्त पद | अर्थ |
---|---|---|
दिनं दिनं प्रति | प्रतिदिनम् | प्रत्येक दिन |
शक्ति अनतिक्रम्य | यथाशक्ति | शक्ति के अनुसार |
गृहं प्रति गच्छति | प्रगृहं | घर की ओर |
(२) तत्पुरुष समास (Tatpurusha Samas)
भेद | लक्षण | उदाहरण |
---|---|---|
षष्ठी तत्पुरुष | पहला पद षष्ठी विभक्ति में | राज्ञः पुरुषः → राजपुरुषः |
द्वितीया तत्पुरुष | पहला पद द्वितीया विभक्ति में | शरणम् आगतः → शरणागतः |
तृतीया तत्पुरुष | साधन के अर्थ में | लाठ्या हतः → लाठीहतः |
चतुर्थी तत्पुरुष | लाभार्थक अर्थ में | गुरवे दत्तः → गुरुदत्तः |
पञ्चमी तत्पुरुष | अपादान के अर्थ में | ग्रामात् गतः → ग्रामगतः |
षष्ठी तत्पुरुष | संबंधसूचक | देवस्य पुत्रः → देवपुत्रः |
सप्तमी तत्पुरुष | स्थानवाचक | ग्रामे स्थितः → ग्रामस्थः |
(२.१) कर्मधारय समास (Karmadharaya Samas)
- नीलम् कमलम् → नीलकमलम्
- महत् पुरुषः → महापुरुषः
(२.२) द्विगु समास (Dvigu Samas)
- त्रयाणां लोकानां → त्रिलोकी
- सप्त ऋषयः → सप्तर्षयः
(३) द्वन्द्व समास (Dvandva Samas)
- विग्रह में ‘च’ (और) का प्रयोग होता है।
- फलस्वरूप समस्त पद द्विवचन, बहुवचन या शेष रूप लेता है।
उदाहरण:
विग्रह | समस्त पद | अर्थ |
---|---|---|
रामः च लक्ष्मणः च | रामलक्ष्मणौ | राम और लक्ष्मण |
माता च पिता च | पितरौ | माता-पिता |
गङ्गा च यमुना च | गङ्गायमुनाः | गंगा और यमुना |
(४) बहुव्रीहि समास (Bahuvrihi Samas)
- अर्थ बाह्य संदर्भ में जाता है (external reference)।
- विशेषणात्मक समास — किसी व्यक्ति या वस्तु का गुण बताता है।
उदाहरण:
विग्रह | समस्त पद | अर्थ |
---|---|---|
दश आननानि यस्य सः | दशाननः | रावण |
पीतम् अम्बरं यस्य सः | पीताम्बरः | श्रीकृष्ण |
श्वेतः केशः यस्य सः | श्वेतकेशः | वृद्ध पुरुष |
७. समास का महत्त्व (Importance of Samas in Sanskrit Learning)
- संक्षेप रूप में अर्थ प्रकट करने का श्रेष्ठ साधन।
- काव्य, वेद, उपनिषद्, और शास्त्र ग्रंथों की भाषा का आधार।
- शब्दरचना (Morphology) और अर्थविज्ञान (Semantics) के बीच सेतु।
- संस्कृत वाक्य को शुद्ध, संक्षिप्त और प्रभावशाली बनाने का उपकरण।
८. संक्षेप में स्मरणार्थ तालिका (Summary Table)
प्रकार | प्रधान पद | विभक्ति का प्रयोग | उदाहरण | अर्थ |
---|---|---|---|---|
अव्ययीभाव | पूर्व पद | नहीं | प्रतिदिनम् | हर दिन |
तत्पुरुष | उत्तर पद | द्वि–सप्तमी | राजपुरुषः | राजा का सेवक |
कर्मधारय | समान विभक्ति | नहीं | नीलकमलम् | नीला कमल |
द्विगु | संख्यावाचक | नहीं | त्रिलोकी | तीन लोक |
द्वन्द्व | दोनों | नहीं | रामलक्ष्मणौ | राम और लक्ष्मण |
बहुव्रीहि | कोई नहीं | नहीं | दशाननः | जिसके दस मुख हैं |
🪷 संस्कृत समास-सारणी (Comprehensive Chart of Samasas in Sanskrit Grammar)
क्रम | समास का नाम | प्रधान पद | सूत्र (Paninian Reference) | मुख्य लक्षण (Main Feature) | उदाहरण (Vigraha → Samastapada) | अर्थ / अर्थभेद |
---|---|---|---|---|---|---|
१ | अव्ययीभाव समास (Avyayibhava Samas) | पूर्वपद (अव्यय) | सुपो धातुप्रातिपदिकयोः (२।१।४) अव्ययीभावश्च (२।१।६) |
पहला पद अव्यय होता है; समस्त पद भी अव्यय बनता है; क्रियाविशेषण, स्थान, काल, मात्रा आदि का बोध। | दिनं प्रति → प्रतिदिनम् यथा शक्ति → यथाशक्ति |
हर दिन, शक्ति के अनुसार |
२ | तत्पुरुष समास (Tatpurusha Samas) | उत्तरपद | सुपो धातुप्रातिपदिकयोः (२।१।४) समर्थः पदविधिः (२।१।१) |
पहला पद विभक्ति सहित, दूसरा प्रधान। विभक्ति लुप्त होकर एक पद बनता है। | राज्ञः पुरुषः → राजपुरुषः | राजा का सेवक |
२.१ | षष्ठी तत्पुरुष | उत्तरपद | — | पहला पद षष्ठी विभक्ति में | देवस्य पुत्रः → देवपुत्रः | देवता का पुत्र |
२.२ | द्वितीया तत्पुरुष | उत्तरपद | — | पहला पद द्वितीया विभक्ति में | शरणं गतः → शरणागतः | शरण को गया |
२.३ | तृतीया तत्पुरुष | उत्तरपद | — | साधन के अर्थ में | लाठ्या हतः → लाठीहतः | लाठी से मारा गया |
२.४ | चतुर्थी तत्पुरुष | उत्तरपद | — | लाभार्थक अर्थ में | गुरवे दत्तः → गुरुदत्तः | गुरु को दिया हुआ |
२.५ | पञ्चमी तत्पुरुष | उत्तरपद | — | अपादान (से अलग होने) के अर्थ में | ग्रामात् गतः → ग्रामगतः | गाँव से गया |
२.६ | षष्ठी तत्पुरुष | उत्तरपद | — | संबंधसूचक | मातुः नाम → मातृनाम | माता का नाम |
२.७ | सप्तमी तत्पुरुष | उत्तरपद | — | स्थानवाचक | ग्रामे स्थितः → ग्रामस्थः | गाँव में स्थित |
३ | कर्मधारय समास (Karmadharaya Samas) | समान विभक्ति | तत्पुरुष का उपभेद | दोनों पद समान विभक्ति में हों; एक विशेषण, दूसरा विशेष्य। | नीलं कमलम् → नीलकमलम् महान् पुरुषः → महापुरुषः |
नीला कमल, महान व्यक्ति |
४ | द्विगु समास (Dvigu Samas) | संख्यावाचक पूर्वपद | तत्पुरुष का उपभेद | पहला पद संख्या सूचक; समूह का बोध कराए। | त्रयाणां लोकानां → त्रिलोकी सप्त ऋषयः → सप्तर्षयः |
तीन लोक, सात ऋषि |
५ | द्वन्द्व समास (Dvandva Samas) | दोनों पद समान | अनेकमन्यपदार्थे द्वन्द्वः (२।२।२९) | दोनों पद समान प्रधानता वाले; ‘च’ अर्थ प्रकट; समाहार या इतरेतर अर्थ। | रामः च लक्ष्मणः च → रामलक्ष्मणौ माता च पिता च → पितरौ |
राम और लक्ष्मण, माता-पिता |
५.१ | इतरेतर द्वन्द्व | — | — | जब सभी पद अलग-अलग अस्तित्व रखते हैं। | रामः च लक्ष्मणः च → रामलक्ष्मणौ | राम और लक्ष्मण |
५.२ | समाहार द्वन्द्व | — | — | जब सभी का एक समूह बनता है। | चूलः च पात्रं च → चूलपात्रम् | चूल-पात्र का समूह |
५.३ | एकशेष द्वन्द्व | — | — | जब द्विवचन या बहुवचन रूप में एक पद शेष रह जाता है। | माता च पिता च → पितरौ | माता-पिता |
६ | बहुव्रीहि समास (Bahuvrihi Samas) | कोई नहीं | सप्तमीविभक्तिसमासेष्वसंज्ञायाम् (२।२।२३) | समस्त पद किसी तीसरे पद का विशेषण बनता है; बाह्य संदर्भ (external reference) वाला समास। | दश आननानि यस्य सः → दशाननः पीतम् अम्बरं यस्य सः → पीताम्बरः |
रावण (दस मुख वाला), श्रीकृष्ण (पीतवस्त्रधारी) |
🌼 समासों के प्रकारानुसार प्रधानता-सारांश (Summary by Prominence)
प्रकार | प्रधान पद | अर्थ की दिशा | उदाहरण |
---|---|---|---|
अव्ययीभाव | पूर्वपद (अव्यय) | क्रियाविशेषण या काल | प्रतिदिनम् |
तत्पुरुष | उत्तरपद | संबंध, साधन, स्थान आदि | राजपुरुषः |
कर्मधारय | समान विभक्ति | विशेषणात्मक | नीलकमलम् |
द्विगु | संख्यावाचक | समूह सूचक | त्रिलोकी |
द्वन्द्व | दोनों | समुच्चयात्मक | रामलक्ष्मणौ |
बहुव्रीहि | कोई नहीं | बाह्य विशेषणात्मक | दशाननः |
🪶 समासों से जुड़ी शिक्षण-सूक्तियाँ (Mnemonic Aids for Students)
- “संक्षेपो लक्षणं समासस्य” — संक्षेप ही समास का लक्षण है।
- “पूर्वोऽव्ययीभावः, उत्तरस्तत्पुरुषः” — प्रधानता की पहचान।
- “द्वन्द्वे उभयप्रधानत्वं, बहुव्रीहौ तृतीयप्रधानत्वं” — द्वन्द्व में दोनों प्रधान, बहुव्रीहि में कोई नहीं।
- “संख्या पूर्वे द्विगुः” — जहाँ संख्या पहले आए, वहाँ द्विगु समास होता है।
🌺 संक्षेप में समासों का व्यावहारिक उपयोग (Practical Significance)
उपयोग क्षेत्र | उदाहरण | व्याख्या |
---|---|---|
काव्य (Poetry) | पीताम्बरः, त्रिलोकीनाथः | भाव-संक्षेप एवं माधुर्य |
सूत्र (Aphorism) | योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः | गूढ़ तत्त्व का संक्षेप |
दर्शन ग्रंथ | आत्मज्ञानम्, ब्रह्मविद्या | तत्त्व ज्ञान का संक्षेप |
दैनिक प्रयोग | गृहकार्यः, देवदर्शनम् | बोलचाल में संक्षिप्तता |
✨ उपसंहार (Conclusion)
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