महान शिवभक्त कुबेर कथा – From Sin to Divinity | Story of Kubera Devotee of Lord Shiva

Sooraj Krishna Shastri
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यह कथा “महान शिवभक्त कुबेर” की है — जो हमें यह सिखाती है कि पाप की गहराइयों से भी यदि कोई व्यक्ति शिव की शरण में आ जाए, तो भगवान उसे दिव्यता के शिखर तक पहुँचा देते हैं।
नीचे इस पूरी कथा को व्यवस्थित, विस्तारपूर्ण एवं प्रवाहमय रूप में प्रस्तुत किया गया है—

महान शिवभक्त कुबेर कथा – From Sin to Divinity | Story of Kubera Devotee of Lord Shiva


🕉️ महान शिवभक्त कुबेर : पाप से परम पद तक की यात्रा

1️⃣ कांपिल्य नगर का ब्राह्मण यज्ञदत्त

प्राचीन काल में कांपिल्य नगर में यज्ञदत्त नामक एक परम तपस्वी, सदाचारी और वेद-वेदांगों के ज्ञाता ब्राह्मण निवास करते थे। वे सदा यज्ञ, दान, जप और ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए जीवन व्यतीत करते थे।

उनके यहाँ एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसका नाम गुणनिधि रखा गया। यह बालक प्रारंभ में अत्यंत बुद्धिमान और शास्त्रों का अध्येता था। यज्ञोपवीत संस्कार के बाद उसने समस्त विद्याओं का अध्ययन कर लिया और अपने पिता की भाँति विद्वान हो गया।

महान शिवभक्त कुबेर कथा – From Sin to Divinity | Story of Kubera Devotee of Lord Shiva
महान शिवभक्त कुबेर कथा – From Sin to Divinity | Story of Kubera Devotee of Lord Shiva

2️⃣ कुसंग का प्रभाव – पतन का प्रारंभ

परंतु समय के प्रवाह में वह कुसंगति में पड़ गया। जुए जैसे दुर्व्यसन ने उसे ग्रस लिया। धीरे-धीरे वह इतना आसक्त हुआ कि अपने पिता से छिपाकर घर के आभूषण, वस्त्र और कीमती सामान चुराकर जुए में हारने लगा।

जब यज्ञदत्त को यह सब ज्ञात हुआ, तो उन्होंने दुःख से व्याकुल होकर पुत्र को घर से निकाल दिया। उन्होंने कहा —

“हे पुत्र! तूने कुल की मर्यादा भंग की है। अब तू मेरे घर में रहने योग्य नहीं।”


3️⃣ संयोगवश शिवालय में प्रवेश

घर से निष्कासित गुणनिधि भटकते हुए संध्या-समय एक शिवालय में पहुँचा। वह दिन शिवरात्रि का था। मंदिर में भक्ति गीतों का गान चल रहा था। भूखा-प्यासा वह मंदिर के द्वार पर बैठ गया और अनजाने में ही भगवान शिव के कीर्तन को सुनने लगा।

रात्रि गहरी हो गई, भक्तगण सो गए। तब उस पापी ने सोचा कि “मंदिर में रखा भोग चुराकर पेट भर लूँ।”


4️⃣ अनजाने में किया गया शिव-सेवन

वह मंदिर में घुसा तो देखा दीपक की ज्योति मंद हो गई है। प्रकाश के अभाव में उसने अपने वस्त्र का टुकड़ा फाड़कर बत्ती जलाई, ताकि भोग ढूँढ सके।
यह वही क्षण था जब उसके अनजाने में भगवान शिव की सेवा हो गई।

उसने दीप जलाकर अंधकार मिटाया, भले ही उसका उद्देश्य चोरी था — किंतु वह शिवालय में दीपदान बन गया।

ज्यों ही वह भोग लेकर भागा, मंदिर का एक रक्षक जाग गया। गुणनिधि पकड़ा गया और दंडस्वरूप उसकी मृत्यु हो गई।


5️⃣ यमदूतों और शिवदूतों का संग्राम

उसकी मृत्यु के बाद यमदूत उसे बंधन में ले जाने लगे। तभी भगवान शिव के पार्षद वहाँ प्रकट हुए। उन्होंने कहा —

“यह हमारे प्रभु के अनजाने भक्त हैं। आज इसने शिवरात्रि के उपवास, रात्रि-जागरण, दीपदान और दर्शन का पुण्य किया है। अतः इसे यमदूत नहीं ले जा सकते।”

वे यमदूतों से उसे मुक्त कर कैलासपुरी ले गए।


6️⃣ भगवान शिव की करुणा

भगवान आशुतोष शिव ने कहा —

“यद्यपि इसने अज्ञानवश अपराध किया, परंतु शिवरात्रि के दिन मेरा नाम सुनना, दीपदान करना, जागरण करना और मंदिर में रात्रि बिताना — ये सब मेरे आराधन के ही रूप हैं।”

वे प्रसन्न हुए और गुणनिधि को अपने शिवपद से विभूषित किया।


7️⃣ पुनर्जन्म – राजा दम

अगले जन्म में वही गुणनिधि कलिंगराज अरिदम का पुत्र हुआ। इस जन्म में उसका नाम दम पड़ा।
बाल्यकाल से ही उसमें भगवान शिव के प्रति अद्भुत भक्ति थी। वह निरंतर उमापति की आराधना में लगा रहता था।

बड़े होकर जब वह कलिंग देश का राजा बना, तब उसने संपूर्ण राज्य में शिव-धर्म का प्रचार किया। उसने आदेश दिया —

“प्रत्येक शिवालय में दीपदान अवश्य किया जाए। जो इसका उल्लंघन करेगा, उसे दंड दिया जाएगा।”

वह स्वयं भी प्रतिदिन यह व्रत करता और नित्य शिव-पूजन में लीन रहता।


8️⃣ शिव की कृपा से अलकापुरी का अधिपति

आजीवन शिवसेवा में रहने के बाद राजा दम देहत्याग कर दिव्य लोक को प्राप्त हुआ।
शैवी भक्ति के प्रभाव से वह अलकापुरी का अधिपति बना — वही जो आगे चलकर कुबेर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।


9️⃣ वैश्रवण रूप में पुनर्जन्म

पाद्मकल्प में वह पुलस्त्य ऋषि के पुत्र विश्रवा के यहाँ उत्पन्न हुआ। उसकी माता का नाम इलविला था, इस कारण वह ऐडविड वैश्रवण कहलाया।

इस श्रेष्ठ कुल में जन्म लेकर उसने पुनः भगवान शंभु की घोर आराधना प्रारंभ की। उसने शिवलिंग की स्थापना की और वर्षों तक तपस्या करता रहा।


🔟 शिव और पार्वती का साक्षात् दर्शन

हजारों वर्षों की तपस्या के पश्चात भगवान शिव उमा सहित प्रकट हुए और बोले —

“वत्स वैश्रवण! मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूँ। जो वर चाहो, माँगो।”

वैश्रवण ने विनम्रता से कहा —

“प्रभो! मुझे वह शक्ति दीजिए जिससे मैं आपके चरणों का दर्शन कर सकूं; यही मेरी सिद्धि होगी।”

भगवान शिव ने उसके नेत्रों को स्पर्श किया। स्पर्श करते ही उसे दिव्य दृष्टि प्राप्त हुई।


11️⃣ पार्वती का शाप और नाम ‘कुबेर’

जब उसने नेत्र खोले, तो पहले दर्शन माता पार्वती के हुए। उनकी दिव्य शोभा देखकर वह आश्चर्यचकित होकर उन्हें निहारने लगा। देवी ने इसे अनुचित समझा और कहा —

“यह तापस दुष्ट है, मुझे क्रूर दृष्टि से देख रहा है।”

शिव जी ने मुस्कुराकर कहा —

“देवि, यह तुम्हारा ही पुत्र है। तुम्हारी तपस्या के तेज पर यह विस्मित है, दुष्ट भाव नहीं।”

फिर शिव बोले —

“वत्स! तुम्हें मैं समस्त निधियों का स्वामी, यक्ष, गुह्यक और किन्नरों का अधिपति बनाता हूँ। तुम्हारी मित्रता सदा मेरे साथ रहेगी। मैं तुम्हारी अलकापुरी के समीप निवास करूँगा।”

देवी पार्वती ने कहा —

“तुम्हारी दृष्टि का एक नेत्र नष्ट रहेगा और तुम्हारा नाम होगा कुबेर। किंतु जो तुम्हारे द्वारा स्थापित शिवलिंग की पूजा करेगा, वह कभी निर्धन नहीं होगा।”


12️⃣ कुबेर का ऐश्वर्य और शिवमित्रता

इस प्रकार भगवान शिव के वर से कुबेर को अलकापुरी की प्राप्ति हुई —
जहाँ चैत्ररथ वन और नंदनवन के समान उद्यान थे।
वे उत्तरी दिशा के अधिपति बने और निधियों के स्वामी कहलाए।
भगवान शिव के घनिष्ठ मित्र और माता पार्वती के कृपापात्र बनकर उन्होंने परम संतोष प्राप्त किया।


कथा का संदेश

  1. अनजाने में किया गया सत्कर्म भी फल देता है, यदि वह भगवान के प्रति हो।
  2. शिवरात्रि का जागरण, दीपदान और दर्शन अत्यंत पुण्यदायक हैं।
  3. भगवान आशुतोष हैं — थोड़े से भक्ति-भाव से भी वे प्रसन्न हो जाते हैं।
  4. कुबेर इस सत्य के जीवंत प्रतीक हैं कि पतन से उठकर भी मोक्ष का मार्ग खुला है।


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