संस्कृत व्याकरण में संबंध (Relation) को कारक नहीं माना जाता, क्योंकि इसका क्रिया से सीधा संबंध नहीं होता। फिर भी, यह वाक्य में दो पदों के बीच स्वामित्व या संबंध दर्शाने के लिए षष्ठी विभक्ति (Genitive Case) के रूप में व्यक्त किया जाता है। पाणिनि के सूत्र “षष्ठी शेषे” (२।३।५०) के अनुसार जहाँ अन्य कारकों का प्रयोग संभव नहीं होता, वहाँ षष्ठी का प्रयोग होता है। उदाहरण – रामस्य पुत्रः गच्छति (‘राम का पुत्र जाता है’)। षष्ठी विभक्ति सामान्य संबंध के अतिरिक्त निर्धारण (समुदाय में से किसी एक का चयन), कृत्-प्रत्यय के योग, तथा तुल्यार्थक शब्दों (‘तुल्य’, ‘सम’) के साथ भी प्रयुक्त होती है। यह विभक्ति अपादान (पंचमी) और अधिकरण (सप्तमी) से भिन्न होती है, क्योंकि इसमें न तो पृथक्करण है न ही आधार का बोध, बल्कि केवल संबंध का बोध होता है। संस्कृत में षष्ठी विभक्ति के प्रयोग से भाषा में स्वामित्व, संबंध, और निर्धारण के सूक्ष्म अर्थों की स्पष्टता आती है, जो इसे व्याकरणिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण बनाती है।
अकारक संबंध – षष्ठी विभक्ति (Genitive Case in Sanskrit Grammar Explained in Hindi)
🌿 (अकारक) संबंध — षष्ठी विभक्ति (Non-Kāraka Relation – The Genitive Case)
संस्कृत व्याकरण में संबंध (Relation) को कारक (Kāraka) नहीं माना जाता, क्योंकि इसका क्रिया (Verb) से सीधा संबंध नहीं होता।
फिर भी, संबंध को व्यक्त करने के लिए षष्ठी विभक्ति (Genitive Case) का प्रयोग किया जाता है।
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| अकारक संबंध – षष्ठी विभक्ति (Genitive Case in Sanskrit Grammar Explained in Hindi) |
🔹 १. कारक-संज्ञा का अभाव (Absence of Kāraka Designation)
| सूत्र (Sūtram) |
अर्थ (Meaning) |
| क्रिया से सीधा संबंध नहीं |
संबंध का संबंध वाक्य की क्रिया से नहीं, बल्कि एक पद (शब्द) का दूसरे पद से होता है। |
📘 उदाहरण:
रामस्य पुत्रः गच्छति।
👉 ‘रामस्य’ का संबंध ‘गच्छति’ क्रिया से नहीं, बल्कि ‘पुत्र’ शब्द से है।
अतः ‘राम’ अकारक (Non-Kāraka) है।
🔹 २. षष्ठी विभक्ति विधायक सूत्र (Rule for Genitive Case)
| सूत्र (Sūtram) |
अर्थ (Meaning) |
उदाहरण (Example) |
| षष्ठी शेषे (पाणिनि, अष्टाध्यायी २।३।५०) |
जब किसी वाक्य में प्रथमादि सात विभक्तियों (छह कारक + संबोधन) का कोई अन्य नियम लागू नहीं होता, तब ‘शेष’ (बाकी) अर्थ में षष्ठी विभक्ति होती है। |
नृपस्य सेवकः आगच्छति। (‘राजा’ और ‘सेवक’ के बीच संबंध है, क्रिया से नहीं।) |
🪶 विवेचन:
यह सूत्र विशेषतः संबंधार्थक षष्ठी के लिए प्रयुक्त होता है।
हिन्दी में इसका रूप ‘का’, ‘के’, ‘की’ अथवा ‘रा’, ‘रे’, ‘री’, ‘ना’, ‘ने’, ‘नी’ के रूप में होता है।
🔹 ३. षष्ठी विभक्ति के विशेष प्रयोग (Special Uses of Genitive Case)
(क) निर्धारण (Selection)
| विवरण |
उदाहरण |
सूत्र: यतश्च निर्धारणम् (२।३।४१) अर्थ: किसी समुदाय या समूह में से किसी एक को विशेष या श्रेष्ठ ठहराने पर उस समूहवाचक शब्द में षष्ठी (या कभी सप्तमी) का प्रयोग होता है। |
नराणाम् रामः श्रेष्ठः। (मनुष्यों में से राम श्रेष्ठ है।) कवीनाम् कालिदासः श्रेष्ठः। (कवियों में से कालिदास श्रेष्ठ है।) सप्तमी विकल्प रूप: नरेषु रामः श्रेष्ठः। |
(ख) कृत्-प्रत्यय के योग में (With Kṛt-Affixes)
| विवरण |
उदाहरण |
| जब कुछ कृत्-प्रत्ययों (जैसे तुमुन्, क्त, क्तवत् आदि) का प्रयोग होता है, तब कर्म या कर्ता में षष्ठी विभक्ति होती है। |
कृष्णस्य कृतिः। (कृष्ण की रचना) गमनस्य इच्छति। (जाने की इच्छा करता है।) |
(ग) तुल्यार्थक शब्दों के साथ (With Words of Comparison)
| विवरण |
उदाहरण |
| ‘तुल्य’, ‘सम’, ‘समान’ आदि शब्दों के साथ षष्ठी विभक्ति का प्रयोग होता है (यद्यपि कभी-कभी तृतीया भी)। |
धनस्य तुल्यं ज्ञानं नास्ति। (धन के समान ज्ञान नहीं है।) |
🔹 ४. षष्ठी, अपादान और अधिकरण विभक्ति में अंतर
| स्थिति (Situation) |
षष्ठी (संबंध) |
अपादान (पंचमी) |
अधिकरण (सप्तमी) |
| अर्थ |
जहाँ केवल संबंध या स्वामित्व बताया जाए |
जहाँ निश्चित अलगाव या स्रोत हो |
जहाँ आधार, स्थान या आश्रय हो |
| उदाहरण |
तस्य गृहं दूरम् अस्ति। (उसका घर दूर है।) |
ग्रामात् दूरम् अस्ति। (गाँव से दूर है → अलगाव) |
गृहे तिष्ठति। (घर में ठहरता है।) |
🪷 निष्कर्ष (Conclusion)
- संबंधार्थक षष्ठी विभक्ति वाक्य में दो पदों के बीच स्वामित्व या संबंध प्रकट करती है, न कि क्रिया के साथ कारक संबंध।
- यह विभक्ति ‘षष्ठी शेषे’ सूत्र द्वारा विनिर्दिष्ट है और इसे अकारक (Non-Kāraka) विभक्ति कहा जाता है।
- संस्कृत में यह संबंध, निर्धारण, कृत्-प्रत्यय, और तुल्य अर्थों में विशेष रूप से प्रयुक्त होती है।