स्नेह, मित्रता और संयम पर संस्कृत नीति श्लोक | Sanskrit Niti Shlok on Friendship, Wealth & Self-Control with Meaning
1) संस्कृत श्लोक (पंक्तियाँ)
स स्निग्धोऽकुशलान्निवारयति यस्तत्कर्म यन्निर्मलं
सा स्त्री यानुविधायिनी स मतिमान्यः सद्भिरभ्यर्च्यते।सा श्रीर्या न मदं करोति स सुखी यस्तृष्णया मुच्यतेतन्मित्रं यदकृत्रिमं स पुरुषो यः खिद्यते नेन्द्रियैः॥
2) अंग्रेजी ट्रान्सलिटरेशन
IAST (सठिक उच्चारण):
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स्नेह, मित्रता और संयम पर संस्कृत नीति श्लोक | Sanskrit Niti Shlok on Friendship, Wealth & Self-Control with Meaning |
3) शुद्ध हिन्दी अनुवाद (भावपूर्ण)
- जो स्नेही (प्रेमी) है वह अप्रवीणों/अकुशल लोगों को बुरे कर्मों से रोकता है; वही कर्म सत्य है जो निवृत और निर्मल है।
- वह स्त्री उत्तम है जो अपने पति के पुण्य-कृत्यों का अनुसरण करती है; वही मनुष्य बुद्धिमान है जिसे सज्जन लोग सम्मान देते हैं।
- वही ऐश्वर्य/सम्पत्ति सच्ची है जो घमण्ड न कराती; वही सुखी है जो तृष्णा (लालसा) से मुक्त है।
- वही मित्र सच्चा है जो अकृत्रीय (निष्कपट, सच्चा) हो; वही पुरुष सच्चा है जो इंद्रियों द्वारा नियंत्रित नहीं होता।
(सटीकता के लिए वाक्य-संरचना थोड़ा बदलकर भाव-प्रवाह रखा गया है।)
4) शब्दार्थ (प्रत्येक महत्त्वपूर्ण पद का भावार्थ)
- स — वह (पुरुष/व्यक्ति)।
- स्निग्धः — स्नेहयुक्त, प्रेमी, अनुरक्त; स्नेह से प्रेरित जो हितकारी कार्य करे।
- अकुशलान् — अ-कुशलान् = कुशल न होने वाले; अकुशल लोग (अनुभवहीन/निरक्षर)।
- निवारयति — रोकता/वर्जयिता/प्रोत्साहन-प्रतिकूल; किसी बुरे कर्म से रोकना।
- यः — जो (संबंध सूचक सर्वनाम)।
- तत् कर्म — वह काम/कर्म।
- यत् निर्मलम् — जो निर्मल/शुद्ध है।
- सा स्त्री — वह स्त्री।
- यानुविधायिनी — अनु-विधायिनी = अनुकरण करने वाली; यहाँ अर्थ है जो पति के सत्कर्मों का अनुसरण करे।
- स मतिमान् — वही बुद्धिमान (मतिमान् = विवेकी/धार्मिक बुद्धि वाला)।
- यः सद्धिर्भिर् अभ्यर्च्यते — जिसे सज्जन लोग पूजा/सम्मान करते हैं। (अभ्यर्च्यते = आदरपूर्वक आराधित/पूजित)
- श्रीर्या — श्रीया = धन/सम्पत्ति/आरोग्य/वैभव (स्त्री रूप में नहीं; पर यहाँ ‘श्री’ का रूपांतरण) — संदर्भानुसार अर्थ: धन-सम्पदा या वैभव।
- न मदं करोति — घमण्ड नहीं कराती/न अहंकार उत्पन्न करती।
- स सुखी यः तृष्णया मुच्यते — वही सुखी है जो तृष्णा (इच्छाओं) से मुक्त है।
- तन्मित्रं यदकृत्रिमम् — जो मित्र है वह अकृत्रिम (नकली नहीं) होना चाहिए — मित्र सच्चा।
- स पुरुषो यः खिद्यते नेन्द्रियैः — वही पुरुष असल है जो इन्द्रियों (इन्द्रिय-वासनाओं) द्वारा खींचा/नियन्त्रित नहीं होता। (‘खिद्यते’ = आक्रांत/प्रबलित/वश होता) — न खिद्ये अर्थात् इन्द्रिय-वश न होना।
5) व्याकरणात्मक विश्लेषण (पद-स्तर पर — संप्रदायानुसार)
(नीचे प्रमुख पदों का विभाजन, वचन-लिंग-कारक और संभव संधि/समास उल्लेखित है)
-
स् + स्निग्धः — यहाँ
स्निग्धः
सर्वनामस
के साथ वाक्य-प्रारम्भ में है: "स्निग्धः स..." — संश्लेषित रूप मेंस स्निग्धः
।स्निग्धः
— पदवाच्य विशेषण (पुरुषलिङ्, एकवचन, प्रथमा)अकुशलान्
—अ- कुशलान्
= अकुशल लोग (द्वितीया विभक्ति, बहुवचन)निवारयति
— क्रियापद, वर्तमानकाल, तत्पुरुष संबंध में कर्तास्निग्धः
(वाच्य) के साथ।- वाक्य-प्रकार: कर्तृक वाक्य: स्नेही (कर्ता) — निवारयति (क्रिया) — अकुशलान् (कर्म/द्वितीया)।
-
यः तत् कर्म यत् निर्मलम् — अनुयोग (जो — वह कर्म — जो निर्मल हो)।
यः
(नामधा-प्रत्यय-व्यवहारक) = सम्बद्धक।तत् कर्म
— तत् (संबंध सूचक), कर्म (नाभिकर्ता/कर्मपद)।यत् निर्मलम्
— सम्बन्धात्मक उपवाक्य (समुच्चय/परिभाषा)।
-
दूसरी पंक्ति: सा स्त्री यानुविधायिनी —
या अनु-विधायिनी
= वह स्त्री जो अनुकरण करती है;उपसर्ग 'अनु' + विधा (कृ.विधा?)
— यहांयानुविधायिनी
= 'यानु-विधायिनी' — सामान्यत: स्त्री-विशेषण जो पति के सत्कर्मों की नकल करती है।स मतिमान् यः सद्भिरभ्यर्च्यते
—मतिमान्
(विभक्ति: प्रथमा पुरुषलिङ् एकवचन),यः
(संबंधक) —सद्धिर्भिर् अभ्यर्च्यते
(कर्म/कर्तृ-व्यवहार; यहाँअभ्यर्च्यते
= परास्पर्य-क्रिया, साधन-भाव: सम्मानित होता है)।
-
तीसरी/चौथी पंक्तियाँ — स्पष्ट सूक्ति-रूप;
तृष्णया मुच्यते
— तृष्णा-रहित होना = कर्म-विराम/मोक्ष-सम्बन्धी सूचक।
समास/सन्धि: विशेष संधि-प्रकिया यहाँ सामान्य लघु-लिपि में; कई स्थानों पर समास (तत्पुरुष/कर्मधारय- प्रकार) के अर्थ मौजूद — पर इसमें साधारण श्लोक-सूक्ति है, न कोई जटिल समास-रचना।
छन्द/ताल: यह श्लोक पारंपरिक छन्द (उपनिषद्/नीतिश्लोक जैसी लय) का प्रतीत होता है — परन्तु स्पष्ट छन्द-निशानियाँ (मात्रा गणना) बिना अतिरिक्त संदर्भ के कठिन; इसलिए मैं यह नहीं कहूँगा कि यह विशेष रूप से अनुष्टुप या किसी अन्य छन्द में है। (सटीक छन्द-निरुपण हेतु संपूर्ण मात्रा-गणना आवश्यक है।)
6) आधुनिक सन्दर्भ — अर्थ और अनुप्रयोग (व्यावहारिक)
यह श्लोक मूल्य-आधारित व्यवहार के सरल-सुस्पष्ट मानदण्ड देता है — आज के परिप्रेक्ष्य में लागू करें तो:
- अभिभावक/शिक्षक/मार्गदर्शक: जो युवाओं को बुरी आदतों (जैसे: भ्रष्टाचार, हिंसा, नकारात्मक सोशल मीडिया व्यवहार) से रोकते हैं — वही सच्चे प्रेमी/हितैषी हैं।
- पति-पत्नी का सहयोग: सम्मान और निष्ठा के साथ पति/पत्नी के सत्कार्यों/सद्गुणों का अनुसरण पारिवारिक सद्भाव बढ़ाता है। (यह目信तिक रूप से अंधानुकरण नहीं, बल्कि प्रेरणादायी अनुकरण का समर्थन करता है।)
- धन-सम्पत्ति: वास्तविक संपदा वह है जो अहंकार न पैदा करे — आधुनिक संदर्भ में यह सामाजिक उत्तरदायित्व, दान, और विनम्र उपयोग का संदेश देता है।
- इच्छा-निरसन (तृष्णा से मुक्ति): मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा — अल्प आवश्यकताओं में संतोष, कम उपभोगवादी जीवन, और मानसिक शांति।
- मित्रता और ईमानदारी: डिजिटल युग में 'अकृत्रीय मित्र' का भाव — नकली व्यवहार, दिखावा और बनावटी सोशल रिलेशनशिप से सचेत रहना।
- इन्द्रिय-नियन्त्रण: आत्म-नियमन — नशीले पदार्थों, अतिव्यापार, आसक्ति, और आवेग-आधारित निर्णयों से बचना।
इन सिद्धांतों को विद्यालय शिक्षा, पारिवारिक संवाद, और नेतृत्व-प्रशिक्षण में प्रयोग किया जा सकता है।
7) संवादात्मक नीति-कथा (संक्षिप्त)
शैली: शिक्षक — शिष्य संवाद, सरल नीति-कथा
(कथा संक्षिप्त है पर श्लोक के मुख्य बिंदुओं को संवाद के माध्यम से जीवंत करती है।)
8) विश्लेषणात्मक टिप्पणी (एक-दो महत्वपूर्ण बिंदु)
- यह श्लोक नीति-शास्त्र की संक्षिप्तकथा जैसा है — व्यवहारिक गुणों को सूचीबद्ध करते हुए, प्रत्येक गुण का वैयक्तिक व सामाजिक महत्व बताता है।
- श्लोक न केवल व्यक्तिगत आचार-नीति सिखाता है बल्कि पारिवारिक और सामाजिक संरचना (पति-पत्नी, मित्रता, धन का सदुपयोग) पर भी प्रकाश डालता है।
- ध्यान दें: शब्द जैसे “यानुविधायिनी” में व्याख्या-लचीलेपन की गुंजाइश है — इसे शाब्दिक ‘अनुकरण करने वाली’ लगाया गया है पर व्याख्या यह भी हो सकती है कि वह स्त्री पति के सत्कर्मों को प्रोत्साहित/सहयोग करती है — बहुविध-संभावनाओं के साथ यह वाक्य-विन्यास है।
9) निष्कर्ष (संक्षेप में)
यह श्लोक साधारण पर गहन नीति देता है — स्नेह, विवेक, आदर, विनम्रता, तृष्णारहित जीवन, सच्ची मित्रता और इन्द्रिय-नियन्त्रण — ये सभी गुण असली मानवीय उपलब्धियाँ हैं। आज के समय में इन्हें प्रासंगिक बनाये रखने का अर्थ है — दिखावे से ऊपर जाकर नैतिकता, आत्म-नियमन और सहानुभूति को जीवन का केंद्र बनाना।
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