स्नेह, मित्रता और संयम पर संस्कृत नीति श्लोक | Sanskrit Niti Shlok on Friendship, Wealth & Self-Control with Meaning

Sooraj Krishna Shastri
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"जानिए संस्कृत नीति श्लोक का गूढ़ अर्थ — सच्चा मित्र कौन है, धन का सही उपयोग क्या है, और संयमित जीवन से सुख कैसे प्राप्त होता है।"
Discover Sanskrit Niti Shlok on Friendship, Wealth & Self-Control | Meaning in Hindi & English with moral lesson for life and happiness.

स्नेह, मित्रता और संयम पर संस्कृत नीति श्लोक | Sanskrit Niti Shlok on Friendship, Wealth & Self-Control with Meaning


1) संस्कृत श्लोक (पंक्तियाँ)

स स्निग्धोऽकुशलान्निवारयति यस्तत्कर्म यन्निर्मलं
सा स्त्री यानुविधायिनी स मतिमान्यः सद्भिरभ्यर्च्यते।
सा श्रीर्या न मदं करोति स सुखी यस्तृष्णया मुच्यते
तन्मित्रं यदकृत्रिमं स पुरुषो यः खिद्यते नेन्द्रियैः॥

2) अंग्रेजी ट्रान्सलिटरेशन

IAST (सठिक उच्चारण):

sa snigdhoʼkuśalān nivārayati yaḥ tat karma ya nirmalaṃ
sā strī yān uvidhāyinī sa matimān yaḥ sadbhir abhyarcyate।
sā śrī ryā na madaṃ karoti sa sukhī yas tṛṣṇayā mucyate
tat mitraṃ yad akṛtrimaṃ sa puruṣo yaḥ khidyate nendriyaiḥ।

सरल ASCII (अनपठनीय चिन्हों से मुक्त):

sa snigdho'kushalaan nivaarayati yah tat karma ya nirmalam
saa strii yaan uvidhaayinii sa matimaan yah sadbhir abhyarcyate.
saa shriiryaa na madam karoti sa sukhi yas trshnayaa mucyate
tat mitram yad akrtrimam sa purusho yah khidyate nendriyaih.

(टिप्: उद्धरण चिह्न के बाद ʻ का उपयोग संयोग/लघु विसर्जन दर्शाने हेतु किया गया है; सरल वाचन में उसे नजरअंदाज कर सकते हैं।)

स्नेह, मित्रता और संयम पर संस्कृत नीति श्लोक | Sanskrit Niti Shlok on Friendship, Wealth & Self-Control with Meaning
स्नेह, मित्रता और संयम पर संस्कृत नीति श्लोक | Sanskrit Niti Shlok on Friendship, Wealth & Self-Control with Meaning

3) शुद्ध हिन्दी अनुवाद (भावपूर्ण)

  1. जो स्नेही (प्रेमी) है वह अप्रवीणों/अकुशल लोगों को बुरे कर्मों से रोकता है; वही कर्म सत्य है जो निवृत और निर्मल है।
  2. वह स्त्री उत्तम है जो अपने पति के पुण्य-कृत्यों का अनुसरण करती है; वही मनुष्य बुद्धिमान है जिसे सज्जन लोग सम्मान देते हैं।
  3. वही ऐश्वर्य/सम्पत्ति सच्ची है जो घमण्ड न कराती; वही सुखी है जो तृष्णा (लालसा) से मुक्त है।
  4. वही मित्र सच्चा है जो अकृत्रीय (निष्कपट, सच्चा) हो; वही पुरुष सच्चा है जो इंद्रियों द्वारा नियंत्रित नहीं होता।

(सटीकता के लिए वाक्य-संरचना थोड़ा बदलकर भाव-प्रवाह रखा गया है।)


4) शब्दार्थ (प्रत्येक महत्त्वपूर्ण पद का भावार्थ)

  • — वह (पुरुष/व्यक्ति)।
  • स्निग्धः — स्नेहयुक्त, प्रेमी, अनुरक्त; स्नेह से प्रेरित जो हितकारी कार्य करे।
  • अकुशलान् — अ-कुशलान् = कुशल न होने वाले; अकुशल लोग (अनुभवहीन/निरक्षर)।
  • निवारयति — रोकता/वर्जयिता/प्रोत्साहन-प्रतिकूल; किसी बुरे कर्म से रोकना।
  • यः — जो (संबंध सूचक सर्वनाम)।
  • तत् कर्म — वह काम/कर्म।
  • यत् निर्मलम् — जो निर्मल/शुद्ध है।
  • सा स्त्री — वह स्त्री।
  • यानुविधायिनी — अनु-विधायिनी = अनुकरण करने वाली; यहाँ अर्थ है जो पति के सत्कर्मों का अनुसरण करे।
  • स मतिमान् — वही बुद्धिमान (मतिमान् = विवेकी/धार्मिक बुद्धि वाला)।
  • यः सद्धिर्भिर् अभ्यर्च्यते — जिसे सज्जन लोग पूजा/सम्मान करते हैं। (अभ्यर्च्यते = आदरपूर्वक आराधित/पूजित)
  • श्रीर्या — श्रीया = धन/सम्पत्ति/आरोग्य/वैभव (स्त्री रूप में नहीं; पर यहाँ ‘श्री’ का रूपांतरण) — संदर्भानुसार अर्थ: धन-सम्पदा या वैभव।
  • न मदं करोति — घमण्ड नहीं कराती/न अहंकार उत्पन्न करती।
  • स सुखी यः तृष्णया मुच्यते — वही सुखी है जो तृष्णा (इच्छाओं) से मुक्त है।
  • तन्मित्रं यदकृत्रिमम् — जो मित्र है वह अकृत्रिम (नकली नहीं) होना चाहिए — मित्र सच्चा।
  • स पुरुषो यः खिद्यते नेन्द्रियैः — वही पुरुष असल है जो इन्द्रियों (इन्द्रिय-वासनाओं) द्वारा खींचा/नियन्त्रित नहीं होता। (‘खिद्यते’ = आक्रांत/प्रबलित/वश होता) — न खिद्ये अर्थात् इन्द्रिय-वश न होना।

5) व्याकरणात्मक विश्लेषण (पद-स्तर पर — संप्रदायानुसार)

(नीचे प्रमुख पदों का विभाजन, वचन-लिंग-कारक और संभव संधि/समास उल्लेखित है)

  1. स् + स्निग्धः — यहाँ स्निग्धः सर्वनाम के साथ वाक्य-प्रारम्भ में है: "स्निग्धः स..." — संश्लेषित रूप में स स्निग्धः

    • स्निग्धः — पदवाच्य विशेषण (पुरुषलिङ्, एकवचन, प्रथमा)
    • अकुशलान्अ- कुशलान् = अकुशल लोग (द्वितीया विभक्ति, बहुवचन)
    • निवारयति — क्रियापद, वर्तमानकाल, तत्पुरुष संबंध में कर्ता स्निग्धः (वाच्य) के साथ।
    • वाक्य-प्रकार: कर्तृक वाक्य: स्नेही (कर्ता) — निवारयति (क्रिया) — अकुशलान् (कर्म/द्वितीया)।
  2. यः तत् कर्म यत् निर्मलम् — अनुयोग (जो — वह कर्म — जो निर्मल हो)।

    • यः (नामधा-प्रत्यय-व्यवहारक) = सम्बद्धक।
    • तत् कर्म — तत् (संबंध सूचक), कर्म (नाभिकर्ता/कर्मपद)।
    • यत् निर्मलम् — सम्बन्धात्मक उपवाक्य (समुच्चय/परिभाषा)।
  3. दूसरी पंक्ति: सा स्त्री यानुविधायिनीया अनु-विधायिनी = वह स्त्री जो अनुकरण करती है; उपसर्ग 'अनु' + विधा (कृ.विधा?) — यहां यानुविधायिनी = 'यानु-विधायिनी' — सामान्यत: स्त्री-विशेषण जो पति के सत्कर्मों की नकल करती है।

    • स मतिमान् यः सद्भिरभ्यर्च्यतेमतिमान् (विभक्ति: प्रथमा पुरुषलिङ् एकवचन), यः (संबंधक) — सद्धिर्भिर् अभ्यर्च्यते (कर्म/कर्तृ-व्यवहार; यहाँ अभ्यर्च्यते = परास्पर्य-क्रिया, साधन-भाव: सम्मानित होता है)।
  4. तीसरी/चौथी पंक्तियाँ — स्पष्ट सूक्ति-रूप; तृष्णया मुच्यते — तृष्णा-रहित होना = कर्म-विराम/मोक्ष-सम्बन्धी सूचक।

समास/सन्धि: विशेष संधि-प्रकिया यहाँ सामान्य लघु-लिपि में; कई स्थानों पर समास (तत्पुरुष/कर्मधारय- प्रकार) के अर्थ मौजूद — पर इसमें साधारण श्लोक-सूक्ति है, न कोई जटिल समास-रचना।

छन्द/ताल: यह श्लोक पारंपरिक छन्द (उपनिषद्/नीतिश्लोक जैसी लय) का प्रतीत होता है — परन्तु स्पष्ट छन्द-निशानियाँ (मात्रा गणना) बिना अतिरिक्त संदर्भ के कठिन; इसलिए मैं यह नहीं कहूँगा कि यह विशेष रूप से अनुष्टुप या किसी अन्य छन्द में है। (सटीक छन्द-निरुपण हेतु संपूर्ण मात्रा-गणना आवश्यक है।)


6) आधुनिक सन्दर्भ — अर्थ और अनुप्रयोग (व्यावहारिक)

यह श्लोक मूल्य-आधारित व्यवहार के सरल-सुस्पष्ट मानदण्ड देता है — आज के परिप्रेक्ष्य में लागू करें तो:

  • अभिभावक/शिक्षक/मार्गदर्शक: जो युवाओं को बुरी आदतों (जैसे: भ्रष्टाचार, हिंसा, नकारात्मक सोशल मीडिया व्यवहार) से रोकते हैं — वही सच्चे प्रेमी/हितैषी हैं।
  • पति-पत्नी का सहयोग: सम्मान और निष्ठा के साथ पति/पत्नी के सत्कार्यों/सद्गुणों का अनुसरण पारिवारिक सद्भाव बढ़ाता है। (यह目信तिक रूप से अंधानुकरण नहीं, बल्कि प्रेरणादायी अनुकरण का समर्थन करता है।)
  • धन-सम्पत्ति: वास्तविक संपदा वह है जो अहंकार न पैदा करे — आधुनिक संदर्भ में यह सामाजिक उत्तरदायित्व, दान, और विनम्र उपयोग का संदेश देता है।
  • इच्छा-निरसन (तृष्णा से मुक्ति): मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा — अल्प आवश्यकताओं में संतोष, कम उपभोगवादी जीवन, और मानसिक शांति।
  • मित्रता और ईमानदारी: डिजिटल युग में 'अकृत्रीय मित्र' का भाव — नकली व्यवहार, दिखावा और बनावटी सोशल रिलेशनशिप से सचेत रहना।
  • इन्द्रिय-नियन्त्रण: आत्म-नियमन — नशीले पदार्थों, अतिव्यापार, आसक्ति, और आवेग-आधारित निर्णयों से बचना।

इन सिद्धांतों को विद्यालय शिक्षा, पारिवारिक संवाद, और नेतृत्व-प्रशिक्षण में प्रयोग किया जा सकता है।


7) संवादात्मक नीति-कथा (संक्षिप्त)

शैली: शिक्षक — शिष्य संवाद, सरल नीति-कथा

शिक्षक: “पुत्र, बताओ — मित्र कौन है?”
शिष्य: “वही जो साथ देते हैं।”
शिक्षक: “पर साथ देने वाले बहुत हैं — पर असली मित्र कैसे पहचानोगे?”
शिष्य: “जो बुरे काम से रोके, सच्चाई बोले, और जरूरत में खड़ा रहे।”
शिक्षक: “ठीक कहा। वही 'स्निग्ध' मित्र है — जो तुम्हें गलती करने से रोके। और धन — क्या वह सबसे बड़ा लक्ष्य है?”
शिष्य: “नहीं गुरुजी — धन अच्छा है पर जब वह घमण्ड न कराये; और असली सुख तृष्णा न होने में है।”
शिक्षक: “इंद्रिय-आश्चर्यों से मुक्त रहने वाला ही सच्चा पुरुष है। आज के समय में इसका अर्थ क्या होगा?”
शिष्य: “यह कि मैं सोशल मीडिया पर दिखावे के लिए अपने मूल्य न बदलूँ, और जो सही हो वही करूँ।”
शिक्षक मुस्कुराये: “यही जीवन की सच्ची नीति है — वही स्नेही, वही मित्र, वही संपत्ति, वही सुख — और वही पुरुष। अब जाओ और इन सिद्धान्तों के साथ कार्य करो।”

(कथा संक्षिप्त है पर श्लोक के मुख्य बिंदुओं को संवाद के माध्यम से जीवंत करती है।)


8) विश्लेषणात्मक टिप्पणी (एक-दो महत्वपूर्ण बिंदु)

  • यह श्लोक नीति-शास्त्र की संक्षिप्तकथा जैसा है — व्यवहारिक गुणों को सूचीबद्ध करते हुए, प्रत्येक गुण का वैयक्तिक व सामाजिक महत्व बताता है।
  • श्लोक न केवल व्यक्तिगत आचार-नीति सिखाता है बल्कि पारिवारिक और सामाजिक संरचना (पति-पत्नी, मित्रता, धन का सदुपयोग) पर भी प्रकाश डालता है।
  • ध्यान दें: शब्द जैसे “यानुविधायिनी” में व्याख्या-लचीलेपन की गुंजाइश है — इसे शाब्दिक ‘अनुकरण करने वाली’ लगाया गया है पर व्याख्या यह भी हो सकती है कि वह स्त्री पति के सत्कर्मों को प्रोत्साहित/सहयोग करती है — बहुविध-संभावनाओं के साथ यह वाक्य-विन्यास है।

9) निष्कर्ष (संक्षेप में)

यह श्लोक साधारण पर गहन नीति देता है — स्नेह, विवेक, आदर, विनम्रता, तृष्णारहित जीवन, सच्ची मित्रता और इन्द्रिय-नियन्त्रण — ये सभी गुण असली मानवीय उपलब्धियाँ हैं। आज के समय में इन्हें प्रासंगिक बनाये रखने का अर्थ है — दिखावे से ऊपर जाकर नैतिकता, आत्म-नियमन और सहानुभूति को जीवन का केंद्र बनाना।


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