“कर्म का लेख एक गहन दार्शनिक कथा है जो समझाती है कि मनुष्य के जीवन में होने वाली हर घटना का मूल कारण उसके अपने कर्म होते हैं। मृत्यु, काल, नियति और माध्यम केवल परिणाम लाते हैं, कारण नहीं बनते। राजकुमार सुकर्णव की इस प्रेरक कथा से कर्मफल, past life actions और destiny के शाश्वत सिद्धांत को गहराई से समझें।”
“यह प्रेरक कथा बताती है कि मृत्यु, काल और नियति केवल माध्यम हैं—वास्तविक कारण हमारे कर्म हैं। राजकुमार सुकर्णव की कहानी से जानें कर्मफल का गहन रहस्य।”
राजमहल के समीप स्थित वनप्रदेश में एक दिन एक व्याध शिकार की तलाश में भटक रहा था। संध्या का समय था। वृक्षों के पीछे छिपते सूर्य की किरणें लता-बल्लरियों पर सुनहरे रंग बिखेर रही थीं। तभी झाड़ियों में कुछ हलचल हुई। व्याध को भ्रम हुआ कि शायद कोई कस्तूरी मृग है। उसने बिना सोच-विचार के तीर छोड़ दिया।
तीर की गति लताओं को चीरता हुआ आगे बढ़ा और सीधा राजकुमार सुकर्णव के मस्तक में जा लगा।
राजकुमार वहीं धराशायी हो गए।
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| Karma Ki Gahan Gati: Death, Destiny & Past Life Actions की अद्भुत कथा — कर्मफल का गूढ़ रहस्य |
🏛 अंतःपुर में शोक का तूफ़ान
राजकुमार के निधान की खबर जैसे ही महल पहुँची, पूरा अंतःपुर विलाप से भर उठा।
प्रजा का कोई भी व्यक्ति ऐसा न था जिसकी आँखें अपने युवा और तेजस्वी राजकुमार की अर्थी देखकर न छलकी हों।
दाह–संस्कार सम्पन्न हुआ; किंतु पिता महाराज वेनु विकर्ण का शोक अब प्रतिशोध की अग्नि में बदल चुका था। उन्होंने आदेश दिया—
“व्याध को तत्काल कारागार से लाकर सभा में उपस्थित किया जाए!”
🔥 न्याय सभा का क्षण
व्याध को जंजीरों में बाँधकर लाया गया। महाराज का स्वर व्यथा व क्रोध से काँप उठा—
“दुष्ट व्याध! तूने मेरे पुत्र का वध किया है। बता, तुझे मृत्युदंड क्यों न दे दिया जाए?”
सभा में स्तब्ध मौन छा गया। व्याध ने एक-एक कर सबकी ओर देखा।
जब उसकी दृष्टि राजपुरोहित पर ठहरी, उसके मुख पर जैसे कोई स्मृति उभर आई।
🗣 व्याध का अनपेक्षित उत्तर
व्याध ने शांत स्वर में कहा—
“महाराज! मेरा इसमें क्या दोष?
मृत्यु ने आपके पुत्र को लेने का निश्चय किया था। मैं तो केवल माध्यम बन गया।
मेरी बुद्धि भ्रमित हुई और मैंने राजकुमार को मृग समझकर तीर चला दिया।
जिस दंड का आप मुझ पर विचार कर रहे हैं, वही मृत्यु को दीजिए।
और यदि संदेह हो तो राजपुरोहित से पूछ लें—
वे कहते हैं कि विधाता ने जिस आयु का लेखा लिख दिया, उसे कोई बढ़ा या घटा नहीं सकता।
घटनाएँ तो केवल माध्यम होती हैं।”
सभा में हल्की सनसनी फैल गई। महाराज ने राजपुरोहित की ओर देखा।
उनके मौन ने व्याध के कथन को मानो समर्थन दे दिया।
⚡ मृत्यु का आव्हान
महाराज ने आदेश दिया— “मृत्यु को बुलाया जाए!”
मृत्यु उपस्थित हुई और बोली—
“राजन, मैं क्या करती? उनका काल पूर्ण हो चुका था।”
🕒 फिर बुलाया गया — काल
काल ने हाथ जोड़कर विनम्र स्वर में कहा—
“महराज! मैं भी अपना विधान नहीं बदल सकता।
राजकुमार के अपने कर्म ही उनके अकाल-निधन का कारण बने।
कर्मफल से कोई नहीं बच सकता।”
⚖ अब बुलाई गई — कर्म
कर्म उपस्थित हुआ और बोला—
“आर्यश्रेष्ठ! मैं तो जड़ हूँ—
न अच्छा, न बुरा।
मुझे तो आत्मचेतना ही चलाती है।
आप राजकुमार की आत्मा को बुलाकर पूछ लें—
उन्होंने मुझे किस हेतु से क्रियान्वित किया?”
🌬 आत्मा का आगमन
राजकुमार की आत्मा अद्भुत तेज से दीप्त, आकाश में स्थिर प्रकट हुई।
दंडनायक ने पूछा—
“भन्ते! क्या आपने कोई ऐसा कर्म किया था जिसके फलस्वरूप आपको अकाल मृत्यु का भोग करना पड़ा?”
आत्मा मंद मुस्कुराई, फिर गंभीर होकर बोली—
🕉 राजकुमार आत्मा का सत्योद्घाटन
“राजन!
पूर्व जन्म में मैंने इसी स्थान पर मांसाहार की इच्छा से एक मृग का वध किया था।
मरते समय मृग में प्रतिशोध की तीव्र भावना थी।
उसी प्रतिशोध के संस्कार ने इस जन्म में
व्याध की बुद्धि को भ्रमित किया।
इसलिए व्याध निर्दोष है।
ना काल ने मुझे मारा,
ना मृत्यु ने।
मनुष्य के अपने कर्म ही उसे मारते और जलाते हैं।
कर्म की गति गहन है—
गहन और अविचल।
इसलिए राजन, मेरी चिंता छोड़ें।
आप अपने कर्मों का लेखा जोखा सुधारिए।
जीवन की उन्नति, स्वर्ग, मोक्ष—
सब कुछ कर्म पर ही आधारित है।”
🌿 समापन संदेश — कर्म की गहन गति
सभा में मौन छा गया।
महाराज का क्रोध तिरोहित हो चुका था।
अब केवल आत्मचिंतन शेष था।
यह कथा हमें सिखाती है—
✔ कोई घटना आकस्मिक नहीं होती
✔ मृत्यु केवल माध्यम है
✔ काल केवल समय-सीमा है
✔ मूल कारण — कर्म हैं
✔ अपने कर्म ही अगले जन्म का भाग्य बनाते हैं