Niti-Bhakti & Jeevan Darshan: सचिव बैद गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास

Sooraj Krishna Shastri
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मंत्री–वैद्य–गुरु नीति, सद्वैद्य उपदेश, भगवत्-भाव, जीवन-मुक्ति, आत्मोद्धार, माया-जाल, घोड़ा–रहट कथा, नवग्रह-तत्त्व—सबका सुव्यवस्थित आध्यात्मिक संग्रह।


Niti-Bhakti & Jeevan Darshan: सचिव बैद गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास


🕉 १. मंत्री, वैद्य और गुरु पर नीति

सचिव बैद गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस
राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास॥

 अर्थात—मंत्री, वैद्य और गुरु- ये तीन यदि (अप्रसन्नता के) भय या (लाभ की) आशा से (हित की बात न कहकर) प्रिय बोलते हैं (ठकुर सुहाती कहने लगते हैं), तो (क्रमशः) राज्य, शरीर और धर्म- इन तीन का शीघ्र ही नाश हो जाता है॥

यह गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस के सुंदरकांड का एक अत्यंत प्रसिद्ध और नीतिपूर्ण दोहा है।

प्रसंग:

यह बात विभीषण ने लंकापति रावण को उसकी भरी सभा में समझाई थी। जब रावण अहंकार में चूर था और उसके मंत्री डर के मारे सिर्फ उसकी चापलूसी कर रहे थे, तब विभीषण ने उसे यह चेतावनी दी थी।

Niti-Bhakti & Jeevan Darshan: सचिव बैद गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास
Niti-Bhakti & Jeevan Darshan: सचिव बैद गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास

विस्तृत व्याख्या:

सचिव (मंत्री) और राज्य: 

यदि मंत्री राजा के डर से या पद के लोभ में सही सलाह नहीं देगा और सिर्फ राजा की हां में हां मिलाएगा, तो गलत निर्णयों के कारण राज्य जल्दी ही नष्ट हो जाएगा।

बैद (वैद्य/डॉक्टर) और तन (शरीर): 

यदि डॉक्टर मरीज के डर से या पैसे के लालच में उसे कड़वी (लेकिन जरूरी) दवाई नहीं देगा या सही परहेज नहीं बताएगा, तो मरीज का शरीर या स्वास्थ्य जल्दी नष्ट हो जाएगा।

गुर (गुरु) और धर्म: 

यदि गुरु शिष्य के भय से या किसी मोह-माया के कारण उसे सही ज्ञान, अनुशासन और धर्म का मार्ग नहीं दिखाएगा, तो धर्म का नाश हो जाएगा।

सीख:

इन तीन महत्वपूर्ण पदों पर बैठे व्यक्तियों को हमेशा निडर होकर और बिना किसी स्वार्थ के सत्य बोलना चाहिए, भले ही वह सत्य सुनने वाले को कड़वा ही क्यों न लगे। चापलूसी इन तीनों क्षेत्रों में विनाशकारी होती है।


🩺 २. सद्वैद्य का कार्य

एक सद्वैद्य रोगी के रोग का निदान कर उसे वही औषध देता है जो उसके रोग को नाश करने वाली होती है, वह इस बात को नहीं देखता कि दवा कड़वी है या मीठी ! रोगी के मन के अनुकूल है या प्रतिकूल ! रोगी की इच्छा की वह कोई परवाह नहीं करता, रोगी कुपथ्य चाहता है तो वैद्य उसे डाँट देता है उसके बकने-झकने की ओर कोई खयाल नहीं करता और उसके मन के सर्वथा विपरीत उसके लिये कडुवे क्वाथ की व्यवस्था करता है, वह दूसरे दवा बेचने वालों की भाँति मूल्य प्राप्त होते ही मुँहमाँगी दवा नहीं दे देता उसे चिन्ता रहती है रोगी के हिताहित की ! उसका उद्देश्य होता है केवल 'रोग का समूल नाश कर देना !'


🙏 ३. भगवान—सद्वैद्य समान

इसी प्रकार भगवान् भी अपने भक्तों में से जिसके जैसा रोग देखते हैं उसके लिये वैसी ही औषधि की व्यवस्था करते हैं।
अन्यान्य देवताओं की भाँति मुँह माँगा वरदान नहीं दे देते!
उसकी इच्छा क्या है, इसका कोई खयाल नहीं करते बल्कि कई समय तो उसके मन के सर्वथा विपरीत कर देते हैं।


📜 ४. नीति-वचन — राज, धर्म, धन, विवेक

राज नीति बिनु धन बिनु धर्मा!
हरिहि समर्पे बिनु सत्कर्मा ॥
बिद्या बिनु बिबेक उपजाए ।
श्रम फल किये पढे अरू पाये!

संग ते जती कुमंत्र ते राजा ।
मान ते ग्यान पान ते लाजा ॥
प्रीति प्रनय बिनु मद ते गुनी ।
नासहि बेगि नीति अस सुनी ॥

नीति के बिना राज्य , धर्म किये बिना धन , भगवान को समर्पित किये बिना सत्कर्म और बिना विवेक की विद्या ग्रहण करने से केवल परिश्रम ही हाथ लगता है ।

विषयो के संगति से सन्यासी, कुमंत्रणा से राजा , अभिमान से ज्ञान , मदिरा पीने से लजा और बिना नम्रता के प्रेम , इन सबका नाश शीघ्र ही हो जाता है ऐसी नीति कही गई है ।


👁 ५. भगवत्-रसिक का भाव

दुख सुख भुगतै देह, नहिं कछु संक है।
निंदा अस्तुति करौ, राव क्या रंक है।।

परमारथ व्यवहार, बनौ कि ना बनौ ।
अंजन है मम नैन, रसिक भगवत सनौ ।।

भगवत रसिक जी कहते है कि मेरा शरीर सुख भोगता रहे अथवा दुःख, संसार मेरी निंदा करता रहे या स्तुति, मैं धन सम्पन्न हो जाऊँ अथवा कंगाल, परमार्थ या लोक व्यवहार मुझसे बने या न बने इन सब बातों की मुझे कोई परवाह नहीं।
मेरी यही प्रार्थना है कि आप दोनों मेरी आँखों में अंजन बनकर लगे रहें, अर्थात वह रस दृष्टि मिली रहे, जिससे प्रिया प्रियतम के नित्य विहार का अवलोकन बना रहे ।।


🐎 ६. घोड़ा और रहट — जीवन की ठक-ठक में भजन

एक आदमी घोड़े पर कहीं जा रहा था, घोड़े को जोर की प्यास लगी थी। कुछ दूर कुएँ पर एक किसान बैलों से "रहट" चलाकर खेतों में पानी लगा रहा था। मुसाफिर कुएँ पर आया और घोड़े को "रहट" में से पानी पिलाने लगा। पर जैसे ही घोड़ा झुककर पानी पीने की कोशिश करता, "रहट" की ठक-ठक की आवाज से डर कर पीछे हट जाता। फिर आगे बढ़कर पानी पीने की कोशिश करता और फिर "रहट" की ठक-ठक से डरकर हट जाता।

मुसाफिर कुछ क्षण तो यह देखता रहा, फिर उसने किसान से कहा कि थोड़ी देर के लिए अपने बैलों को रोक ले ताकि रहट की ठक-ठक बन्द हो और घोड़ा पानी पी सके। किसान ने कहा कि जैसे ही बैल रूकेंगे कुएँ में से पानी आना बन्द हो जायेगा, इसलिए पानी तो इसे ठक-ठक में ही पीना पड़ेगा।

ठीक ऐसे ही यदि हम सोचें कि जीवन की ठक-ठक (हलचल) बन्द हो तभी हम भजन, सन्ध्या, वन्दना आदि करेंगे तो यह हमारी भूल है। हमें भी जीवन की इस ठक-ठक (हलचल) में से ही समय निकालना होगा, तभी हम अपने मन की तृप्ति कर सकेंगे, वरना उस घोड़े की तरह हमेशा प्यासा ही रहना होगा।

सब काम करते हुए, सब दायित्व निभाते हुए प्रभु सुमिरन में भी लगे रहना होगा, जीवन में ठक-ठक तो चलती ही रहेगी।


🕯 ७. जीवन का उद्देश्य — मुक्ति

जीवन ऐसे जियो जैसे जीवन का हर क्षण एक अवसर हो मुक्ति और जीवन मुक्ति पाने का। न की गुलछर्रे उड़ाने का इसलिए हर क्षण परमात्मा की याद में रहो ।
अक्सर लोगो को कहते सुना होगा कि जब तक जीवन है खाओ पियो और मौज उड़ाओ। खूब कमाओ, खूब खाओ और खूब भोग विलास करो ।

कभी सोचा है की क्या इससे इंसान के रूप में जन्म लेने का उद्देश्य पूरा हो जाएगा
क्या इससे मुक्ति की राह आसानी हो जाएगी?


🫘 ८. मरणासन्न सेठ—“मटका खाली”

एक बार एक सेठ जो तेल का व्यापार करते थे मरणासन्न अवस्था में थे, सभी पुत्र, पुत्रियां, पौत्र, प्रपौत्र उसके आस पास इकठ्ठे हो गए थे। उसकी एक बेटी बहुत ही धर्म परायण थी उसने अपने पिताजी के पास जाकर बोला, पिता जी बोलिए "जय काली, जय काली". सेठ ने जीवन भर तेल का ही काम किया था, वो बोला मटका खाली, मटका खाली।

बहुत प्रयास के बाद भी उसने नहीं बोला जय काली।

निष्कर्ष यह है कि आप जीवन भर जो करेंगे वही आपको अंत समय याद रहेगा। इसलिए हर क्षण परमात्मा को याद करते रहे तभी अंत समय में वे याद आयेंगे।


🌿 ९. आत्म-उद्धार

उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत् ।
आत्मैव ह्रात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मन:

हम अपने आत्म उत्थान और पतन के लिए स्वयं उत्तरदायी होते हैं। हमारे लिए भगवत्प्राप्ति के मार्ग में कोई भी बाधा उत्पन्न नहीं कर सकता। संत और गुरु हमें मार्ग दिखाते हैं, किन्तु हम अपनी इच्छा के मार्ग पर चलना चाहते हैं।


🐦 १०. गुरु-चेला का सिद्धान्त

एक पेड़ पर दो पक्षी बैठे, एक गुरु एक चेला
अपनी करनी गुरु उतरे, अपनी करनी चेला।

एक पेड़ पर दो पक्षी बैठे हैं-एक गुरु और चेला। गुरु का पतन उसके स्वयं के कर्मों से होगा और चेला भी अपने कर्मों से नीचे की ओर गिरेगा।


🪤 ११. माया का जाल — क्षणिक भोग का शैतान

फिर कौन सी मटर गस्ति की बात कर रहे हो ।
उस शैतान की जो तुम्हे कबूतर की तरह बहेलिए के रूप में क्षणिक भोग और आनंद रूपी दानों को डालकर तुम्हारा शिकार करने में लगा हैं और तुम आराम से उसके जाल में फंस जाते हो और दोष परमात्मा को देते हो ।

समं सर्वेषु भूतेषु तिष्ठन्तं परमेश्वरम्।
विनश्यत्स्वविनश्यन्तं यः पश्यति स पश्यति।।

व्यक्ति सभी प्राणियों में समान रूप से स्थित परमात्मा को देखता है, और यह भी समझता है कि जो अविनाशी है, वह नश्वर प्राणियों के भीतर भी अविनाशी है, वही वास्तव में 'देखता है'।

परमात्मा तो तुम्हे दिल की आवाज बनकर हमेशा हर बुरे काम करने से पहले ही चेता देते है की यह काम गलत है मत करो लेकिन क्या तुम अपनी भोग भोगने के धुन में उन्हें सुन पाते हो, सही से समझ पाते हो। जिस तरह मछली को बंशी में चारा दिखा कर तुम मनुष्य उसका शिकार कर उसे मार कर खा जाते हो ठीक उसी तरह ये शैतान तुम्हे क्षणिक भोग का लालच देकर तुम्हारा शिकार करता है ।

जबकि परमात्मा संतो के जरिए, साधुओं, योगियों, जरिए तुम्हे उसके जाल से छुड़ाने के लिए निरंतर प्रयास कर रहे है।
मगर कोई उनकी ओर देखना ही नहीं चाहता उस सत्य का सामना ही नहीं करना चाहता उसे लगता है की यह मायावी दुनिया, दुखों की दुनिया ही सबकुछ है, अगर यही पड़े रहना है तो दुख की घड़ी में किसी अवतार को भी मत पुकारो, जब क्षणिक सुख और आनंद में, गलत कामों में उन्हें याद नहीं करते और ना ही दिल की हिदायत को सुनते हो बस अपने कान बहरा कर भोग का आनंद लेते हो तो उस कर्म का फल भोगने में तुम्हे भगवान कैसे याद आ जाता है?


🪷 १२. नवग्रह—भक्त के आगे रंक

द्वादश चन्द्र, कृतस्थल मंगल, बुद्ध विरुद्ध, सुर-गुरु बंक।
यद्दि दसम्म भवन्न भृगू-सुत, मंद सु केतु जनम के अंक।।
अष्टम राहु, चतुर्थ दिवामणि, तौ हरिवंश करत न संक।
जो पै कृष्ण-चरण मन अर्पित, तौ करि हैं का नवग्रह रंक ।।

इस पद में नवग्रह की कुण्डली में खराब स्थिती बताते हुए, प्रभु की शरणागति व कृपा को सबके ऊपर सर्वोपरि बताया है।

बारहवें मे चन्द्रमा हो, कार्यक्षेत्र में मंगल हो, बुध्द विपरीत (या छटे भाव में) हो और देवताओ के गुरु ब्रहस्पति वक्री हो। यदि दशमे घर मे भृगु-सुत अर्थात शुक्र, शनि व केतु जन्म के अंक में हो।। राहु आठवा हो, चौथा सूर्य तो भी श्रीहितहरिवंश जी महाराज कहते है शंका का स्थान नही है।
क्योंकि जिस का मन श्रीराधवल्लभ लाल जी के चरणानुरागी हो अर्पित हो चुका तौ फिर यह नवग्रह रंक क्या कर सकते है।


Niti Upadesh Hindi

Bhakti Jeevan Darshan

मंत्री वैद्य गुरु नीति

अध्यात्म और नीति शास्त्र

आत्मोद्धार क्या है

जीवन मुक्ति उपदेश

मरणासन्न सेठ कहानी

घोड़ा रहट कथा आध्यात्मिक

Navgrah and Bhakti

Spiritual Notes in Hindi

Bhagwat Bhakti Wisdom

Jeevan ki Niti aur Dharm

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