Sanskaron Ka Patan Hi Rashtra Ki Mrityu Hai – Decline of Values is the Death of the Nation” | भारतीय संस्कृति और आधुनिकता का संघर्ष

Sooraj Krishna Shastri
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"संस्कारों का पतन ही राष्ट्र की मृत्यु है” — यह वाक्य केवल एक चेतावनी नहीं, बल्कि भारत की आत्मा की पुकार है। यह लेख बताता है कि कैसे भारत, जो कभी द्रौपदी के वस्त्रहरण पर शर्म से झुक गया था, आज आधुनिकता और फैशन के नाम पर लज्जा को ‘ग्लैमर’ समझने लगा है। जहाँ श्रीराम ने मर्यादा के लिए राजसिंहासन तक त्याग दिया था, वहीं आज मर्यादा एक मीम बन गई है। यह लेख आधुनिकता और संस्कृति के टकराव, स्त्री सम्मान के पतन, और भारतीय समाज में बदलती मूल्यव्यवस्था का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करता है। इसमें बताया गया है कि जब संस्कार, संकोच, और लज्जा मर जाते हैं, तब समाज जीवित रहकर भी मर जाता है। जानिए क्यों संस्कार ही भारत की आत्मा हैं और क्यों उनका क्षय राष्ट्र की मृत्यु के समान है। यह विचारशील लेख आधुनिक पीढ़ी को अपने मूल से जोड़ने और संस्कारों के पुनर्जागरण का संदेश देता है।

Sanskaron Ka Patan Hi Rashtra Ki Mrityu Hai – Decline of Values is the Death of the Nation” | भारतीय संस्कृति और आधुनिकता का संघर्ष

Sanskaron Ka Patan Hi Rashtra Ki Mrityu Hai – Decline of Values is the Death of the Nation” | भारतीय संस्कृति और आधुनिकता का संघर्ष
Sanskaron Ka Patan Hi Rashtra Ki Mrityu Hai – Decline of Values is the Death of the Nation” | भारतीय संस्कृति और आधुनिकता का संघर्ष

🌺 संस्कारों का पतन ही — राष्ट्र की मृत्यु है


🌿 भूमिका : भारत का आत्मस्वरूप

भारतवर्ष केवल भूमि का टुकड़ा नहीं, यह एक संस्कारों से सिंचित चेतना है।
यह वही भारत है, जहाँ किसी युग में स्त्री के आँसू भी सभ्यता को कंपा देते थे,
जहाँ द्रौपदी के वस्त्रहरण की पीड़ा ने धर्म–अधर्म की सीमाएँ तोड़कर
महाभारत जैसे विराट युद्ध का कारण बनी।

पर आज वही भारत एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है,
जहाँ लज्जा का मूल्य घटा है और प्रदर्शन की प्रवृत्ति बढ़ी है।
जिस समाज ने स्त्री में शक्ति, माता और देवी का स्वरूप देखा,
वही समाज आज उसे आकर्षण, वस्तु और मनोरंजन का माध्यम बना रहा है।


🔥 आधुनिकता के नाम पर मर्यादा का क्षरण

आज का समाज “फ़ैशन” और “मॉडर्निटी” के नाम पर
उन सीमाओं को लांघ रहा है जिन्हें हमारे ऋषि–मुनियों ने
संयम और सौंदर्य के आधार पर रचा था।
स्त्रियाँ स्वयं अपनी लज्जा के वस्त्र उतारने को
“स्वतंत्रता” और “ग्लैमर” कहकर अभिमान करने लगी हैं,
और समाज उस पर ताली बजाकर
“उन्नति” समझ रहा है।

पर क्या यही प्रगति है —
जहाँ देह को आत्मा से ऊपर स्थान मिले?
जहाँ संकोच को मूर्खता समझा जाए,
और मर्यादा का उपहास “मीम” बनकर उड़ाया जाए?


🕉️ राम का देश और मर्यादा का ह्रास

यह वही देश है जहाँ मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने
एक स्त्री के सम्मान के लिए राज–सिंहासन तक त्याग दिया
पर आज उसी राम के देश में
मर्यादा का अर्थ केवल एक चुटकुला बनकर रह गया है।

कभी हमारे पंडित स्त्रियों को तिलक लगाने में भी
सावधानी और मर्यादा रखते थे,
आज वही समाज विवाह के अवसर पर
पुरुषों द्वारा साड़ी पहनाने, मेकअप करने, टैटू बनाने को
“कला” और “प्रोफेशन” का प्रतीक मान रहा है।
दुख इस बात का नहीं कि कार्य बदल गए,
बल्कि इस बात का है कि मूल्य और विवेक भी बदल गए।


🌼 संस्कारों से दूर होती पीढ़ी

कभी हमारे घरों में माँ–बहन के चरण धोकर पुत्र देवता बनता था,
आज वही पुत्र सैलून में देह-स्पर्श को पेशा बना रहा है।
वही परिवार जब यह सुनता है कि
“संस्कारों की बात” की जा रही है,
तो व्यंग्य में कह देता है —
“अब ज़माना बदल गया है!”

पर सत्य यह नहीं कि ज़माना बदला है,
सत्य यह है कि ज़मीर मर गया है।


🌹 संवेदनहीन समाज का संकट

जब लज्जा मनोरंजन बन जाए,
देह संस्कृति से ऊपर उठ जाए,
और स्त्रीत्व बाज़ार में बिकने लगे,
तो वह समाज अपने संस्कारिक अस्तित्व को खो देता है।

यही वह भूमि थी जहाँ कहा गया —

“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:”
(जहाँ स्त्रियाँ पूज्य होती हैं, वहीं देवता निवास करते हैं।)

पर आज उन देवताओं ने पलायन कर लिया है,
क्योंकि पूजा अब देवीत्व की नहीं,
देह के प्रदर्शन की होने लगी है।


🌻 मूल्यहीनता की दिशा में बढ़ता परिवार

आज के घरों में धर्मग्रंथों की जगह “रिल्स” ने ले ली है,
माता–पिता संस्कारों की जगह रैंपवॉक और ग्लैमर से
“आधुनिकता” सिखा रहे हैं।
पर याद रखिए —
“जिस दिन संस्कारों की जड़ें सूख जाएँगी,
उस दिन समाज तो बचेगा, पर धर्म नहीं बचेगा।”


🌞 संस्कार ही भारत की आत्मा हैं

भारत का वैभव किसी भौतिक शक्ति से नहीं,
बल्कि संस्कारों की गहराई और आस्था की ऊँचाई से है।
संस्कार ही इस भूमि की आत्मा हैं,
और आत्मा का पतन ही राष्ट्र की मृत्यु है।


🌺 समापन : चेतना का आह्वान

अब भी समय है —
हम लज्जा को पराजित नहीं, प्रतिष्ठित करें,
संकोच को बंधन नहीं, संस्कृति समझें,
संस्कारों को पिछड़ापन नहीं, पहचान मानें।

क्योंकि जब संस्कार मरते हैं,
तो मनुष्य जीवित रहकर भी मृतक हो जाता है।


🌼
“संस्कारों का पतन ही राष्ट्र की मृत्यु है।”
“संस्कार ही भारत की आत्मा हैं।”

🌸
जय श्री राधे कृष्णा!


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