संस्कृत व्याकरण में स्त्री प्रत्यय (Strī Pratyaya) वे प्रत्यय होते हैं जो पुलिंग (Masculine) शब्दों (प्रातिपदिकों) को स्त्रीलिंग (Feminine) शब्दों में बदलने के लिए उनके अंत में जोड़े जाते हैं।
इन प्रत्ययों के योग से बना शब्द स्त्रीलिंग का बोध कराता है। प्रमुख रूप से सात स्त्री प्रत्यय होते हैं, जिनमें से टाप् (Ṭāp) और ङीप् (Ṅīp) सबसे अधिक प्रयोग में आते हैं।
स्त्री प्रत्यय के भेद
स्त्री प्रत्यय मुख्यतः तीन स्वरान्त रूपों में पाए जाते हैं:
- आ-कारान्त: टाप्, डाप्, चाप्
- ई-कारान्त: ङीप्, ङीष्, ङीन्
- ऊ-कारान्त: ऊङ् (ऊ)
ये सभी प्रत्यय पुलिंग या अ-लिंग शब्दों को स्त्रीलिंग में परिवर्तित करने का कार्य करते हैं।
‘स्त्री प्रत्ययों के वे तीन स्वरूप जिनका शेष “आ” बचता है (टाप्, डाप्, चाप्)’ — का एक अत्यंत व्यवस्थित, शिक्षण-योग्य, सुविन्यस्त एवं व्याकरणशास्त्रीय रूप में प्रस्तुतीकरण:
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| संस्कृत व्याकरण में स्त्री प्रत्यय (Strī Pratyaya) – परिभाषा, प्रकार, सूत्र, और उदाहरण सहित पूर्ण व्याख्या |
🌸 ‘आ’ शेष वाले स्त्री प्रत्यय — टाप्, डाप् और चाप्
(अकारान्त पुलिंग अथवा अलिङ्ग प्रातिपदिकों से स्त्रीलिंग निर्माण के लिए प्रयुक्त)
🔹 १. टाप् प्रत्यय (Ṭāp Pratyaya)
| सूत्र संख्या | सूत्र | अर्थ / प्रयोग | उदाहरण (पुलिंग → स्त्रीलिंग) |
|---|---|---|---|
| पा. ४.१.४ | अजाद्यतष्टाप् | ‘अज’ आदि गण में पठित शब्दों तथा सामान्य अकारान्त पुलिंग शब्दों से स्त्रीलिंग में टाप् प्रत्यय होता है। | बाल → बाला अश्व → अश्वा प्रथम → प्रथमा |
| पा. ४.१.२ | प्रत्ययस्थात् कात् पूर्वस्यात् इदाप्यसुपः | टाप् लगने से पहले ककारान्त शब्दों में ‘क’ से पहले का ‘अ’ ‘इ’ में परिवर्तित होता है। | सर्वक → सर्विका (सर्वक + टाप्) |
🔹 २. डाप् प्रत्यय (Ḍāp Pratyaya)
प्रमुख विशेषता: डाप् प्रत्यय भी ‘आ’ शेष रखता है, किन्तु इसका प्रयोग सीमित एवं विशिष्ट शब्दों के साथ होता है।
| सूत्र संख्या | सूत्र | अर्थ / प्रयोग | उदाहरण (पुलिंग → स्त्रीलिंग) |
|---|---|---|---|
| पा. ४.१.१०३ | श्यावैतेतौ | ‘श्याव’ (साँवला) और ‘एत’ (चितकबरा) शब्दों से स्त्रीलिंग में डाप् प्रत्यय होता है। | श्याव → श्यावा एत → एता |
| पा. ४.१.१०४ | केवलमामकभागधेयटायडजादिभ्यः | ‘केवल’, ‘मामक’, ‘भागधेय’ तथा ‘टायट्’ प्रत्ययों से अन्त होने वाले शब्दों से डाप् प्रत्यय होता है। | केवल → केवला (केवल + डाप्) |
🔹 ३. चाप् प्रत्यय (Cāp Pratyaya)
प्रमुख विशेषता: चाप् प्रत्यय भी ‘आ’ शेष रखता है, किन्तु इसका प्रयोग अत्यंत सीमित और पत्नी अर्थ में होता है।
| सूत्र संख्या | सूत्र | अर्थ / प्रयोग | उदाहरण (पुलिंग → स्त्रीलिंग) |
|---|---|---|---|
| पा. ४.१.२० | सूयाँगस्त्ययोश्च | ‘सूर्य’ और ‘अगस्त्य’ शब्दों से पत्नी अर्थ में चाप् प्रत्यय होता है। | सूर्य → सूर्या (सूर्य की पत्नी) |
| पा. ४.१.७५ | यज्ञसंयोगे च | ‘होतृ’ आदि यज्ञ-संबंधी शब्दों से पत्नी अर्थ में चाप् प्रत्यय होता है। | होता → होत्रा (होता की पत्नी) |
🪷 तुलनात्मक सारांश (Comparative Summary)
| प्रत्यय | शेष | प्रयोग क्षेत्र | विशिष्टता / टिप्पणी |
|---|---|---|---|
| टाप् (Ṭāp) | आ | सामान्य अकारान्त पुलिंग शब्दों से स्त्रीलिंग निर्माण | सबसे व्यापक प्रयोग — अजादि गण के शब्दों में प्रयुक्त |
| डाप् (Ḍāp) | आ | श्याव, एत, केवल आदि विशिष्ट शब्दों से | सीमित प्रयोग — केवल गण-पठित शब्दों के लिए |
| चाप् (Cāp) | आ | सूर्य, होतृ आदि से पत्नी अर्थ में | अत्यंत सीमित — विशिष्ट अर्थ एवं प्रसंग में प्रयुक्त |
🌸 ई-कारान्त स्त्री प्रत्यय : ङीप् (Ṅīp), ङीष् (Ṅīṣ), और ङीन् (Ṅīn)
(इन तीनों प्रत्ययों का शेष ‘ई’ बचता है। ये पुलिंग शब्दों को स्त्रीलिंग में परिवर्तित करते हैं।)
🔹 १. ङीप् प्रत्यय (Ṅīp Pratyaya)
यह स्त्री प्रत्यय सबसे व्यापक रूप से प्रयुक्त होता है और कई भिन्न-भिन्न नियमों के तहत लगता है।
| सूत्र संख्या | सूत्र | अर्थ और प्रयोग | उदाहरण (पुलिंग → स्त्रीलिंग) |
|---|---|---|---|
| पा. ४.१.५ | ऋन्नेभ्यो ङीप् | ऋकारान्त (R-ending) और नकारान्त (N-ending) शब्दों से स्त्रीलिंग में ङीप् प्रत्यय होता है। | कर्तृ → कर्त्री (ऋकारान्त) दण्डिन् → दण्डिनी (नकारान्त) |
| पा. ४.१.१५ | टिड्ढाणञ्द्वयसज्दघ्नञ्मात्रच्तयप्ठकञ्कञ्क्वरपः | जिन शब्दों में 'टि' की इत् संज्ञा होती है (अर्थात् जो टित् प्रत्ययों से बने हों, जैसे ण्वुल् जिसका 'टि' भाग इत्संज्ञक होता है), उनसे ङीप् होता है। | नर्तक → नर्तकी (ण्वुल् प्रत्ययान्त होने के कारण) कुरुचरी → कुरुचरी (टित् प्रत्यय 'णिनि' से निष्पन्न) |
| पा. ४.१.६ | वनो र च | 'वन' अन्त वाले कुछ शब्दों से ङीप् होता है और न् के स्थान पर र् आदेश होता है (जैसे 'राजन्' से)। | राजन् → राज्ञी (राजा की पत्नी) |
| पा. ४.१.७६ | सिद्धगौरादिभ्यश्च | 'सिद्ध' और 'गौर' आदि गण में पठित शब्दों से ङीप् प्रत्यय होता है। | गौर → गौरी (गौर आदि गण में पठित) |
🔹 २. ङीष् प्रत्यय (Ṅīṣ Pratyaya)
ङीष् का प्रयोग मुख्य रूप से जाति (Caste/Profession), आयु (Age) और आनुक् आगम वाले शब्दों से होता है।
| सूत्र संख्या | सूत्र | अर्थ और प्रयोग | उदाहरण (पुलिंग → स्त्रीलिंग) |
|---|---|---|---|
| पा. ४.१.४१ | षिद्गौरादिभ्यश्च | जिन प्रातिपदिकों में 'ष्' की इत् संज्ञा होती है (अर्थात् षिद् प्रत्ययान्त), उनसे ङीष् प्रत्यय होता है। | मात्स्य → मात्स्यी (मत्स्य से ण्यत् प्रत्यय षिद् है) |
| पा. ४.१.४९ | जातेरस्त्रीविषयादयोपधात् | जो शब्द जातिवाचक हैं, जो केवल स्त्रीलिंग में प्रयुक्त नहीं होते, और जिनकी उपधा (अंतिम से पूर्व वर्ण) 'अ' नहीं है, उनसे ङीष् होता है। | ब्राह्मण → ब्राह्मणी (जातिवाचक) |
| पा. ४.१.४८ | इन्द्रवरुणभवशर्वरुद्रमृडहिमारण्ययवयवनमातुलाचार्याणामानुक् | इन्द्र आदि शब्दों से स्त्रीलिंग बनाने के लिए पहले आनुक् (आन्) का आगम होता है, और फिर ङीष् प्रत्यय लगता है (यह पत्नी अर्थ में होता है)। | इन्द्र + आनुक् + ङीष् → इन्द्राणी आचार्य + आनुक् + ङीष् → आचार्याणी (आचार्य की पत्नी) |
| पा. ४.१.६३ | वोतो गुणवचनात् | 'उ' या 'ऊ' अन्त वाले गुणवाचक शब्दों से ङीष् होता है। | मृदु → मृद्वी (कोमल/मृदु गुण) |
🔹 ३. ङीन् प्रत्यय (Ṅīn Pratyaya)
ङीन् प्रत्यय का प्रयोग सबसे सीमित है, यह विशिष्ट गणों या कुछ विशेष प्रत्ययान्त शब्दों से ही होता है।
| सूत्र संख्या | सूत्र | अर्थ और प्रयोग | उदाहरण (पुलिंग → स्त्रीलिंग) |
|---|---|---|---|
| पा. ४.१.१५ | यञश्च | 'यञ्' प्रत्यय से अन्त होने वाले शब्दों से ङीन् प्रत्यय होता है। | युवन् → युवती ('युवन्' शब्द को 'युव' आदेश होकर) |
| पा. ४.१.७ | शार्ङ्गरवाद्यो ङीन् | 'शार्ङ्गरव' आदि गण में पठित शब्दों से ङीन् प्रत्यय होता है। | शार्ङ्गरव → शार्ङ्गरवी |
| पा. ४.१.२९ | नित्यं सपत्नी | 'समान पति वाली' अर्थ में सपत्नी शब्द सिद्ध होता है (ङीन् प्रत्यय के साथ)। | समान + पति → सपत्नी |
💡 ऊ-कारान्त प्रत्यय : ऊङ् (Ūṅ)
यद्यपि आपने 'ई-कारान्त' के बारे में पूछा, फिर भी ऊ-कारान्त प्रत्यय ऊङ् (शेष 'ऊ') का उल्लेख करना उचित है, क्योंकि यह स्त्रीलिंग का तीसरा मुख्य स्वरूप है।
| सूत्र संख्या | सूत्र | अर्थ और प्रयोग | उदाहरण (पुलिंग → स्त्रीलिंग) |
|---|---|---|---|
| पा. ४.१.६६ | ऊङुत | 'उ' अन्त वाले (ऊकारादि) शब्दों से ऊङ् प्रत्यय होता है। यह पत्नी अर्थ में होता है। | वधू → वधूः (स्वयं ऊकारान्त होने के कारण) क्रोष्ट्र → क्रोष्टूः (सियारनी) |

