संस्कृत व्याकरण के चौदह माहेश्वर सूत्र से प्रत्याहार बनाने की प्रकिया

Sooraj Krishna Shastri
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महर्षि पाणिनि
महर्षि पाणिनि

 संस्कृत व्याकरण दुनिया का सर्वप्रथम व्याकरण है जो कि संक्षेपीकरण में अग्रगण्य है। किसी भी बात को कण्ठस्थ करने के लिए हम सब शार्टकट ढूँढते है। यह  संक्षेप हमें संस्कृत व्याकरण में देखने को मिलता है। शब्द संक्षेप के कारण ही हम कम शब्दों में ही बहुत सारी बातें कह देते हैं। संस्कृत व्याकरण के मूर्धन्य आचार्य महामुनि पाणिनि ने इसी संक्षेपीकरण की प्रक्रिया को ध्यान में रखते हुए छः प्रकार के साधनों का निरूपण अष्टाध्यायी आदि ग्रन्थों में किया।

1. प्रत्याहार
2. अनुबन्ध
3. गण
4. संज्ञाएँ
5. अनुवृत्ति
6. परिभाषाएँ ,    

इनमें से प्रथम है प्रत्याहार जिसकी हम यहाँ पर चर्चा करने चल रहे हैे -
प्रत्याहार  किसे कहते हैं ?
   दो अक्षरों का कई अक्षरों को अपने भीतर समाविष्ट कर लेना प्रत्याहार  कहलाता है। जैसे - अक् प्रत्याहार  अ, इ, उ, ऋ,लृ अक्षरों को समाविष्ट कर लेता है। केवल अक् दो अक्षर कह देने मात्र से पाँच अक्षरों का बोध हो जाता है। यही संक्षेपीकरण की प्रक्रिया संस्कृत व्याकरण को उच्चता प्रदान करती है। 
प्रत्याहार  कैसे बनता है ?
  शिव जी के डमरु से निकले चौदह सूत्रों को माहेश्वर सूत्र कहा जाता है। इन्हीं चौदह माहेश्वर सूत्रों से प्रत्याहारों की रचना होती है जोकि निम्नलिखित हैं -
चौदह माहेश्वर सूत्र 

1. अइउण्
2. ऋलृक्
3. एओङ्
4. ऐऔच्
5. हयवरट्
6. लण्
7. ञमङणनम्
8. झभञ्
9. घढधश्
10. जबगडदश्
11. खफछठथचटतव्
12. कपय्
13. शषसर्
14. हल्

  इनमें से जो वर्ण हल् हैं अर्थात् स्वरहीन हैं वे इत् संज्ञक कहे जाते हैं जिनकी हलन्त्यम्(1.3.3) सूत्र से इत्संज्ञा हो जाती है। इन चौदह सूत्रों में परिगणित इत् संज्ञक वर्ण से भिन्न कोई भी वर्ण इत् संज्ञा वाले अक्षर के पूर्व मिलाकर लिखा जाता है तब प्रत्याहार  बनता है। यह प्रक्रिया आदिरन्त्येन सहेता(1.1.71) सूत्र पर आधारित है। जैसे -
 अच् प्रत्याहार  में अइउण् के अ से लेकर ऐऔच् के इत्संज्ञक च् वर्ण तक ग्रहण किया जाता है। अच् प्रत्याहार  में चार माहेश्वर सूत्रों का ग्रहण होता है -  अइउण्, ऋलृक्, एओङ्, ऐऔच्। अब अइउण् के अ वर्ण से लेकर ऐऔच् के च् वर्ण के मध्य आने वाले वर्णों की अच् संज्ञा होगी अर्थात् ये अच् प्रत्याहार  कहे जाएँगे।  अइउण् आदि सूत्रों के अन्तिम वर्णों की इत् संज्ञा होने के कारण ण्, क्, ङ् आदि की गणना प्रत्याहार  के वर्णों में नहीं की जाती है केवल प्रत्याहारों की संज्ञा में अन्तिम हल् वर्ण का प्रयोग दिखता है जैसे - ऐऔच् सूत्र का च् वर्ण अच् प्रत्याहार संज्ञा में दिखता है जोकि आदिरन्त्येन सहेता सूत्र में निर्दिष्ट है। इसी तरह से अन्य प्रत्याहार  भी आप बना सकते हैं।
   वैसे तो हजारों प्रत्याहार  इन्हीं चौदह सूत्रों से बनाए जा सकते हैं परन्तु महर्षि पाणिनि ने अष्टाध्यायी व्याकरण शास्त्र की रचना में केवल 42 प्रत्याहारों का ही परिगणन किया है। जोकि निम्नलिखित हैं -

वर्ण प्रत्याहार संख्या
अक्, अच्, अट्,अण्, अण्, अम्, अल्, अश्, अण्  9
इक्, इच्2
उक् 1
एङ्, एच्
2
ऐ्च्1
खय्, खर्2
ङम्1
चय्, चर्2
छव्1
जश्1
झय्, झर्, झल्, झश्, झष्5
बश्1
भष्1
मय्1
यञ्, यण्, यम्, यर्, यय्2
रल्1
वल्, वश्2
शर्, शल्2
हल्, हश्2

कुल योग42

इसके अलावा "र" भी एक प्रत्याहार  माना जाता है जिससे प्रत्याहारों की संख्या 43 हो जाती है।

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