अनुबन्ध किसे कहते हैं ?

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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Maharshi Panini
Maharshi Panini



अनुबन्ध

   इत् संज्ञक अक्षरों को अनुबन्ध कहा जाता है। इन इत् संज्ञकों का यद्यपि लोप हो जाता है परन्तु इनका प्रयोग दूसरे प्रकार से किया जाता है। ये अनुबन्ध इस प्रकार हैं - 

  1. हलन्त्यम्(१.३.३) - उपदेशों के अन्त में आने वाला हल्।
  2. उपदेशेऽजनुनासिक इत्(१.३.२) - धातु, प्रत्यय, आगम, आदेश आदि उपदेश के मूल में स्थित अनुनासिक स्वर।
  3. आदिर्ञिटुडवः(१.३.५) - किसी धातु के प्रारम्भ में प्रयुक्त ञि, टु, डु आदि  इत् संज्ञक अनुबन्ध।
  4. षः प्रत्ययस्य(१.३.६) - किसी प्रत्यय के आदि में आने वाला ष्।
  5. चुटू(१.३.७) - किसी प्रत्यय के आदि में आने वाले चवर्ग(च, छ, ज, झ, ञ्) और टवर्ग(ट, ठ, ड, ढ, ण)।
  6. लशक्वतद्धिते(१.३.८) - तद्धित प्रत्ययों से अलग प्रत्ययों के आदि में आने वाले ल्, श् और कवर्ग(क,ख, ग, घ ङ्)।
ये अनुबन्ध प्रायः वृद्धि, गुण, आगम, आदेश, उदात्तादि स्वर आदि प्रक्रियाओं के निमित्त बनते हैं। जैसे - स्त्री प्रत्यय का विधान करने वाला सूत्र - षिद्गौरादिभ्यश्च(४.१.४१)। इसमें जिन प्रत्ययों में ष् इत् होता है, उन प्रत्ययों वाले शब्दों में स्त्रीलिङ्ग के द्योतनार्थ ङीष् प्रत्यय जुड़ता है, जैसे - रजक(रञ्ज +ष्वुन्) शब्द में ष्वुन् प्रत्यय आया है। अतः ङीप् जुड़कर रजकी रूप बनेगा। इन अनुबन्धों का उपयोग वैदिक भाषा पर विचार करते समय महर्षि पाणिनि ने अधिक किया है।

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