भागवत प्रथम स्कन्ध, चतुर्दश अध्याय(हिन्दी अनुवाद)

Sooraj Krishna Shastri
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भागवत प्रथम स्कन्ध, चतुर्दश अध्याय(हिन्दी अनुवाद)

यह रहा अर्जुन के हस्तिनापुर लौटने का दृश्य, जहाँ वे भगवान श्रीकृष्ण के निधन के बाद दुखी और व्यथित अवस्था में युधिष्ठिर के चरणों में गिरते हैं। वातावरण शोकमय और गंभीर है।



भागवत प्रथम स्कन्ध, चतुर्दश अध्याय(हिन्दी अनुवाद)

 नीचे भागवत प्रथम स्कन्ध, चतुर्दश अध्याय(हिन्दी अनुवाद) के प्रत्येक श्लोक का हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया गया है:


श्लोक 1

सूत उवाच
सम्प्रस्थिते द्वारकायां जिष्णौ बन्धुदिदृक्षया।
ज्ञातुं च पुण्यश्लोकस्य कृष्णस्य च विचेष्टितम्॥

हिन्दी अनुवाद:
सूत जी बोले: अर्जुन द्वारका के लिए प्रस्थान कर गए थे। उनका उद्देश्य अपने बंधुओं से मिलना और पुण्यश्लोक भगवान श्रीकृष्ण की गतिविधियों के बारे में जानकारी प्राप्त करना था।


श्लोक 2

व्यतीताः कतिचिन्मासाः तदा नायात् ततोऽर्जुनः।
ददर्श घोररूपाणि निमित्तानि कुरूद्वहः॥

हिन्दी अनुवाद:
कुछ महीने बीत गए, लेकिन अर्जुन वापस नहीं लौटे। कुरुवंश के श्रेष्ठ राजा युधिष्ठिर ने तब अनेक भयानक अपशकुन देखे।


श्लोक 3

कालस्य च गतिं रौद्रां विपर्यस्तर्तुधर्मिणः।
पापीयसीं नृणां वार्तां क्रोधलोभानृतात्मनाम्॥

हिन्दी अनुवाद:
युधिष्ठिर ने देखा कि समय की गति भयंकर हो गई है। ऋतुओं के धर्म उलट गए हैं, और मनुष्य क्रोध, लोभ और असत्य में लिप्त होकर पापमय जीवन जी रहे हैं।


श्लोक 4

जिह्मप्रायं व्यवहृतं शाठ्यमिश्रं च सौहृदम्।
पितृमातृसुहृद्‍भ्रातृ दम्पतीनां च कल्कनम्॥

हिन्दी अनुवाद:
व्यवहार कपटपूर्ण हो गया है। सौहार्द में शाठ्यता आ गई है। पिता, माता, बंधु-बांधव और पति-पत्नी के बीच भी कटुता उत्पन्न हो गई है।


श्लोक 5

निमित्तान्यत्यरिष्टानि काले तु अनुगते नृणाम्।
लोभादि अधर्मप्रकृतिं दृष्ट्वोवाचानुजं नृपः॥

हिन्दी अनुवाद:
जब मनुष्यों में लोभ और अधर्म की प्रकृति बढ़ती देखी गई, तो राजा युधिष्ठिर ने इन अपशकुनों को देखकर अपने भाई से कहा।


श्लोक 6

युधिष्ठिर उवाच
सम्प्रेषितो द्वारकायां जिष्णुर्बन्धु दिदृक्षया।
ज्ञातुं च पुण्यश्लोकस्य कृष्णस्य च विचेष्टितम्॥

हिन्दी अनुवाद:
युधिष्ठिर ने कहा: अर्जुन को द्वारका हमारे बंधुओं के दर्शन करने और पुण्यश्लोक भगवान श्रीकृष्ण की गतिविधियों के बारे में जानकारी लेने के लिए भेजा गया था।


श्लोक 7

गताः सप्ताधुना मासा भीमसेन तवानुजः।
नायाति कस्य वा हेतोः नाहं वेदेदमञ्जसा॥

हिन्दी अनुवाद:
भीमसेन! सात महीने बीत चुके हैं, लेकिन तुम्हारे अनुज अर्जुन अभी तक वापस नहीं लौटे। इसका कारण क्या है, मैं नहीं जानता।


श्लोक 8

अपि देवर्षिणाऽऽदिष्टः स कालोऽयमुपस्थितः।
यदाऽऽत्मनोऽङ्‌गमाक्रीडं भगवान् उत्सिसृक्षति॥

हिन्दी अनुवाद:
क्या देवर्षि नारद ने हमें बताया था कि वह समय आ गया है, जब भगवान अपने शरीररूपी क्रीड़ास्थल को त्यागने वाले हैं?


श्लोक 9

यस्मान्नः सम्पदो राज्यं दाराः प्राणाः कुलं प्रजाः।
आसन् सपत्‍नविजयो लोकाश्च यदनुग्रहात्॥

हिन्दी अनुवाद:
जिनके अनुग्रह से हमें संपत्ति, राज्य, पत्नियाँ, प्रजा, जीवन और शत्रुओं पर विजय प्राप्त हुई थी, क्या उनके साथ कुछ अनहोनी हो गई है?


श्लोक 10

पश्योत्पातान् नरव्याघ्र दिव्यान् भौमान् सदैहिकान्।
दारुणान्शंसतोऽदूराद् भयं नो बुद्धिमोहनम्॥

हिन्दी अनुवाद:
हे नरश्रेष्ठ! अनेक भयंकर दिव्य, भौम और सांसारिक अपशकुन दिखाई दे रहे हैं। ये हमारे लिए बुद्धि को मोहित करने वाला भय पैदा कर रहे हैं।


श्लोक 11

ऊर्वक्षिबाहवो मह्यं स्फुरन्त्यङ्‌ग पुनः पुनः।
वेपथुश्चापि हृदये आरात् दास्यन्ति विप्रियम्॥

हिन्दी अनुवाद:
मेरी जाँघें, भुजाएँ और आँखें बार-बार फड़क रही हैं। मेरा हृदय भी कांप रहा है, जिससे किसी अनहोनी की आशंका हो रही है।


श्लोक 12

शिवैषोद्यन्तं आदित्यं अभिरौति अनलानना।
मामङ्‌ग सारमेयोऽयं अभिरेभत्यभीरुवत्॥

हिन्दी अनुवाद:
सूर्य जो उदय हो रहा है, वह अपनी अग्निमय मुख से चीत्कार कर रहा है। और यह कुत्ता भयभीत होकर मुझ पर भौंक रहा है।


श्लोक 13

शस्ताः कुर्वन्ति मां सव्यं दक्षिणं पशवोऽपरे।
वाहांश्च पुरुषव्याघ्र लक्षये रुदतो मम॥

हिन्दी अनुवाद:
कुछ पशु मेरे दाहिने और बाएँ दोनों ओर चल रहे हैं। हे नरश्रेष्ठ! मैंने देखा कि मेरे वाहन भी रो रहे हैं।


श्लोक 14

मृत्युदूतः कपोतोऽयं उलूकः कम्पयन् मनः।
प्रत्युलूकश्च कुह्वानैः अनिद्रौ शून्यमिच्छतः॥

हिन्दी अनुवाद:
कबूतर जो मृत्यु का संकेत देने वाला है, और उल्लू जो डराने वाली आवाज कर रहा है, ये मेरे मन को भयभीत कर रहे हैं।


श्लोक 15

धूम्रा दिशः परिधयः कम्पते भूः सहाद्रिभिः।
निर्घातश्च महांस्तात साकं च स्तनयित्‍नुभिः॥

हिन्दी अनुवाद:
दिशाएं धुएं से भरी हुई हैं, पृथ्वी और पर्वत कांप रहे हैं। साथ ही, भयंकर गर्जन के साथ आकाश में बिजली चमक रही है।


श्लोक 16

वायुर्वाति खरस्पर्शो रजसा विसृजंस्तमः।
असृग् वर्षन्ति जलदा बीभत्सं इव सर्वतः॥

हिन्दी अनुवाद:
वायु कठोर स्पर्श के साथ चल रही है, और धूल उड़ाकर अंधकार फैला रही है। बादल जैसे चारों ओर रक्त बरसा रहे हों, ऐसा प्रतीत हो रहा है।


श्लोक 17

सूर्यं हतप्रभं पश्य ग्रहमर्दं मिथो दिवि।
ससङ्‌कुलैर्भूतगणैः ज्वलिते इव रोदसी॥

हिन्दी अनुवाद:
सूर्य की किरणें मंद हो गई हैं। आकाश में ग्रहों का आपसी टकराव हो रहा है। आकाश और पृथ्वी भयावह प्रज्वलित प्रतीत हो रहे हैं।


श्लोक 18

नद्यो नदाश्च क्षुभिताः सरांसि च मनांसि च।
न ज्वलत्यग्निराज्येन कालोऽयं किं विधास्यति॥

हिन्दी अनुवाद:
नदियाँ और सरोवर अशांत हो गए हैं, और अग्नि भी घी डालने पर जल नहीं रही है। यह समय क्या करने वाला है, यह समझ में नहीं आ रहा।


श्लोक 19

न पिबन्ति स्तनं वत्सा न दुह्यन्ति च मातरः।
रुदन्त्यश्रुमुखा गावो न हृष्यन्ति ऋषभा व्रजे॥

हिन्दी अनुवाद:
बछड़े अपनी माताओं का दूध नहीं पी रहे हैं, और गायें दूध नहीं दे रही हैं। वे आँसू बहा रही हैं, और वृषभ भी प्रसन्न नहीं हो रहे हैं।


श्लोक 20

दैवतानि रुदन्तीव स्विद्यन्ति ह्युच्चलन्ति च।
इमे जनपदा ग्रामाः पुरोद्यानाकराश्रमाः।
भ्रष्टश्रियो निरानन्दाः किमघं दर्शयन्ति नः॥

हिन्दी अनुवाद:
देवताओं की मूर्तियाँ जैसे रो रही हैं, पसीना बहा रही हैं और काँप रही हैं। नगर, गाँव, बाग-बगीचे और आश्रम सब उजड़े हुए और आनंदहीन लग रहे हैं। ये क्या अनहोनी संकेत दे रहे हैं?


श्लोक 21

मन्य एतैर्महोत्पातैः नूनं भगवतः पदैः।
अनन्यपुरुषश्रीभिः हीना भूर्हतसौभगा॥

हिन्दी अनुवाद:
इन भयंकर अपशकुनों से ऐसा प्रतीत होता है कि भगवान श्रीकृष्ण के दिव्य चरणों का स्पर्श छूटने के कारण पृथ्वी अपनी सारी शोभा खो चुकी है।


श्लोक 22

इति चिन्तयतस्तस्य दृष्टारिष्टेन चेतसा।
राज्ञः प्रत्यागमद् ब्रह्मन् यदुपुर्याः कपिध्वजः॥

हिन्दी अनुवाद:
इस प्रकार अपशकुनों के कारण चिंतित राजा युधिष्ठिर ने अर्जुन को लौटते देखा, जो द्वारका से वापस आ रहे थे।


श्लोक 23

तं पादयोः निपतितं अयथापूर्वमातुरम्।
अधोवदनं अब्बिन्दून् सृजन्तं नयनाब्जयोः॥

हिन्दी अनुवाद:
अर्जुन राजा के चरणों में गिर पड़े। वे पहले की तरह नहीं दिख रहे थे, उनका चेहरा उदास था, और आँखों से आँसू बह रहे थे।


श्लोक 24

विलोक्य उद्विग्नहृदयो विच्छायं अनुजं नृपः।
पृच्छति स्म सुहृत् मध्ये संस्मरन् नारदेरितम्॥

हिन्दी अनुवाद:
अपने अनुज अर्जुन को उद्विग्न और अपनी छाया से रहित देखकर राजा युधिष्ठिर का हृदय व्याकुल हो गया। उन्होंने मित्रों के बीच नारद मुनि द्वारा कही बातों को याद करते हुए अर्जुन से प्रश्न किया।


श्लोक 25

युधिष्ठिर उवाच
कच्चिदानर्तपुर्यां नः स्वजनाः सुखमासते।
मधुभोजदशार्हार्ह सात्वतान्धकवृष्णयः॥

हिन्दी अनुवाद:
युधिष्ठिर ने पूछा: क्या अनर्त (द्वारका) नगरी में हमारे सभी बंधु—मधु, भोज, दशार्ह, सात्वत, अंधक और वृष्णि वंश के लोग सुखपूर्वक निवास कर रहे हैं?


श्लोक 26

शूरो मातामहः कच्चित् स्वस्त्यास्ते वाथ मारिषः।
मातुलः सानुजः कच्चित् कुशल्यानकदुन्दुभिः॥

हिन्दी अनुवाद:
क्या हमारे मातामह शूरसेन स्वस्थ हैं? और क्या हमारे मामा वसुदेव तथा उनके भाई कुशलपूर्वक हैं?


श्लोक 27

सप्त स्वसारस्तत्पत्‍न्यो मातुलान्यः सहात्मजाः।
आसते सस्नुषाः क्षेमं देवकीप्रमुखाः स्वयम्॥

हिन्दी अनुवाद:
क्या वसुदेव की सात बहनें, उनके पतिगण, भतीजे और उनकी बहुएं, विशेषकर देवकी, सभी कुशलपूर्वक हैं?


श्लोक 28

कच्चिद् राजाऽऽहुको जीवति असत्पुत्रोऽस्य चानुजः।
हृदीकः ससुतोऽक्रूरो जयन्तगदसारणाः॥

हिन्दी अनुवाद:
क्या उग्रसेन महाराज और उनके दुष्ट पुत्र कंस के भाई जीवित हैं? क्या हृदीक और उनके पुत्र, अक्रूर, जयंत, गद, सारण आदि कुशल से हैं?


श्लोक 29

आसते कुशलं कच्चित् ये च शत्रुजिदादयः।
कच्चिदास्ते सुखं रामो भगवान् सात्वतां प्रभुः॥

हिन्दी अनुवाद:
क्या शत्रुजीत और अन्य लोग कुशल से हैं? क्या भगवान बलराम, जो सात्वत वंश के स्वामी हैं, सुखपूर्वक निवास कर रहे हैं?


श्लोक 30

प्रद्युम्नः सर्ववृष्णीनां सुखमास्ते महारथः।
गम्भीररयोऽनिरुद्धो वर्धते भगवानुत॥

हिन्दी अनुवाद:
क्या सभी वृष्णियों के महायोद्धा प्रद्युम्न सुखपूर्वक हैं? और क्या गंभीर स्वभाव वाले अनिरुद्ध भगवान बढ़ते जा रहे हैं?


श्लोक 31

सुषेणश्चारुदेष्णश्च साम्बो जाम्बवतीसुतः।
अन्ये च कार्ष्णिप्रवराः सपुत्रा ऋषभादयः॥

हिन्दी अनुवाद:
क्या सुषेण, चारुदेष्ण और जाम्बवती के पुत्र साम्ब सहित अन्य श्रेष्ठ कार्ष्णि वंशज और उनके पुत्र जैसे ऋषभ आदि कुशलपूर्वक हैं?


श्लोक 32

तथैवानुचराः शौरेः श्रुतदेवोद्धवादयः।
सुनन्दनन्दशीर्षण्या ये चान्ये सात्वतर्षभाः॥

हिन्दी अनुवाद:
क्या श्रुतदेव, उद्धव, सुनंद, नंद और शौर्यवंशी सात्वत वंश के अन्य श्रेष्ठजन कुशलपूर्वक हैं?


श्लोक 33

अपि स्वस्त्यासते सर्वे रामकृष्ण भुजाश्रयाः।
अपि स्मरन्ति कुशलं अस्माकं बद्धसौहृदाः॥

हिन्दी अनुवाद:
क्या भगवान राम और कृष्ण की भुजाओं के संरक्षण में सभी कुशल हैं? क्या वे सभी, जो हमारे प्रति मित्रता और स्नेह रखते हैं, हमारा कुशलक्षेम याद करते हैं?


श्लोक 34

भगवानपि गोविन्दो ब्रह्मण्यो भक्तवत्सलः।
कच्चित्पुरे सुधर्मायां सुखमास्ते सुहृद्‌वृतः॥

हिन्दी अनुवाद:
क्या भगवान गोविंद, जो ब्राह्मणों के प्रति दयालु और भक्तों के स्नेही हैं, अपने मित्रों के साथ द्वारका में सुधर्मा सभा में सुखपूर्वक निवास कर रहे हैं?


श्लोक 35

मङ्‌गलाय च लोकानां क्षेमाय च भवाय च।
आस्ते यदुकुलाम्भोधौ आद्योऽनन्तसखः पुमान्॥

हिन्दी अनुवाद:
जो यदुकुल सागर में प्रथम पुरुष हैं, अनन्तदेव के मित्र हैं, और लोकों के कल्याण, सुरक्षा और भलाई के लिए सदा स्थित रहते हैं, क्या वे कुशल हैं?


श्लोक 36

यद्‌बाहुदण्डगुप्तायां स्वपुर्यां यदवोऽर्चिताः।
क्रीडन्ति परमानन्दं महापौरुषिका इव॥

हिन्दी अनुवाद:
क्या यदुकुल के सभी योद्धा, जो भगवान श्रीकृष्ण की भुजाओं से संरक्षित अपनी नगरी में निवास करते हैं, परमानंद में क्रीड़ा कर रहे हैं, जैसे महान पुरुषों के समान?


श्लोक 37

यत् पादशुश्रूषणमुख्य कर्मणा
सत्यादयो द्व्यष्टसहस्रयोषितः।
निर्जित्य सङ्‌ख्ये त्रिदशांस्तदाशिषो
हरन्ति वज्रायुधवल्लभोचिताः॥

हिन्दी अनुवाद:
भगवान श्रीकृष्ण की सेवा में तत्पर सोलह हजार से अधिक रानियाँ, जो उनके चरणों की दासी बनकर भी देवताओं का गर्व हर लेती हैं, क्या वे सुखी हैं?


श्लोक 38

यद्‌बाहुदण्डाभ्युदयानुजीविनो
यदुप्रवीरा ह्यकुतोभया मुहुः।
अधिक्रमन्त्यङ्‌घ्रिभिराहृतां बलात्
सभां सुधर्मां सुरसत्तमोचिताम्॥

हिन्दी अनुवाद:
यदुवंश के वीर योद्धा, जो भगवान श्रीकृष्ण की भुजाओं की शक्ति से निर्भय हैं, क्या वे बार-बार अपनी शक्ति के बल पर देवताओं की सुधर्मा सभा में प्रवेश कर रहे हैं?


श्लोक 39

कच्चित्तेऽनामयं तात भ्रष्टतेजा विभासि मे।
अलब्धमानोऽवज्ञातः किं वा तात चिरोषितः॥

हिन्दी अनुवाद:
हे तात! क्या तुम्हें कोई बीमारी हो गई है? तुम्हारा तेज लुप्त होता दिख रहा है। क्या तुम्हें सम्मान नहीं मिला, या तुम्हारे साथ कोई अवमानना हुई?


श्लोक 40

कच्चित् नाभिहतोऽभावैः शब्दादिभिरमङ्‌गलैः।
न दत्तमुक्तमर्थिभ्य आशया यत्प्रतिश्रुतम्॥

हिन्दी अनुवाद:
क्या तुम किसी अपशकुन से प्रभावित हो? क्या किसी याचक को दिए गए वचन के अनुसार कुछ देने में असफल रहे हो?


श्लोक 41

कच्चित्त्वं ब्राह्मणं बालं गां वृद्धं रोगिणं स्त्रियम्।
शरणोपसृतं सत्त्वं नात्याक्षीः शरणप्रदः॥

हिन्दी अनुवाद:
क्या तुमने किसी ब्राह्मण, बालक, गाय, वृद्ध, रोगी या स्त्री को, जो शरण में आई हो, उनकी रक्षा करने में असफलता दिखाई है?


श्लोक 42

कच्चित्त्वं नागमोऽगम्यां गम्यां वासत्कृतां स्त्रियम्।
पराजितो वाथ भवान् नोत्तमैर्नासमैः पथि॥

हिन्दी अनुवाद:
क्या तुमने किसी ऐसी स्त्री के साथ अनुचित संबंध बनाए, जो तुम्हारे लिए वर्जित थी? या क्या तुम किसी श्रेष्ठ या अशक्त व्यक्ति से युद्ध में पराजित हुए?


श्लोक 43

अपि स्वित्पर्यभुङ्‌क्थास्त्वं सम्भोज्यान् वृद्धबालकान्।
जुगुप्सितं कर्म किञ्चित् कृतवान्न यदक्षमम्॥

हिन्दी अनुवाद:
क्या तुमने वृद्धों और बच्चों के भोजन पर अनुचित अधिकार किया? या कोई ऐसा कार्य किया जो घृणित और अनुचित हो?


श्लोक 44

कच्चित्प्रेष्ठतमेनाथ हृदयेनात्मबन्धुना।
शून्योऽस्मि रहितो नित्यं मन्यसे तेऽन्यथा न रुक्॥

हिन्दी अनुवाद:
क्या तुम अपने प्रिय बंधु से अलग होने के कारण स्वयं को शून्य अनुभव कर रहे हो? क्या यही दुःख तुम्हारे हृदय को पीड़ा दे रहा है?


इति श्रीमद्‌भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां प्रथमस्कन्धे युधिष्टिरवितर्को नाम चतुर्दशोऽध्यायः॥

इस प्रकार श्रीमद्भागवत महापुराण के प्रथम स्कंध में "युधिष्ठिर के विचार" नामक चौदहवां अध्याय समाप्त हुआ।


यह भागवत प्रथम स्कन्ध, चतुर्दश अध्याय(हिन्दी अनुवाद) के श्लोकों का पूरा अनुवाद है। यदि भागवत प्रथम स्कन्ध, चतुर्दश अध्याय(हिन्दी अनुवाद) के बारे में और कुछ जानकारी या सहायता चाहिए, तो कृपया बताएं।

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