A Father: पिता की वास्तविकता और उसकी अनदेखी तथा कद्र

Sooraj Krishna Shastri
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A Father: पिता की वास्तविकता और उसकी अनदेखी तथा कद्र
A Father: पिता की वास्तविकता और उसकी अनदेखी तथा कद्र


पिता की वास्तविकता और उसकी अनदेखी तथा कद्र

संघर्ष की शुरुआत

45 वर्षीय दीवान को उसकी नौकरी से निकाल दिया गया था। यह पिछले बारह महीनों में तीसरी बार था जब उसे इस कड़वे अनुभव से गुजरना पड़ा। बढ़ते कंप्यूटर के उपयोग ने उसे कमजोर बना दिया था। उसने कंप्यूटर चलाना सीखा तो था, लेकिन युवा कर्मचारियों जैसी दक्षता नहीं थी, जिससे गलतियाँ हो जाती थीं।

रात को वह हताश होकर घर लौटा। घर में प्रवेश करते ही पत्नी ने तानों की बौछार कर दी—

"कहाँ थे इतनी रात तक? किसी औरत के साथ तो नहीं थे? घर में जवान बेटा-बेटी बैठे हैं, उनकी शादी की उम्र निकल रही है, और तुम्हें कोई परवाह नहीं!"

दीवान चुप रहा। वह जवाब देने की स्थिति में नहीं था। तभी उसकी बेटी आई और कहा—

"पापा, मेरा मोबाइल लाए क्या? आपने सुबह वादा किया था!"

दीवान के पास कोई जवाब नहीं था। जिस मोबाइल के लिए उसने बॉस से एडवांस मांगा था, उसी वजह से उसकी नौकरी चली गई थी।

परिवार की बेरुखी

पत्नी और बच्चों को उसकी परेशानियों से कोई मतलब नहीं था। बेटे-बेटी पढ़ाई में कम, सोशल मीडिया में ज्यादा रुचि रखते थे। प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल होना तो दूर की बात थी। बेटा शराब पीने लगा था और जब दीवान ने उसे टोका, तो बेटे ने उसका हाथ पकड़ लिया और गुस्से में आँखें तरेर दीं। उस दिन के बाद दीवान ने उसे कुछ कहना ही छोड़ दिया।

रात को पत्नी की चिक-चिक के बीच वह चुपचाप सो गया और अगली सुबह फिर नौकरी की तलाश में निकल पड़ा।

नियति का क्रूर मजाक

भूखा-प्यासा, दफ्तरों के चक्कर काटते-काटते उसकी शुगर लो हो गई। कमजोरी के कारण उसका शरीर सुन्न पड़ गया। अनजाने में वह फुटपाथ से सड़क पर आ गया, और एक तेज़ रफ्तार ट्रोला उसके ऊपर से गुजर गया। दीवान को तड़पने का भी मौका नहीं मिला—वह वहीं सड़क पर दम तोड़ गया।

पिता के जाने के बाद का परिवर्तन

दीवान की मृत्यु के बाद पूरा घर बदल गया—

  • जिन रिश्तेदारों से मदद की उम्मीद थी, वे फोन उठाना भी बंद कर चुके थे।
  • कर्जदार रोज़ घर का चक्कर लगाने लगे।
  • इंटरनेट कनेक्शन कट गया। अब सोशल मीडिया नहीं, बल्कि हकीकत उनके सामने थी।
  • बेटा सात हजार रुपये महीने की नौकरी करने लगा, बेटी एक प्राइवेट स्कूल में पाँच हजार कमाने लगी।
  • पत्नी का श्रृंगार छिन गया। अब वह घंटों शीशे के सामने नहीं खड़ी रहती थी।
  • पहले जो निश्चिंत होकर सोया करती थी, अब रातभर करवटें बदलती रहती थी।

अब सब समझ चुके थे कि दीवान उनके लिए क्या था—
"वह सिर्फ एक इंसान नहीं, बल्कि घर की शांति, भोजन, कपड़ा, मकान और सपनों की बुनियाद था।"

सबक

पिता की कद्र करें। जब तक वह जीवित हैं, उनकी मेहनत को समझें, उनका सम्मान करें। अगर वह चले गए, तो बस अंधेरा ही अंधेरा रहेगा।

बाप की कदर किया करो, अगर वह गुजर गया तो जीवन में अंधेरा छा जाएगा।

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