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भागवत कथा: नरकासुर वध, पारिजात हरण तथा श्रीकृष्ण के 16100 विवाह की कथा |
भागवत कथा: नरकासुर वध, पारिजात हरण तथा श्रीकृष्ण के 16100 विवाह की कथा
1. नरकासुर कौन था?
नरकासुर को 'भौमासुर' भी कहा जाता है क्योंकि वह पृथ्वी (भूमि देवी) का पुत्र था। वह भगवान वराह और भूमि देवी के संयोग से उत्पन्न हुआ था। पहले वह एक धार्मिक और सदाचारी राजा था, परंतु असुरों की संगति और शक्ति के मद में वह अत्याचारी बन गया।
उसने १६,१०० कन्याओं का अपहरण कर उन्हें अपने कारागार में बंद कर रखा था। इसके अतिरिक्त, उसने देवताओं के आभूषण (जैसे इन्द्र के कुंडल, ऐरावत से उत्पन्न दिव्य हाथी आदि) तथा अमरावती में स्थित मणियों को भी लूट लिया। उसने देवताओं को स्वर्ग से खदेड़ दिया और उनकी प्रतिष्ठा को चुनौती दी।
2. इन्द्र का निवेदन और कृष्ण का प्रस्थान
श्लोक १-२:
"इन्द्रेण हृतछत्रेण हृतकुण्डलबन्धुना ।हृतामराद्रिस्थानेन ज्ञापितो भौमचेष्टितम् ॥ २ ॥सभार्यो गरुडारूढः प्राग्ज्योतिषपुरं ययौ ॥"
जब इन्द्र ने अपनी छत्र, कुंडल, और अमरावती के स्वामित्व को खो दिया, तब उसने श्रीकृष्ण से निवेदन किया। श्रीकृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ गरुड़ पर आरूढ़ होकर प्राग्ज्योतिषपुर (नरकासुर की राजधानी) की ओर प्रस्थान करते हैं।
3. भयंकर दुर्ग का ध्वंस
श्लोक ३-५:
"गिरिदुर्गैः शस्त्रदुर्गैः जलाग्न्यनिलदुर्गमम् ।मुरपाशायुतैर्घोरैः दृढैः सर्वत आवृतम् ॥ ३ ॥"
यह नगर चारों ओर से पहाड़ों, अग्नि, जल और वायु की दुर्गम रचनाओं से सुरक्षित था। वहाँ मुर नामक राक्षस की मायावी पाशयुक्त सेनाएँ थीं। श्रीकृष्ण ने उन्हें अपने गदा, चक्र, बाण से भेदकर विनष्ट कर दिया।
4. मुर का वध
श्लोक ६-१०:
"मुरः शयान उत्तस्थौ दैत्यः पञ्चशिरा जलात् ॥ ६ ॥...शिरांसि चक्रेण जहार लीलया ॥ १० ॥"
शंखध्वनि सुनकर मुर नामक पञ्चशिरा दैत्य उठता है और त्रिशूल लेकर आक्रमण करता है। श्रीकृष्ण उसकी गदा को चीरते हैं और चक्र से उसके पाँचों सिर काट देते हैं। इसी कारण श्री कृष्ण का एक नाम मुरारी पड़ गया।
5. नरकासुर का युद्ध और वध
श्लोक १४-२१:
"शूलं भौमोऽच्युतं हन्तुं आददे वितथोद्यमः ।तद्विसर्गात् पूर्वमेव नरकस्य शिरो हरिः ॥ २१ ॥"
श्रीकृष्ण गरुड़ पर सवार होकर युद्ध भूमि में उतरते हैं। नरकासुर भी समस्त सैन्य के साथ युद्ध करता है। अंत में जब वह शूल से श्रीकृष्ण को मारना चाहता है, तभी भगवान उसे चक्र से काट देते हैं।
6. भूमि देवी की विनती और शरणागति
श्लोक २४-३१:
"नमस्ते देवदेवेश शङ्खचक्रगदाधर ।भक्तेच्छोपात्तरूपाय परमात्मन्नमोऽस्तु ते ॥ २५ ॥"
भूमि देवी प्रकट होकर श्रीकृष्ण की स्तुति करती हैं। वे उनके परमात्मा स्वरूप को स्वीकार करती हैं और उनसे नरकासुर की संतान को आश्रय देने की विनती करती हैं।
7. १६,१०० कन्याओं की रक्षा
श्लोक ३२-३६:
"तत्र राजन्यकन्यानां षट्सहस्राधिकायुतम् ।भौमाहृतानां विक्रम्य राजभ्यो ददृशे हरिः ॥ ३३ ॥"
भगवान उन कन्याओं को कारागार से मुक्त करते हैं। वे सभी श्रीकृष्ण को अपना पति स्वीकार कर लेती हैं। श्रीकृष्ण उन्हें सम्मान सहित द्वारका भेजते हैं।
8. पारिजात हरण
श्लोक ३८-४०:
"चोदितो भार्ययोत्पाट्य पारीजातं गरुत्मति ।आरोप्य सेन्द्रान् विबुधान् निर्जित्योपानयत् पुरम् ॥ ३९ ॥"
सत्यभामा की इच्छा पर श्रीकृष्ण इन्द्रलोक से पारिजात वृक्ष लाते हैं। इस पर देवताओं और श्रीकृष्ण में युद्ध भी होता है, पर अंततः श्रीकृष्ण विजय प्राप्त करते हैं और वह वृक्ष द्वारका में रोपित किया जाता है।
9. भगवान का अचिन्त्य स्वरूप
श्लोक ४२-४३:
"अथो मुहूर्त एकस्मिन् नानागारेषु ताः स्त्रियः ।यथोपयेमे भगवान् तावद् रूपधरोऽव्ययः ॥ ४२ ॥"
भगवान ने सभी १६,१०० कन्याओं से एक ही मुहूर्त में विवाह कर लिया और हर एक के साथ अलग-अलग रूप में गृहस्थ जीवन का पालन किया। यह उनकी अचिन्त्य लीला का प्रमाण है।
10. निष्कर्ष
नरकासुर के वध की कथा धर्म और अधर्म के संघर्ष का प्रतीक है। श्रीकृष्ण द्वारा भूमि देवी को भयमुक्त करना, कन्याओं को सम्मान देना, और देवताओं की प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित करना, यह दर्शाता है कि जब-जब अधर्म बढ़ता है, तब भगवान स्वयं अवतरित होते हैं।