संस्कृत श्लोक: "व्यालं बालमृणालतन्तुभिरसौ रोद्धुं समज्जृम्भते " का अर्थ और हिन्दी अनुवाद, सुभाषितानि,सुविचार,संस्कृत श्लोक,नीति के श्लोक,
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संस्कृत श्लोक: "व्यालं बालमृणालतन्तुभिरसौ रोद्धुं समज्जृम्भते " का अर्थ और हिन्दी अनुवाद |
संस्कृत श्लोक: "व्यालं बाल-मृणाल-तन्तुभिरसौ रोद्धुं समुजृम्भते " का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
आज के श्लोक का विस्तृत विश्लेषण जो कि नीतिशतक से उद्धृत किया जा रहा है, जिसमें श्लोक के साथ उसका शाब्दिक अन्वय, व्याकरणिक विवेचन, भावार्थ, और आधुनिक सन्दर्भ भी प्रस्तुत है।
श्लोक
शाब्दिक अन्वय व अर्थ:
- व्यालम् — विषधर सर्प / उग्र जीव (metaphorically: हिंसक या उद्दंड व्यक्ति)
- बालमृणालतन्तुभिः — कोमल मृणाल (कमल डंठल) के तन्तुओं से
- रोद्धुं — रोकने के लिए
- समुजृम्भते — यत्न करता है / उद्यत होता है
- वज्रमणिम् — वज्र के समान कठोर रत्न (हीरा)
- शिरीषकुसुमप्रान्तेन — शिरीष पुष्प की कोमल पंखुड़ी से
- छेतुं सन्नह्यति — काटने का प्रयास करता है
- माधुर्यम् — मिठास
- मधुबिन्दुना — मधु की एक बूंद से
- रचयितुम् क्षाराम्बुधेः — खारे समुद्र के जल में घोलने की कोशिश करता है
- इहते — प्रयास करता है
- यः — जो मनुष्य
- खलान् — दुष्टों को
- पथि सताम् — सत्पथ पर (श्रेष्ठ आचरण पर)
- सुक्तैः सुधा स्यन्दिभिः — अमृत-सदृश मधुर सुभाषित वचनों द्वारा
- नेतुम् वाञ्छति — ले जाना चाहता है
व्याकरणिक विश्लेषण:
- बालमृणालतन्तुभिः — तृतीया बहुवचन (करण कारक)
- व्यालम्, वज्रमणिम्, माधुर्यम्, खलान् — द्वितीया एकवचन (कर्म कारक)
- सन्नह्यति, समजृम्भते, इहते, वाञ्छति — लट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन
- सुक्तैः सुधास्यन्दिभिः — तृतीया बहुवचन, विशेषण + विशेष्य
भावार्थ:
आधुनिक सन्दर्भ में:
आज के युग में जब नैतिकता का पतन हो रहा है, बहुत से लोग मानते हैं कि केवल अच्छे शब्दों और उपदेशों से दुष्टों या भ्रष्ट लोगों का हृदय-परिवर्तन सम्भव है। परन्तु यह श्लोक यथार्थवादी दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है — कि केवल मधुर वाणी या उपदेश से उद्दंड प्रवृत्ति वाले व्यक्ति में सुधार लाना अत्यन्त कठिन या असम्भव है, जैसे:
- यदि एक भ्रष्ट नेता या अधिकारी को केवल नैतिक उपदेशों से सही रास्ते पर लाने की चेष्टा की जाए, तो उसमें सफलता मिलना अत्यन्त दुर्लभ है।
- एक हिंसक प्रवृत्ति के व्यक्ति को बिना उपयुक्त नियंत्रण और उपाय के केवल सुभाषित वचन बोलकर परिवर्तित नहीं किया जा सकता।
संदेश:
शास्त्र और नीति दोनों यही कहते हैं कि नीति, उपदेश और शक्ति — तीनों का संतुलन आवश्यक है। जहाँ विनय काम न आए, वहाँ नीति और शक्ति का प्रयोग आवश्यक है।
संक्षिप्त कथा : “मृदुता का दुरुपयोग”
शिक्षा
- मृदुता श्रेष्ठ है, परंतु दुष्टता पर सीमा होनी चाहिए।
- कुछ व्यक्तियों के लिए केवल मधुरता नहीं, दृढ़ता और न्याय भी आवश्यक है।
- नीति वही है, जो समय के अनुसार, विवेक के साथ प्रयोग की जाए।
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