संस्कृत श्लोक: "नास्ति मेघसमं तोयं नास्ति चात्मसमं बलम्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

Sooraj Krishna Shastri
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संस्कृत श्लोक: "नास्ति  मेघसमं  तोयं  नास्ति  चात्मसमं  बलम्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
संस्कृत श्लोक: "नास्ति  मेघसमं  तोयं  नास्ति  चात्मसमं  बलम्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

संस्कृत श्लोक: "नास्ति  मेघसमं  तोयं  नास्ति  चात्मसमं  बलम्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

यह श्लोक प्रकृति के महत्त्वपूर्ण तत्वों और उनके अतुलनीय योगदान को दर्शाता है। इसे विस्तार से समझते हैं—


श्लोक

नास्ति मेघसमं तोयं नास्ति चात्मसमं बलम्।
नास्ति चक्षुः समं तेजो नास्ति धान्य समं प्रियम्॥

हिन्दी अनुवाद

बादलों के समान पवित्र जल प्रदान करने वाला कोई अन्य स्रोत नहीं है, आत्मबल के समान कोई अन्य बल नहीं है, नेत्रों के समान कोई अन्य प्रकाश (तेज) नहीं है, और अन्न के समान प्रिय (जीवन के लिए आवश्यक) कोई अन्य वस्तु नहीं है।


शाब्दिक विश्लेषण

  1. नास्ति – नहीं है
  2. मेघसमं – मेघ (बादल) के समान
  3. तोयं – जल
  4. नास्ति – नहीं है
  5. चात्मसमं – आत्म (स्वयं) के समान
  6. बलम् – बल (शक्ति)
  7. नास्ति – नहीं है
  8. चक्षुःसमं – नेत्रों के समान
  9. तेजः – प्रकाश, तेज
  10. नास्ति – नहीं है
  11. धान्यसमं – अन्न (अन्न-धन) के समान
  12. प्रियम् – प्रिय (मनभावन, जीवन के लिए आवश्यक)

व्याकरणिक विश्लेषण

  1. नास्ति – "न" (निषेध) + "अस्ति" (धातु √अस् – 'होना') → न + अस्ति = नास्ति (नहीं है)।
  2. समास
    • मेघसमं तोयं → "मेघसमं" (तुल्यार्थक समास, अव्ययीभाव)
    • चात्मसमं बलम् → "आत्मसमं" (तुल्यार्थक समास, अव्ययीभाव)
    • चक्षुःसमं तेजः → "चक्षुःसमं" (तुल्यार्थक समास, अव्ययीभाव)
    • धान्यसमं प्रियम् → "धान्यसमं" (तुल्यार्थक समास, अव्ययीभाव)

आधुनिक संदर्भ में व्याख्या

  1. जल का महत्त्व – वर्षा जल शुद्ध और प्राकृतिक होता है, जिसका कोई अन्य विकल्प नहीं। आज प्रदूषण और जल संकट के समय में स्वच्छ जल का संरक्षण अत्यंत आवश्यक है।
  2. आत्मबल (आत्मविश्वास) का महत्त्व – बाहरी शक्तियाँ अल्पकालिक हो सकती हैं, लेकिन आत्मबल स्थायी होता है। किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए आत्मबल सबसे बड़ा संबल है।
  3. नेत्रों (दृष्टि) का महत्त्व – आँखों के बिना संसार अंधकारमय हो जाता है। डिजिटल युग में आँखों की रक्षा अत्यंत आवश्यक है।
  4. अन्न (धान्य) का महत्त्व – भोजन जीवन के लिए अपरिहार्य है। खाद्यान्न उत्पादन, भंडारण और संतुलित आहार का महत्त्व बढ़ता जा रहा है।

निष्कर्ष

यह श्लोक हमें जल, आत्मबल, नेत्रज्योति, और अन्न के मूल्य को समझने का संदेश देता है। आधुनिक युग में भी ये चारों तत्व जीवन के आधार हैं, जिनका संरक्षण और सम्मान आवश्यक है।

यदि आप इस पर और गहराई से चर्चा करना चाहते हैं या कोई अन्य श्लोक इसी संदर्भ में चाहते हैं, तो अवश्य बताइए!

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