नवरात्रि विशेष: नवरात्रि का पारण कब करना चाहिए?

Sooraj Krishna Shastri
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नवरात्रि विशेष: नवरात्रि का पारण कब करना चाहिए?
नवरात्रि विशेष: नवरात्रि का पारण कब करना चाहिए?

 

यहाँ आपके दिए गए विषयवस्तु को व्यवस्थित, सुगठित एवं सुबोध रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिससे यह स्पष्ट, शिक्षाप्रद और सुसंगठित लगे—


प्रश्न:

नवरात्रि का पारण कब करना चाहिए?

उत्तर:
दशमी को।


शास्त्रीय आधार:

निर्णयसिन्धु (द्वितीय परिच्छेद, पृष्ठ 317) के अनुसार —

"सा च दशम्यां कार्या"

"आश्विने मासि शुक्ले तु कर्तव्यं नवरात्रकम्।
प्रतिपदादि क्रमेणैव यावच्च नवमी भवेत्।।"

जब नवरात्र का व्रत प्रतिपदा से नवमी तक होता है, तो उसका पारण दशमी को करना शास्त्रसम्मत माना गया है।


नवरात्र व्रत के आठ प्रकार

(संदर्भ: निर्णयसिन्धु, श्रीमद्देवीभागवत 3/27/13)

  1. आद्यन्तः

    • केवल प्रतिपदा और नवमी को व्रत।
  2. रसवसुसहितः

    • षष्ठी से अष्टमी तक (रस = 6, वसु = 8)।
  3. सिन्धुनवम्यन्तः

    • सप्तमी से नवमी तक।
  4. समध्यमः

    • प्रतिपदा, पंचमी (मध्यमा), और नवमी को।
  5. सर्वपैत्रीनिशा (वसुरात्र्यन्तः)

    • अमावस्या की रात्रि से अष्टमी की रात्रि तक।
  6. एकाह्नभोजनः

    • नौ दिन एक समय भोजन
  7. प्रतिपदामारभ्य नवमीव्रतम्

    • प्रतिपदा से नवमी तक फलाहार या निराहार, और दशमी को पारण
  8. अशक्तो व्रती

    • यदि कोई पूर्ण व्रत में असमर्थ है, तो उसे अष्टमी को विशेष पूजा करनी चाहिए।

नोट:
इन आठ व्रतों में से केवल दूसरे (रसवसु), पाँचवे (सर्वपैत्रीनिशा), और आठवें (अशक्तो) व्रतों में नवमी को पारण होता है।
शेष सभी में दशमी को पारण ही शास्त्रसम्मत है।


विवादास्पद श्लोक और उसका सन्दर्भ

(निर्णयसिन्धु में रुद्रयामल का उद्धरण)

"नवम्यां पारिता देवि कुलवृद्धिं करोति वै।
दशम्यां पारिता देवी कुलनाशं करोति वै।
तस्मात्तु पारणं कुर्यान्नवम्यां विबुधादयः।।"

इस श्लोक को बिना संदर्भ के प्रस्तुत कर भ्रम फैलाया जा रहा है।

वास्तविक संदर्भ:
यह श्लोक एक विशेष राजा के "लौहाभिसारक व्रत" के लिए है, जो अष्टमी तक ही चलता है। इसीलिए उसमें नवमी को पारण करने की बात कही गई है।


लौहाभिसारक व्रत (विशिष्ट व्रत)

"जयाभिलाषी नृपति: प्रतिपत्प्रभृति क्रमात्।
लौहाभिसारिकं कर्म कारयेद्यावदष्टमी।।"

इसमें व्रत चार प्रकार से किया जाता है:

  • अयाची: मौन रहकर
  • एकाशी: एक बार भोजन
  • नक्ताशी: रात में भोजन
  • अम्बुद: केवल जलपान

इस व्रत का पारण नवमी को ही करना अनिवार्य है, अन्यथा व्रत भंग हो जाता है। यह नियम सामान्य व्यक्ति पर लागू नहीं होता।


निष्कर्ष:

  • सामान्य व्यक्ति, जो प्रतिपदा से नवमी तक नवरात्र व्रत करता है, उसका पारण दशमी को करना शास्त्रीय रूप से प्रमाणित है।
  • विशिष्ट लौहाभिसारक व्रत करने वाले के लिए ही नवमी को पारण का विधान है।
  • किसी श्लोक या उद्धरण को संदर्भ से अलग कर प्रस्तुत करना भ्रांति उत्पन्न कर सकता है।

अतः—
“सा च दशम्यां कार्या” — यही सामान्य नवरात्र व्रत का पारण सिद्धांत है।

🌷 जय माता दी! 🌷

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