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संस्कृत श्लोक: "प्राणा यथाऽऽत्मनोऽभीष्टा भूतानामपि ते तथा" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद |
संस्कृत श्लोक: "प्राणा यथाऽऽत्मनोऽभीष्टा भूतानामपि ते तथा" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
🙏 जय श्री राम 🌷 सुप्रभातम् 🙏
प्रस्तुत श्लोक अत्यंत उदात्त भावना से परिपूर्ण है—सर्वभूतदया और आत्मौपम्य (स्व से समानता का भाव)। आइए इस श्लोक को पूरे पांडित्यपूर्ण ढंग से—श्लोकार्थ, व्याकरण, शाब्दिक अर्थ, आधुनिक सन्दर्भ—विस्तृत रूप में प्रस्तुत करते हैं।
श्लोक
प्राणा यथाऽऽत्मनोऽभीष्टा भूतानामपि ते तथा।
आत्मौपम्येन भूतानां दयां कुर्वन्ति साधवः॥
हिन्दी पद्यानुवाद
जैसे प्राण प्रिय हों अपने, वैसे सबको जान।
स्व-जैसे ही भूत समझ, करें साधु कृपान॥
शाब्दिक अर्थ
- प्राणाः — प्राण, जीवन
- यथा — जैसे
- आत्मनः — अपने (स्व)
- अभीष्टाः — अत्यंत प्रिय
- भूतानाम् — प्राणियों के
- अपि ते तथा — वे भी वैसे ही
- आत्मौपम्येन — आत्म-समानता के आधार पर
- दयाम् — दया
- कुर्वन्ति — करते हैं
- साधवः — सज्जन पुरुष, सन्त
व्याकरणिक विश्लेषण
- प्राणा – प्राण शब्द, पुल्लिंग, बहुवचन, प्रथमा विभक्ति
- आत्मौपम्येन – आत्म + उपम्या (समानता) + तृतीया विभक्ति
- दयां कुर्वन्ति – कृ धातु, लट् लकार, वर्तमान काल, कर्तरि प्रयोग, बहुवचन
- साधवः – साधु शब्द का बहुवचन
तात्पर्य
जैसे हर मनुष्य को अपने प्राण अत्यंत प्रिय होते हैं, उसी प्रकार प्रत्येक प्राणी को भी अपने प्राण प्रिय होते हैं। सज्जन पुरुष इस आत्मतुल्यता को समझकर सब प्राणियों पर दया करते हैं।
आधुनिक सन्दर्भ में अर्थविस्तार
- समानुभूति (Empathy): यह श्लोक समभाव और संवेदना का संदेश देता है—दूसरों की पीड़ा को अपनी मानना।
- अहिंसा का मूल: महात्मा गांधी की अहिंसा इसी भावना पर आधारित थी।
- पर्यावरण और पशु संरक्षण: जब हम समझते हैं कि सभी जीव अपने जीवन को प्रिय मानते हैं, तो हम हिंसा, अत्याचार और शोषण से दूर होते हैं।
- शिक्षा और समाज: यह दृष्टिकोण शिक्षा में करुणा का आधार बन सकता है—character education का मूल यही है।
नैतिक संदेश
“दया तब सच्ची होती है जब हम दूसरों को भी अपने जैसा अनुभव करें।”
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