Hanuman Jayanti Vishesh: "यत्र-यत्र रघुनाथ कीर्तनम" के आधार पर विश्लेषण। भागवत दर्शन सूरज कृष्ण शास्त्री, जयंती,जयन्ती,भारतीय पर्व, श्रवण और मनन।
![]() |
Hanuman Jayanti Vishesh: "यत्र-यत्र रघुनाथ कीर्तनम" के आधार पर विश्लेषण। |
Hanuman Jayanti Vishesh: "यत्र-यत्र रघुनाथ कीर्तनम" के आधार पर विश्लेषण।
1. जहाँ-जहाँ प्रभु की भक्ति, कथा या भजन-कीर्तन, वहाँ श्री हनुमानजी की उपस्थिति
जहाँ-जहाँ प्रभु की भक्ति, कथा या भजन-कीर्तन, वहाँ भगवन् भक्त हमेशा हाजिर रहते हैं। प्रभु माने जो भी भगवान हो चाहे भगवान राम हो, भगवान कृष्णजी हो चाहे भगवान भोलेनाथ हो चाहे भगवान श्री हरि हो, हनुमानजी की रूचि है जहाँ-जहाँ भगवान की कथा होती है, कीर्तन होता है वहाँ-वहाँ श्री हनुमानजी बैठकर सुनते हैं, हमारे पास सत (सत्य) नहीं है अतः पहचान नहीं पाते।
प्रस्तुत श्लोक भगवान श्रीराम के परम भक्त श्री हनुमानजी की भक्ति-सिद्धि और सतत उपस्थिति को दर्शाने वाला अत्यंत प्रसिद्ध श्लोक है। इसका अनुवाद, व्याकरणिक विश्लेषण एवं भावार्थ नीचे क्रमशः प्रस्तुत है—
श्लोक
शब्दार्थ
- यत्र-यत्र – जहाँ-जहाँ
- रघुनाथ – रघुकुल के स्वामी, श्रीराम
- कीर्तनम् – गुणगान, कथा, स्तुति
- तत्र-तत्र – वहाँ-वहाँ
- कृत – किए हुए
- मस्तक – सिर
- अञ्जलिम् – हाथ जोड़कर प्रणाम
- वाष्प – जलवाष्प, अश्रु
- वारि – जल (यहाँ भी अश्रुजल)
- परिपूर्ण – पूर्ण भरे हुए
- लोचनम् – नेत्र
- मारुतिं – पवनपुत्र हनुमान को
- नमत – प्रणाम करो
- राक्षसान्तकम् – राक्षसों का नाश करने वाले श्रीराम (या स्वयं हनुमान)
शुद्ध हिंदी अनुवाद
जहाँ-जहाँ श्रीराम का कीर्तन होता है, वहाँ-वहाँ पवनपुत्र हनुमान सिर झुकाकर हाथ जोड़े उपस्थित रहते हैं। उनके नेत्र प्रेमाश्रुओं से भरे होते हैं। ऐसे राक्षसों का नाश करने वाले मारुति श्रीहनुमान को हम प्रणाम करते हैं।
भावार्थ
यह श्लोक श्री हनुमानजी की नित्य-सजीव भक्ति और अनन्य रामाश्रय का अत्यंत हृदयस्पर्शी चित्र प्रस्तुत करता है। जब भी कहीं श्रीराम का कीर्तन, कथा, भजन अथवा नामस्मरण होता है, हनुमानजी वहाँ स्वयं उपस्थित हो जाते हैं। वे हाथ जोड़कर, सिर झुकाकर अत्यंत भावविभोर होकर कथा का श्रवण करते हैं। उनके नेत्रों से प्रेमाश्रु बहते रहते हैं।
यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि श्रवण, विनय और प्रेम ही सच्चे भक्त के लक्षण हैं। और जहाँ ऐसी श्रद्धा होती है, वहाँ भगवान की कृपा भी सहज उपलब्ध होती है।
आध्यात्मिक संदर्भ
- भक्त की उपस्थिति – भक्ति के माध्यम से आत्मा प्रभु के अधिक निकट होती है। हनुमानजी स्वयं कथा के स्थान पर उपस्थित होते हैं, यह दर्शाता है कि कथा-कीर्तन में स्वयं ईश्वर और उनके परम भक्तों की उपस्थिति होती है।
- अश्रु-भक्ति – नेत्रों से अश्रु बहना भक्ति की परम अवस्था का चिह्न है। हनुमानजी का प्रेमाश्रु बहाना इस बात का संकेत है कि भगवत्कथा केवल श्रवण नहीं, बल्कि अंतरात्मा से जीने का विषय है।
2. श्रीमद्वल्लभाचार्यजी और हनुमानजी – कथा का परस्पर आदान-प्रदान
3. कथा की उपस्थिति और महत्ता
देखो कथा जरूर सुनो, कथा कहीं भी हो मैं हमेशा कथा सुनने के लिए तत्पर रहता हूँ, मैं आपको भी कथा सुनने का आग्रह करता हूँ चूंकि जो हम सुनते हैं वह हमारी सम्पदा बन जाती है, जो हम सुनते हैं वह हमारे भीतर बैठ जाता है और जब तक आप किसी के बारे में सुनोगे नहीं, तब तक आप उनके बारे में जानोगे नहीं तो आप उनसे मिलोगे कैसे? हम सब भगवान् से मिलना चाहते हैं लेकिन भगवान् को जाने, तब न मिले अपरिचित से कैसे मिले? भगवान् को यदि जानना है तो भगवान् की कथा सुने।
4. श्रवण भक्ति का महत्व
पहले सुनो "श्रवणम कीर्तनम" श्रीमद्भागवत की नवधा भक्ति में श्रवण को पहला स्थान दिया है, वाल्मीकिजी ने भी कहा है कि भगवान् की कथा सुनना प्रभु मिलन का साधन है, जिनको भी भगवान् का साक्षात्कार हुआ है कथा के द्वारा ही हुआ है, गोस्वामीजी को प्रभु मिले हैं तो कथा से ही मिले हैं, हमको और आपको भी मिलेंगे तो कथा से ही मिलेंगे।
5. विभीषण का प्रसंग – कथा से दर्शन तक की यात्रा
6. श्रवण और मनन की प्रक्रिया – क्या ग्रहण करें?
7. श्री हनुमानजी को बनायें अपना गुरु और सखा
इसलिये श्री हनुमानजी महाराज को अपना गुरु बनाइये, अच्छा दोस्त बनायें, हनुमानजी हमेशा आपको आगे बढ़ने में मदद करेंगे, अगर गुरु सक्षम है तो शिष्य को भी सक्षम बनने में देर नहीं लगती, हनुमानजी बल, बुद्धि और विधा के सागर है, साथ ही हनुमानजी भक्तों के परम हितेशी है, अत: भाई-बहनों, श्री रामजी के भक्त श्री हनुमानजी आप सभी का भला करें।।जय श्री रामजी! जय श्री हनुमानजी!।।
COMMENTS