MAHAVIR JAYANTI: महावीर जयंती, भगवान महावीर का जीवन परिचय और सिद्धान्त, भागवत दर्शन सूरज कृष्ण शास्त्री।जन्म एवं पूर्वजन्म कथा, गृहत्याग एवं तपस्या।
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MAHAVIR JAYANTI: महावीर जयंती, भगवान महावीर का जीवन परिचय और सिद्धान्त |
MAHAVIR JAYANTI: महावीर जयंती, भगवान महावीर का जीवन परिचय और सिद्धान्त
आज हम महावीर जयंती के अवसर पर महावीर स्वामी के जीवन परिचय एवं ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और दार्शनिक दृष्टिकोण तथा सिद्धान्तों को विस्तार से समझते हैं।
१. भगवान महावीर का जीवन परिचय (जीवन यात्रा का संक्षिप्त कालक्रम):
जन्म एवं पूर्वजन्म कथा:
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भगवान महावीर का जन्म 599 ई.पू. में कुंडग्राम (वर्तमान में वैशाली ज़िले का कुंडलपुर) में हुआ था।
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वे इक्ष्वाकु वंश से थे, जो भगवान राम का भी वंश था।
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उनके बचपन का नाम वर्धमान था, जिसका अर्थ है – जो सतत वृद्धि करता है।
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जैन परंपरा में उनके 63 जन्मों की श्रृंखला मानी जाती है, जिनमें से यह अंतिम जन्म था, जहाँ उन्हें केवलज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति हुई।
महावीर जयंती प्रतिवर्ष चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाई जाती है। यह दिन भगवान महावीर स्वामी का जन्मदिवस माना जाता है।
गृहत्याग एवं तपस्या:
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30 वर्ष की आयु में उन्होंने गृहत्याग कर दिया और 12 वर्ष तक घोर तपस्या की।
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उन्होंने नग्न होकर तपस्या की, जिससे वे दिगंबर परंपरा के प्रवर्तक माने जाते हैं (श्वेतांबर परंपरा में उन्हें वस्त्रधारी बताया गया है)।
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उन्होंने तपस्या के दौरान कष्ट सहते हुए भी कभी किसी प्राणी को हानि नहीं पहुँचाई — यही उनका अहिंसा का आदर्श था।
कैवल्यज्ञान (सर्वज्ञता) की प्राप्ति:
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13वें वर्ष में जृम्भिकग्राम के समीप ऋजुपालिका नदी के तट पर ध्यान करते हुए उन्हें कैवल्यज्ञान प्राप्त हुआ।
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इसके बाद वे अरिहंत कहलाए और उन्होंने प्रवचन देना प्रारंभ किया।
मोक्ष प्राप्ति:
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72 वर्ष की आयु में पावापुरी (बिहार) में कार्तिक कृष्ण अमावस्या को उन्होंने देह का त्याग कर मोक्ष प्राप्त किया।
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जैन परंपरा के अनुसार, मोक्ष प्राप्ति के बाद आत्मा सिद्ध शिला में चली जाती है — जहाँ जन्म-मरण से मुक्ति मिल जाती है।
२. जैन धर्म के सिद्धांत और महावीर का योगदान:
भगवान महावीर ने जैन धर्म को सुव्यवस्थित रूप में प्रस्तुत किया। उनके मुख्य सिद्धांत निम्नलिखित हैं:
पंच महाव्रत (सर्वसाधारण के लिए उपदेश):
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अहिंसा – किसी भी जीव को मन, वचन, कर्म से हानि न पहुँचाना
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सत्य – सदा सत्य बोलना
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अचौर्य – चोरी न करना
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ब्रह्मचर्य – इंद्रिय संयम
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अपरिग्रह – संग्रह न करना
त्रिरत्न (तीन रत्न):
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सम्यक दर्शन – सत्य को देखने की दृष्टि
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सम्यक ज्ञान – सच्चे ज्ञान की प्राप्ति
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सम्यक चरित्र – सही आचरण करना
अनेकांतवाद:
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यह सिद्धांत कहता है कि सत्य का एक पक्ष नहीं, अनेक पहलू होते हैं।
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यह दृष्टिकोण सहिष्णुता और विचारों के आदान-प्रदान को प्रेरित करता है।
३. महावीर जयंती का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व:
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यह दिन दिगंबर और श्वेतांबर दोनों संप्रदायों द्वारा अत्यंत श्रद्धा से मनाया जाता है।
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मंदिरों में विशेष पूजन, अभिषेक, स्वर्ण-स्नान, ध्वजारोहण आदि होते हैं।
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भगवान महावीर की मूर्ति की शोभायात्रा निकाली जाती है, जिसमें भक्तगण भजन-कीर्तन करते हुए भाग लेते हैं।
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धार्मिक प्रवचन, दान-पुण्य, चरित्र निर्माण की प्रेरणा देने वाले कार्यक्रम आयोजित होते हैं।
४. आधुनिक सन्दर्भ में महावीर स्वामी का सन्देश:
महावीर का सिद्धांत | आज की दुनिया में प्रासंगिकता |
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अहिंसा | युद्ध, हिंसा, आतंकवाद से त्रस्त समाज को शांति का मार्ग दिखाता है। |
संयम और ब्रह्मचर्य | उपभोक्तावाद के दौर में आत्म-नियंत्रण की प्रेरणा देता है। |
अपरिग्रह | पर्यावरण संरक्षण और संसाधनों के न्यायपूर्ण उपयोग का आधार। |
सत्य और अचौर्य | भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी और झूठ के युग में नैतिकता का प्रतीक। |
अनेकांतवाद | वैचारिक असहिष्णुता से ग्रस्त समाज में संवाद और सहिष्णुता का आदर्श। |
५. बालकों एवं युवाओं के लिए संदेश:
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भगवान महावीर का जीवन दिखाता है कि त्याग, साधना और आत्मचिंतन से महानता प्राप्त की जा सकती है।
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वे प्रेरणा देते हैं कि भौतिक सुखों से अधिक मूल्य आत्मिक उन्नति का है।
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उनका सिद्धांत है:“Live and let live” – स्वयं जियो और दूसरों को भी जीने दोयह आज के पर्यावरणीय संकट में बहुत ही सामयिक और अनिवार्य सिद्धांत है।
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