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स्तोत्रम् – एक परिचय एवं सावधानियाँ |
स्तोत्रम् – एक परिचय एवं सावधानियाँ
स्तूयतेऽनेनेति स्तोत्रम्
अर्थात्, ऋक् मन्त्रों के गान सहित जो देव स्तुति की जाती है, उसे स्तोत्रम् कहते हैं।
"जिससे किसी के गुण, कर्म आदि का वर्णन किया जाए, वे स्तोत्र या स्तुति कहे जाते हैं", ऐसा अमरकोष में कहा गया है।
आधुनिक परिवेश में देवतापरक स्तुति के लिए प्रयुक्त की गई छन्दोबद्ध वाणी ही स्तोत्र के नाम से जानी जाती है।
स्तोत्र पाठ करते समय ध्यान रखने योग्य विशेष सावधानियां
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मूल पाठ का ही उच्चारण करेंस्तोत्र हिंदी में हो या संस्कृत में, यथा सम्भव मूल पाठ का ही उच्चारण करना चाहिए। उनका अनुवाद पढ़ने से पूर्ण लाभ प्राप्त नहीं हो पाता।
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बालक जैसी मानसिकता रखेंहम ईश्वर के सामने बालक के समान हैं, यही भावना मन में रखकर स्तोत्र पाठ करें, बालक की त्रुटियां क्षम्य होती हैं। अतः हम बालक बनकर, छोटा बनकर स्तोत्र पाठ करें।
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सस्वर उच्चारण करेंस्तोत्र पाठ गायन स्वर में, सस्वर उच्चारण कर करना चाहिए।
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प्रफुल्ल चित्त से पाठ करेंजब हम प्रफुल्ल चित्त हों तभी हमें स्तोत्र पाठ करना चाहिए।
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स्वच्छता बनाए रखेंस्तोत्र पाठ करते समय हमारे शरीर, वस्त्र, आसन, स्थान स्वच्छ और पवित्र हों।
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अर्थ का ज्ञान होना चाहिएस्तोत्र पाठ करने वाले साधक को उस स्तोत्र का अर्थ (भाव) ज्ञात होना चाहिए। बिना अर्थ ज्ञात किए, मात्र तोते की तरह पढ़ने से कोई लाभ नहीं मिलता।
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शुद्ध पुस्तक का उपयोग करेंस्तोत्र पाठ शुद्ध पुस्तक सामने रखकर, मधुर स्वर में पाठ करना चाहिए।
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अति शीघ्रता से बचेंउतावली में या समय की कमी के कारण, स्तोत्र पाठ को अति शीघ्रता से पूरा करना उचित नहीं है।
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व्यसन से बचेंस्तोत्र पाठ करते समय मुंह में किसी प्रकार का नशा, व्यसन, लौंग, इलायची आदि का प्रयोग कदापि न करें।
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पाठ पूरा करने के बाद उठेंस्तोत्र पाठ प्रारम्भ करने के बाद स्तोत्र पाठ पूरा करके ही आसन से उठें।
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साधक का अहंभाव न होस्तोत्र पाठ सरल चित्त से करें, मन में किसी प्रकार का स्तोत्र पाठ का अहंभाव न उठने दें।
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भाव में डूब जाएंस्तोत्र पाठ करते समय उस स्तोत्र का भाव में डूब जाना चाहिए। साधक स्तोत्र और संबंधित देवता से एकाकार होकर पाठ करें, जिससे उसे पूरा लाभ प्राप्त हो।
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संस्कृत उच्चारण का ज्ञानअधिकतर स्तोत्र संस्कृत में होते हैं, अतः साधक को पहले संस्कृत का उच्चारण ज्ञान प्राप्त करना चाहिए।
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नित्य पाठ से लाभनित्य नियमित रूप से स्तोत्र पाठ करने पर वह मन्त्र स्वरूप हो जाता है, और उसका प्रत्यक्ष लाभ दिखाई देने लगता है।
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सुखासन में बैठकर पाठ करेंस्तोत्र पाठ सुखासन में बैठकर किया जाना चाहिए। यदि साधक किसी अन्य आसन में बैठकर पाठ करना चाहे तो कोई हानि नहीं है।
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सम्बन्धित देवता का चित्र रखेंस्तोत्र पाठ करते समय — सम्भव हो तो — सम्बन्धित देवी, देवता का चित्र, धूप, दीप और जल का पात्र हो तो अनुकूल रहता है। क्योंकि शास्त्र अनुसार अग्नि (दीपक) और वरुण (जल पात्र) की साक्षी में ही स्तोत्र पाठ करना चाहिए।
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समय का ध्यान रखेंस्तोत्र पाठ प्रातः, सायंकाल या रात्रि किसी भी समय किया जा सकता है, जब भी मन में पाठ करने की तरंगे उठें, उचित वातावरण में पाठ करें।पवित्र शरीर एवं पवित्र स्थान पर बैठकर ही स्तोत्र पाठ करें।
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भारी भोजन से बचेंस्तोत्र पाठ करने से पूर्व भारी भोजन नहीं करें, शरीर को स्वच्छ और हल्का रखना चाहिए।
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संदिग्ध स्तोत्रों से बचेंकलियुग में स्तोत्र पाठ ही श्रेष्ठतम विधान माना गया है, परंतु अपने हाथ से लिखे हुए स्तोत्रों से पाठ न करें।
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सुविधा और साधन दूर रखेंस्तोत्र पाठ करते समय मोबाइल जैसी अन्य सुविधाओं को चुप करा दें, तथा पास में नहीं रखें।
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ध्यान और आशीर्वाद प्राप्त करेंस्तोत्र पाठ करने के बाद संबंधित देवता या देवी से कहें:"हे माँ!! हे देव!! यह स्तोत्र पाठ स्वीकार करें, हमारा मार्गदर्शन करें।हमारा कल्याण करें।"
निष्कर्ष:
स्तोत्र पाठ एक उच्चतम साधना है जो हमारे आत्मबल और आत्मविकास की ओर एक महत्वपूर्ण कदम है। यदि हम इन सावधानियों को ध्यान में रखते हुए इस पवित्र क्रिया को नियमित रूप से करें, तो हम न केवल देवताओं के आशीर्वाद प्राप्त करेंगे, बल्कि हमारे जीवन में सुख, शांति और समृद्धि भी आएगी।
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