Story: चिंता — चिता के समान (एक शिक्षाप्रद प्रेरक कथा)

Sooraj Krishna Shastri
By -
0

 

Story: चिंता — चिता के समान (एक शिक्षाप्रद प्रेरक कथा)
Story: चिंता — चिता के समान (एक शिक्षाप्रद प्रेरक कथा)

Story: चिंता — चिता के समान (एक शिक्षाप्रद प्रेरक कथा)

यह प्रेरक कहानी पंचतंत्र की शैली में गूढ़ जीवन-दर्शन को सरल भाषा में प्रस्तुत करती है, जिसमें चिंता की मनःस्थिति को प्रभावी रूप से उजागर किया गया है। 


🍁 चिंता — चिता के समान 🍁

(एक शिक्षाप्रद प्रेरक कथा)

बहुत समय पहले की बात है। एक गाँव में एक असाधारण बलशाली युवक रहता था। उसका जीवन अत्यंत सरल था, परन्तु अद्भुत भी। उसका दैनिक कार्य केवल तीन बातों तक सीमित था—

  1. डटकर दूध पीना,
  2. लगातार दंड-बैठक करना, और
  3. हनुमान जी के मंदिर में बैठकर भजन-कीर्तन में तल्लीन रहना।

गाँव वाले उस युवक से अत्यंत प्रेम करते थे। वह उनके लिए गौरव का कारण था। उसका बल ऐसा था कि दूर-दूर तक उसकी चर्चा थी—उसके जैसे शक्तिशाली पहलवान की कहीं मिसाल नहीं थी। और उसकी सरलता, निष्काम जीवनशैली ने उसे गाँव का प्रिय बना दिया था।

परन्तु जहां गाँव उस पर गर्व करता था, वहीं राजा उससे भयभीत और नाराज़ था। कारण यह कि जब भी राजा अपने हाथी पर नगर भ्रमण को निकलता और मंदिर के सामने से गुज़रता, वह युवक मंदिर से बाहर निकल आता और मज़ाक में हाथी की पूँछ पकड़ लेता
राजा का सजीला हाथी वहीं अटक जाता, चल न पाता। महावत चाहे जितना बल लगाता, हाथी एक पग भी आगे न बढ़ता।
और फिर क्या—भीड़ जुटती, हँसी उड़ती, राजा की प्रतिष्ठा धूल में मिल जाती।

राजा के लिए यह असहनीय था—कि एक साधारण युवक उसके पूरे राजसी वैभव को इस प्रकार धूल चटा दे!
इससे दुखी होकर राजा ने एक दिन एक सिद्ध साधु से उपाय पूछा।

राजा बोला:
"महाराज! अब तो मैं बाहर निकलने से डरता हूँ। कहीं वह युवक मिल गया तो फिर मेरी वही दुर्गति होगी। मैं कुछ कीजिए—मुझे निजात दिलाइए।"

साधु मुस्कराए।
"राजन्! उपाय तो है, पर थोड़ा धैर्य रखना होगा। पहले उस युवक को बुलवाइए।"

युवक को बुलाया गया।

साधु ने उससे पूछा:
"बेटा, तेरा जीवन तो अच्छा कट रहा है, पर सोच, कब तक लोग तुझे दूध पिलाते रहेंगे? जवानी सदा नहीं रहती। यदि एक दिन सबने मुँह मोड़ लिया, तो तू क्या करेगा?"

युवक अवाक् था। उसने इस बात पर कभी ध्यान ही नहीं दिया था। सोचने की उसे फुरसत ही कहाँ थी!

साधु बोले:
"राजा तुझसे बहुत प्रसन्न है। वह तुझे एक रुपया प्रतिदिन देने को तैयार है। बस एक छोटा-सा कार्य करना होगा—हर दिन प्रातः 6 बजे मंदिर का दीया बुझाना है, और संध्या 6 बजे दीया जलाना है।"

युवक प्रसन्न हो गया। काम सरल था, वही मंदिर, वही स्थान, और ऊपर से एक रुपया प्रतिदिन! उस काल में यह बहुत बड़ी बात थी। उसने सहर्ष स्वीकार कर लिया।

अब राजा ने असमंजस में साधु से पूछा—
"यह क्या किया आपने? अब तो वह और दूध पीएगा! समस्या और बढ़ेगी!"

साधु मुस्कराकर बोले:
"राजन्, आप धैर्य रखें। एक माह तक बाहर न निकलें। फिर देखिए।"

राजा ने वैसा ही किया। एक महीना बीत गया।

अब साधु बोले—
"अब अपने हाथी पर चढ़कर मंदिर के रास्ते से निकलो।"

राजा निकल पड़ा। वही मंदिर, वही मार्ग—पर इस बार युवक ने पूर्व की भाँति हाथी की पूँछ पकड़ने का प्रयास किया, तो कुछ अद्भुत घटा!
हाथी ने युवक को घसीट डाला!
भीड़ चकित!
राजा चकित!
युवक अवाक्!

राजा ने साधु से पूछा:
"महाराज, यह चमत्कार कैसे हुआ?"

साधु ने गंभीरता से उत्तर दिया:
"मैंने उसका बल नहीं छीना, केवल एक चिंता दे दी है। अब उसके मन में दिन-रात एक ही चिंता लगी रहती है—
'छह बजे हो गए क्या?'
'दीया जलाना भूल न जाऊँ!'
रात को बार-बार उठकर समय देखता है। चैन खो चुका है। उसकी वह निष्कलुष मस्ती, वह आत्मबल, वह निश्चिंतता—सब चिंता ने खा ली है। चिंता ने उसकी शक्ति को चाट लिया है।
अब वह वही युवक है, पर वह शक्ति वाला नहीं।"


इस कथा से शिक्षा:

  • चिंता मनुष्य की सर्वाधिक शक्तिशाली ऊर्जा को छीन लेती है।
  • चिंता बाहर से नहीं, भीतर से कमजोर बनाती है।
  • चिंता वास्तव में 'चिता' के समान है—धीरे-धीरे मनुष्य को जला देती है।

जीवन का सार:

"कल जो बीत गया, बीत गया। कल जो आया नहीं, वह भविष्य है।
जो वास्तव में है, वह केवल आज है। अतः 'आज' में ही जीना सीखो।"

Post a Comment

0 Comments

Post a Comment (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!