भगवान श्रीकृष्ण के 16,108 विवाहों का वर्णन
🔷 भूमिका
भगवान श्रीकृष्ण का जीवन केवल एक ऐतिहासिक पुरुष या राजनीतिक रणनीतिकार की कथा नहीं है, अपितु वह लीलापुरुषोत्तम के रूप में प्रत्येक कार्य को धर्म, भक्ति और करुणा के आलोक में संपन्न करते हैं। उनके 16,108 विवाह कोई सांसारिक भोग की लालसा नहीं बल्कि प्रत्येक विवाह के पीछे विशिष्ट धार्मिक, दैवीय एवं आध्यात्मिक उद्देश्य निहित है। श्रीमद्भागवत महापुराण (मुख्यतः दशम स्कंध) में इन विवाहों का गूढ़ एवं दिव्य विवरण प्राप्त होता है।
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भगवान श्रीकृष्ण के 16,108 विवाहों का वर्णन, भागवत |
🔶 श्रीकृष्ण के प्रमुख विवाहों का वर्गीकरण
1. मुख्य 8 पत्नियाँ (अष्टमहिषीगण)
इन्हें "अष्टाभार्या" कहा जाता है। इन आठ रानियों के विवाहों की कथाएँ भागवत महापुराण (दशम स्कंध) में विस्तार से वर्णित हैं।
क्रम | रानी का नाम | विवाह का कारण / पृष्ठभूमि |
---|---|---|
1. | रुक्मिणी | विदर्भराज भीष्मक की पुत्री, कृष्ण को प्रेम करती थीं। शिशुपाल से जबरन विवाह रोका गया, श्रीकृष्ण ने उनका हरण किया (दशम स्कंध, अध्याय 52)। |
2. | जाम्बवती | जाम्बवान की पुत्री। स्यमंतक मणि के विवाद के समाधान के उपरांत जाम्बवान ने उन्हें श्रीकृष्ण को समर्पित किया। |
3. | सत्यभामा | सत्यकेतु की पुत्री, नारकासुर वध के उपरांत विवाह। गर्वीली, पर अत्यंत भक्त। |
4. | कालिन्दी | सूर्य की पुत्री, यमुना तट पर श्रीकृष्ण की प्रतीक्षा कर रही थीं। श्रीकृष्ण ने स्वयं विवाह किया। |
5. | मित्रविन्दा | अवन्ति की राजकुमारी। श्रीकृष्ण को प्रेम करती थीं। स्वयंवर में अन्य राजाओं को पराजित कर विवाह किया। |
6. | नग्नजित की कन्या (सत्य) | अयोध्या के राजा नग्नजित की पुत्री। सात उग्र बैलों को वश में करने की शर्त पर विवाह किया। |
7. | भद्रा | श्रीकृष्ण की बुआ (कुंती की बहन) की पुत्री। |
8. | लक्ष्मणा (या मद्रा) | मद्र देश की राजकुमारी। स्वयंवर में श्रीकृष्ण विजयी रहे। |
🔶 नारकासुर से मुक्त 16,100 कन्याएँ
📜 स्रोत: भागवत पुराण – दशम स्कंध – अध्याय 59–60
- नारकासुर (भौमासुर), प्रागज्योतिषपुर का असुरराज, अत्यंत दुष्ट था।
- उसने 16,100 राजकुमारियों को बंदी बनाकर अपने महल में कैद कर रखा था। वे विभिन्न राजवंशों की कन्याएँ थीं।
- श्रीकृष्ण ने सत्यभामा के साथ जाकर नारकासुर का वध किया और इन कन्याओं को मुक्त कराया।
🌸 कन्याओं की याचना:
मुक्त होने के बाद वे कन्याएँ अत्यंत लज्जित थीं।समाज उन्हें स्वीकार नहीं करता,पिता उन्हें ग्रहण नहीं करते।वे भगवान श्रीकृष्ण से निवेदन करती हैं:
"हे प्रभो! आपने हमारा उद्धार किया है। अब कृपा कर हमें स्वीकार भी करें, अन्यथा समाज में हमारी स्थिति अत्यंत अपमानजनक होगी।"
🌼 भगवान श्रीकृष्ण का निर्णय:
श्रीकृष्ण ने उनके मन की पुकार को स्वीकार किया और प्रत्येक कन्या से विधिपूर्वक विवाह कर उन्हें सम्मान प्रदान किया।
🔶 शेष विवाह: कुल संख्या 16,108 कैसे?
- मुख्य अष्टाभार्या = 8
- नारकासुर से मुक्त कन्याएँ = 16,100
- शेष रानियाँ (संभावित अन्य क्षत्रिय कन्याएँ, योगनिष्ठा वाली आत्माएँ) = कुछ भागवत टीकाओं में कहा गया है कि 8+16100 = 16108 पूर्ण संख्या है, अर्थात अन्य विवाहों की आवश्यकता नहीं है।
🔷 श्रीकृष्ण की एकता में अनेकता की लीला
- हर रानी के लिए पृथक महल – द्वारका में
- श्रीकृष्ण हर रानी के साथ अलग-अलग समय बिताते थे, जैसे वे केवल उनके ही पति हों।
- नारद मुनि जब द्वारका पहुँचे (भागवत 10.69), तो देखा कि श्रीकृष्ण हर रानी के साथ अलग-अलग महलों में उपस्थित हैं, उनके साथ गृहारम्भ, पूजन, दान, वार्ता आदि कर रहे हैं।
👉 यह एक सामान्य पुरुष की क्षमता नहीं है – यह केवल सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक ईश्वर की लीला है।
🔷 तत्वदृष्टि से विवाहों का भावार्थ
रूप | भावार्थ |
---|---|
संख्या | हर जीवात्मा की आत्मा के प्रति ईश्वर की स्वीकार्यता |
सभी रानियाँ | आत्माएँ, जो श्रीकृष्ण की शरण में आना चाहती हैं |
श्रीकृष्ण | परमात्मा, जो किसी को भी तिरस्कृत नहीं करते, सबको अपनाते हैं |
प्रत्येक रानी से लीला | परमात्मा का प्रत्येक भक्त के साथ व्यक्तिगत, विशिष्ट और अंतरंग संबंध |
🔷 निष्कर्ष
भगवान श्रीकृष्ण के 16,108 विवाह कोई सांसारिक विलासिता नहीं, बल्कि यह एक आध्यात्मिक आदर्श है जिसमें—
- दया है,
- करुणा है,
- धर्म रक्षा है,
- त्याग है,
- और भक्त की मर्यादा का संरक्षण है।
इन विवाहों के माध्यम से श्रीकृष्ण ने समाज से उपेक्षित नारी को सम्मान, मर्यादा, और ईश्वरत्व की निकटता प्रदान की।