भाव संज्ञा और भाव संख्या का रहस्य | Bhava Numbers & Their Significance in Astrology
प्रस्तुत श्लोक और भाव-संख्या निर्धारण ज्योतिषशास्त्र के आधारभूत खण्ड "भाव संज्ञा" के अंतर्गत आते हैं। इसमें राशिचक्र के विभिन्न स्थानों (भावों) को विशेष नाम व कार्य-भूमिकाएँ प्रदान की गई हैं।
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भाव संज्ञा और भाव संख्या का रहस्य | Bhava Numbers & Their Significance in Astrology |
यहाँ पर उसका व्यवस्थित भावात्मक-संज्ञात्मक सार प्रस्तुत है:
📜 श्लोकानुसार भाव-संख्या निश्चय व संज्ञाएँ
श्लोक | शब्द / पद | अर्थ / व्याख्या |
---|---|---|
33 | “लग्नतुर्यास्तवियतां केन्द्रसंज्ञा विशेषतः” | लग्न (1), चतुर्थ (4), सप्तम (7), एवं दशम (10) भाव — "केन्द्र" कहलाते हैं |
34 | “द्विपंचरन्ध्रलाभानां ज्ञेयं पणफराभिधम्” “त्रिषष्ठभाग्यरि:फानामापोक्लिममिति द्विज” |
2, 5, 8, 11 भाव — पणफर 3, 6, 9, 12 भाव — आपोक्लिम (उपांतस्थ) |
35 | “लग्नात्पंचमभाग्यस्य कोणसंज्ञा” “षष्ठाष्टव्ययभावानां दुःसंज्ञात्रिक्संज़्का” |
5 (पंचम) व 9 (भाग्य) भाव — त्रिकोण 6, 8, 12 भाव — दुःस्थान / त्रिक भाव |
36 | “चतुरख्रं तुर्यरन्ध्रं…” “स्वस्थादुपचयक्… त्रिषडायाम्बराणि हि” |
4 व 8 भाव — चतुरस्र लग्न से 3, 6, 10, 11 — उपचय भाव |
📊 सारणी: भाव संज्ञा और उनके विशेष नाम
भाव संख्या | संख्या अनुसार नाम | संख्या संज्ञा | विशेष संज्ञा |
---|---|---|---|
1 | लग्न | केन्द्र | उपचय |
2 | धन | पणफर | — |
3 | पराक्रम | आपोक्लिम | उपचय |
4 | सुख | केन्द्र | चतुरस्र |
5 | पुत्र | पणफर | त्रिकोण |
6 | ऋण | आपोक्लिम | त्रिक, उपचय |
7 | दारा | केन्द्र | — |
8 | मृत्यु | पणफर | त्रिक, चतुरस्र |
9 | भाग्य | आपोक्लिम | त्रिकोण |
10 | कर्म | केन्द्र | उपचय |
11 | लाभ | पणफर | उपचय |
12 | व्यय | आपोक्लिम | त्रिक |
🪔 भाव संज्ञाओं का उपयोग:
- केन्द्र (1,4,7,10): स्थिरता, शक्ति, मूल जीवन आधार।
- त्रिकोण (5,9): पुण्य, भाग्य, धर्म; अत्यंत शुभ।
- पणफर (2,5,8,11): निरंतरता, प्रयास का फल।
- आपोक्लिम (3,6,9,12): संक्रमणशील, कमजोर माने जाते हैं।
- उपचय (3,6,10,11): समय के साथ फल देने वाले।
- त्रिक (6,8,12): कष्टदायक, रोग-रुग्णता आदि।
- चतुरस्र (4,8): स्थिर + छाया देने वाले, विश्लेषणात्मक।