शिव तांडव स्तोत्र की रचना का महात्म्य

Sooraj Krishna Shastri
By -
0

शिव तांडव स्तोत्र की रचना का महात्म्य

रावण और भगवान शिव की एक प्रसिद्ध कथा है। रावण के पिता का नाम विश्रवा था जो कि एक ऋषि थे। रावण के सौतेले भाई कुबेर थे। पहले सोने की लंका का राज्य ऋषि विश्रवा ने कुबेर को दिया था, लेकिन किसी कारणवश अपने पिता के कहने पर वे लंका का त्याग कर हिमाचल चले गए।

कुबेर के चले जाने के बाद सोने की लंका दशानन मिल गई और वह लंका का अधिपति बन गया। जैसे ही दशानन को लंका का राज्य प्राप्त हुआ उसके भीतर अहंकार उत्पन्न हो गया। धीरे-धीरे वह इतना अहंकारी हो गया कि उसने साधु संतो पर अनेक प्रकार के अत्याचार करना आरंभ कर दिया।

शिव तांडव स्तोत्र की रचना का महात्म्य
शिव तांडव स्तोत्र की रचना का महात्म्य


दशानन के अत्याचारों बारे में जब उसके भाई कुबेर को ज्ञात हुआ तो उन्होंने दशानन को समझाने के लिए अपना एक दूत भेजा। उस दूत ने कुबेर के कहे अनुसार दशानन को सत्य पथ पर चलने की सलाह दी। कुबेर की सलाह सुन दशानन क्रोधित हो गया और अहंकार एवं क्रोध में आकर उसने उस दूत को बंदी बना लिया और उसी समय उसने अपनी तलवार से उस दूत की हत्या कर दी।

दूत की हत्या करने के पश्चात भी दशानन का क्रोध शांत नहीं हुआ क्रोध में वह कुबेर की नगरी अलकापुरी पर आक्रमण के लिए निकल पड़ा और कुबेर की नगरी को तहस-नहस कर दिया उसके बाद अपने भाई कुबेर पर भी उसने गदा का प्रहार किया। जिससे कुबेर घायल हो गए। कुबेर के सेनापतियों ने किसी तरह से कुबेर को नंदनवन पहुँचा दिया जहाँ वैद्यों ने उनका उपचार किया जिससे वे स्वस्थ हो गए।

शिव तांडव स्तोत्र की रचना

दशानन ने कुबेर की नगरी व उसके पुष्पक विमान दोनों पर भी अपना अधिकार कर लिया। पुष्पक विमान की ये विशेषता थी कि वह चालक की इच्छानुसार चलता था तथा उसकी गति मन की गति से भी तेज थी।

एक दिन दशानन पुष्पक विमान में सवार होकर शारवन की तरफ चल पड़ा, परंतु एक पर्वत के पास से गुजरते हुए उसके पुष्पक विमान की गति स्वयं ही धीमी हो गई। पुष्पक विमान की गति मंद हो जाने पर दशानन को बहुत आश्चर्य हुआ। 

तभी अचानक उसकी दृष्टि सामने खड़े विशाल शरीर वाले नंदीश्वर पर पड़ी। नंदीश्वर ने दशानन को चेताते हुए कहा कि यहाँ भगवान शंकर क्रीड़ा में मग्न हैं इसलिए तुम वापस लौट जाओ, लेकिन कुबेर पर विजय पाकर दशानन अत्यंत दंभी हो गया था। उसने नंदी की बात नहीं सुनी और अहंकार में कहने लगा कि कौन है ये शंकर और किस अधिकार से वह यहाँ क्रीड़ा करता है? मैं उस पर्वत का नामो-निशान ही मिटा दूँगा, जिसके कारण मेरे विमान की गति अवरूद्ध हुई है।

इतना कहते हुए उसने पर्वत की नींव पर हाथ लगाकर उसे उठाना चाहा। जैसे ही दशानन नें पर्वत कि नींव को उठाने की कोशिश की भगवान शिव ने वहीं बैठे-बैठे अपने पाँव के अंगूठे से उस पर्वत को दबा दिया ताकि वह स्थिर हो जाए। भगवान शंकर के ऐसा करने से दशानन की बाँहें उस पर्वत के नीचे दब गई। जिससे दशानन को बहुत पीड़ा होने लगी। क्रोध और पीड़ा के कारण दशानन ने भीषण चीत्कार कर उठा। उसकी चीत्कार इतनी तेज थी कि ऐसा लगने लगा जैसे मानो प्रलय आ जाएगी। 

तब दशानन के मंत्रियों ने उसे शिव स्तुति करने की सलाह दी। तब दशानन ने बिना देरी किए हुए सामवेद में उल्लेखित शिव के सभी स्तोत्रों का गान करना शुरू कर दिया, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने दशानन को क्षमा कर दिया और उसकी बाँहों को मुक्त किया। दशानन द्वारा भगवान शिव की स्तुति के लिए किए जो स्तोत्र गाया गया था। सामवेद का वह स्तोत्र रावण स्तोत्र या शिव तांडव स्तोत्र के नाम से जाना जाता है। 

ऐसे हुआ दशानन का नाम रावण

दशानन ने यह स्तोत्र भयंकर दर्द के कारण भीषण चीत्कार से गाया था और इसी भीषण चीत्कार को संस्कृत भाषा में राव: सुशरूण: कहा जाता है। जब भगवान शिव रावण की स्तुति से प्रसन्न हुए और उसके हाथों को पर्वत के नीचे से मुक्त किया, तो उन्होंने दशानन का नाम रावण यानी ‘भीषण चीत्कार करने पर विवश शत्रु’ रखा। क्योंकि भगवान शिव ने रावण को भीषण चीत्कार करने पर विवश कर दिया था। तभी से दशानन को रावण कहा जाने लगा।

Post a Comment

0 Comments

Post a Comment (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!