संस्कृत श्लोक "जलबिन्दुनिपातेन क्रमशः पूर्यते घटः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण

Sooraj Krishna Shastri
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संस्कृत श्लोक "जलबिन्दुनिपातेन क्रमशः पूर्यते घटः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण 

🌞 🙏 जय श्रीराम 🌷 सुप्रभातम् 🙏

आज का प्रेरक नीति-वचन –
"जलबिन्दुनिपातेन क्रमशः पूर्यते घटः"
हमें यह सिखाता है कि लगातार, छोटे-छोटे प्रयास ही जीवन में बड़े लक्ष्यों की प्राप्ति का रहस्य हैं।


श्लोक

जलबिन्दुनिपातेन क्रमशः पूर्यते घटः ।
स हेतुः सर्वशास्त्राणां धर्मस्य च धनस्य च ॥

jalabindu-nipātena kramaśaḥ pūryate ghaṭaḥ।
sa hetuḥ sarvaśāstrāṇāṁ dharmasya ca dhanasya ca॥


🔍 शब्दार्थ एवं व्याकरणीय विश्लेषण:

पद अर्थ व्याकरणिक विवरण
जलबिन्दु-निपातेन जल की बूंद के गिरने से तृतीया विभक्ति
क्रमशः धीरे-धीरे, क्रम से क्रिया विशेषण
पूर्यते भरता है वर्तमानकाल, कर्तृवाच्य
घटः घड़ा पुल्लिंग, एकवचन
सः हेतुः वह कारण है कर्ता
सर्वशास्त्राणां समस्त शास्त्रों का षष्ठी विभक्ति
धर्मस्य धर्म का षष्ठी विभक्ति
धनस्य धन का षष्ठी विभक्ति

🌿 भावार्थ:

जैसे घड़ा एक-एक जल-बूंद के लगातार गिरने से धीरे-धीरे भर जाता है,
वैसे ही शास्त्र का ज्ञान, धर्म का आचरण, और धन का संचय भी
क्रमशः, नियमित और धैर्यपूर्ण प्रयासों से ही होता है।


📚 तात्त्विक अर्थ:

🔹 ज्ञान — एक साथ नहीं आता; प्रतिदिन थोड़ा-थोड़ा अध्ययन, सत्संग, श्रवण ही संपूर्ण शास्त्रज्ञान देता है।

🔹 धर्म — सत्कर्मों का संग्रह ही धर्म को पुष्ट करता है; एक दिन की पूजा नहीं, निरंतर साधना चाहिए।

🔹 धन — अपार संपत्ति भी बूंद-बूंद जोड़ने से ही आती है; अनियंत्रित खर्च से घड़ा खाली रह जाएगा।

संस्कृत श्लोक "जलबिन्दुनिपातेन क्रमशः पूर्यते घटः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
संस्कृत श्लोक "जलबिन्दुनिपातेन क्रमशः पूर्यते घटः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण 



🪔 जीवनोपयोगी शिक्षा:

🌸 "Consistency is the mother of all success."

  • थोड़ी पढ़ाई प्रतिदिन → विद्वान
  • थोड़ी बचत प्रतिदिन → धनवान
  • थोड़े सत्कर्म प्रतिदिन → पुण्यवान

🕯️ प्रेरणादायक दृष्टांत:

➤ एक तपस्वी ने पूछा:
“भगवन्! क्या मैं 12 वर्षों का तप करूं और फिर एक दिन में फल पा सकता हूँ?”

उत्तर मिला:
“नहीं।
तप भी उसी जल-बूंद सा है –
जो रोज गिरेगा, वही घड़ा भर देगा।” 🌿


🎯 नवचेतना वाक्य:

"निरंतर प्रयास, धीमे-धीमे सफलता की ओर लेकर जाता है।
घड़ा अचानक नहीं भरता –
बूंद-बूंद से ही सरोवर भी बनता है।"


🌸 आपका दिन भी आज एक और सजीव जल-बूंद बने,
जो जीवन के घड़े को सार्थकता से भर दे।

📿 जय श्रीराम! सुप्रभातम्! 🌄

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