संस्कृत श्लोक "युद्धं च प्रातरुत्थानं भोजनं सह बन्धुभिः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण

Sooraj Krishna Shastri
By -
0

संस्कृत श्लोक "युद्धं च प्रातरुत्थानं भोजनं सह बन्धुभिः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण 

🌅🙏 जय श्रीराम! सुप्रभातम् 🙏🌅

प्रस्तुत श्लोक अत्यंत प्रेरणादायक और नीतिपरक है। इसमें मुर्गे (कुक्कुट) से जीवन की चार महत्वपूर्ण नीतियाँ सीखने की प्रेरणा दी गई है।

आइए इसका व्याकरणात्मक विश्लेषण, भावार्थ और आधुनिक सन्दर्भ में शिक्षोपदेश विस्तार से करते हैं—


🔸 श्लोक:

युद्धं च प्रातरुत्थानं भोजनं सह बन्धुभिः ।
स्त्रियमापद्गतां रक्षेच्चतुः शिक्षेत कुक्कुटात् ॥

Yuddhaṁ ca prātarutthānaṁ bhojanaṁ saha bandhubhiḥ |

Striyam āpad-gatāṁ rakṣec catuḥ śikṣeta kukkuṭāt || 

संस्कृत श्लोक "युद्धं च प्रातरुत्थानं भोजनं सह बन्धुभिः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
संस्कृत श्लोक "युद्धं च प्रातरुत्थानं भोजनं सह बन्धुभिः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण 



🔹 पदविच्छेद:

  • युद्धम् – युद्ध करना
  • – और
  • प्रातरुत्थानम् – प्रातः उठना
  • भोजनम् – भोजन करना
  • सह बन्धुभिः – बन्धुओं (परिजनों) के साथ
  • स्त्रियम् – स्त्री को
  • आपद्गताम् – आपत्ति में पड़ी हुई
  • रक्षेत् – रक्षा करे
  • चतुः – ये चार
  • शिक्षेत – सीखे
  • कुक्कुटात् – मुर्गे से

🔸 व्याकरणात्मक विश्लेषण:

पद रूप कारक विभक्ति लिंग वचन विशेष
युद्धम् नपुंसकलिंग कर्तृ द्वितीया नपुंसक एकवचन कर्म रूप
अव्यय संयोजन
प्रातरुत्थानम् नपुंसकलिंग कर्तृ द्वितीया नपुंसक एकवचन कर्म रूप
भोजनम् नपुंसकलिंग कर्तृ द्वितीया नपुंसक एकवचन कर्म रूप
सह बन्धुभिः पुंलिंग अपादान तृतीया पुल्लिंग बहुवचन साधन रूप
स्त्रियम् स्त्रीलिंग कर्म द्वितीया स्त्री एकवचन लक्ष्यार्थ
आपद्गताम् विशेषण द्वितीया स्त्री एकवचन स्त्री विशेषक
रक्षेत् धातु (रक्ष्) लोट् लकार, विधिलिङ्
चतुः संख्यावाचक ‘चार’ का बोध
शिक्षेत धातु (शिक्ष्) लोट् लकार, विधिलिङ्
कुक्कुटात् पुंलिंग अपादान पञ्चमी एकवचन ‘मुर्गे से’

🔹 भावार्थ:

"युद्ध करना, प्रातः काल शीघ्र उठना, अपने बंधु-बांधवों के साथ भोजन करना, तथा आपत्ति में पड़ी स्त्री की रक्षा करना — ये चार बातें मनुष्य को मुर्गे से सीखनी चाहिए।"


🔹 आधुनिक प्रेरणा:

यह श्लोक मात्र एक पशु (मुर्गा) को देखकर जीवन जीने की सहज और व्यावहारिक शिक्षा देता है:

  1. युद्धम् (साहसिक होना):
    मुर्गा सदा सतर्क रहता है, प्रतिद्वंद्विता में कभी पीछे नहीं हटता। यह हमें सिखाता है कि कठिनाइयों से भागने की बजाय उनका डटकर सामना करना चाहिए।

  2. प्रातरुत्थानम् (सुबह जल्दी उठना):
    मुर्गा भोर होते ही सबसे पहले उठता है। प्रातः जागरण स्वास्थ्य, संयम और दिनचर्या की सफलता की कुंजी है।

  3. भोजनं सह बन्धुभिः (परिवार के साथ भोजन):
    मुर्गा अपनी टोलियों में भोजन करता है। मनुष्य को भी पारिवारिक समरसता, मेल-मिलाप और एकता बनाए रखने हेतु परिवार के साथ भोजन करने की आदत रखनी चाहिए।

  4. स्त्रियम् आपद्गताम् रक्षेत् (स्त्री की रक्षा):
    संकट में पड़ी स्त्री की रक्षा करना – यह मानवता, मर्यादा और धर्म की मूल भावना है।


🔹 नीति संदेश (नीतिशिक्षा):

"प्रकृति ही हमारा सबसे बड़ा गुरु है।
यदि हम पशु-पक्षियों के व्यवहार को भी समझें, तो जीवन में श्रेष्ठ आचरण सीख सकते हैं।"

Post a Comment

0 Comments

Post a Comment (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!