Secrets of Lanka Dahan | हनुमान जी ने कैसे जलाया स्वर्णमयी लंका?
🔥 भूमिका : रावण की योजना और हनुमान जी की प्रतिक्रिया
जब रावण ने हनुमान जी की पूंछ में तेल, घी और वस्त्र लपेटकर उसमें अग्नि लगा दी, तो उसका उद्देश्य केवल हनुमान को अपमानित करना था। वह सोच रहा था कि यह वानर जलती पूंछ लिए व्याकुल होकर अपने प्रभु श्रीराम के पास लौट जाएगा, और रावण की शक्ति का प्रदर्शन समस्त शत्रु-वृन्दों के लिए एक संदेश बन जाएगा।
लेकिन रावण यह नहीं जानता था कि यह कोई साधारण वानर नहीं, अपितु साक्षात् शिवांश अवतारी, रामदूत, चतुर गुप्तचर और अद्वितीय वीर हनुमान हैं। उसने अपने ही हाथों अपनी नगरी के विनाश की चिंगारी प्रज्वलित कर दी थी।
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Secrets of Lanka Dahan | हनुमान जी ने कैसे जलाया स्वर्णमयी लंका? |
🕵️♂️ हनुमान जी की गुप्तचर नीति और "मरुत उनचास" की योजना
हनुमान जी केवल पराक्रमी योद्धा ही नहीं, बल्कि कुशल गुप्तचरी और रणनीति के भी अधिपति थे। लंका में प्रवेश से पूर्व ही उन्होंने विभिन्न दिशाओं में कार्यरत अदृश्य गुप्तचर – वायु के ४९ रूपों (मरुतगण) – को सक्रिय किया। तुलसीदास जी इसे स्पष्ट करते हैं –
हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास।अट्टहास करि गर्जा कपि बढ़ि लाग अकास।।
"मरुत उनचास" अर्थात ४९ प्रकार की वायु (हवा, आंधी, बवंडर, तूफान आदि) – जो पूरे वातावरण में छिपे दूतों के समान कार्यरत थीं – एकत्र होकर लंका में आग के प्रसार को तीव्र कर देती हैं। यह प्राकृतिक तत्त्वों का एक दैवीय समन्वय था जो लंका के पतन का माध्यम बना।
🔥 हनुमान जी की अग्नि से अप्रभावित देह – वरदान का चमत्कार
हनुमान जी ने अपने शरीर को अग्नि से लिपटे हुए भी "बिसाल" (विशाल) कर लिया, किंतु वे "हरुआई" अर्थात भारहीन भी हो गए। उनके शरीर को अग्नि जला नहीं सकी, क्योंकि उन्हें अग्नि से अप्रभावित रहने का वरदान प्राप्त था – यह वर अनेक प्रसंगों में देवताओं द्वारा दिया गया था।
यह भी संकेत करता है कि यह कोई सांसारिक अग्नि नहीं, बल्कि दिव्य उद्देश्य की पूर्ति हेतु साक्षात् शक्ति-प्रदर्शन था।
🏯 लंका में विनाश का क्रम : रणनीति, युद्ध और संदेश
- 🔐 रावण की सुरक्षा व्यवस्था का ध्वंस – हनुमान जी ने लंकिनी को परास्त कर लंका में प्रवेश पाया।
- 🌴 अशोक वाटिका में उत्पात – जहां सीता माता को बंधक बनाकर रखा गया था, वहाँ पर वृक्षों का संहार किया गया।
- ⚔️ अक्षयकुमार का वध – रावण का पुत्र भी हनुमान जी के पराक्रम के आगे टिक नहीं सका।
- 🙏 विभीषण से गुप्त संवाद – विभीषण को श्रीराम की शरण में आने का संकेत दिया गया।
- 🔥 पूरी स्वर्ण-मयी लंका को अग्नि के हवाले कर दिया गया – यह केवल भौतिक विनाश नहीं था, अपितु रावण के अभिमान, उसकी अहंकारपूर्ण शक्ति और अधर्म का प्रतीकात्मक दहन था।
🌟 जामवंत जी की प्रशंसा : कर्मयोगी की पुष्टि
हनुमान जी के अद्वितीय पराक्रम को देख जामवंत जी ने कहा:
कवन सो काज कठिन जग माहीं।जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं।।
"हे तात! इस संसार में ऐसा कौन-सा कार्य कठिन है, जो आपसे न हो सके?"
यह वाक्य केवल प्रशंसा नहीं, अपितु यह पुष्टि है कि हनुमान जी असंभव को संभव बनाने की शक्ति से युक्त हैं। उनका पराक्रम कर्मयोग, भक्ति और चातुर्य का सम्मिलित स्वरूप है।
🔚 निष्कर्ष : लंका दहन का आध्यात्मिक व दार्शनिक पक्ष
- यह घटना केवल एक ऐतिहासिक युद्ध का दृश्य नहीं है, अपितु धर्म और अधर्म के बीच दिव्य टकराव का संकेत है।
- हनुमान जी के माध्यम से यह सिद्ध हुआ कि जब भक्ति, बुद्धि और बल – तीनों का समन्वय होता है, तो सबसे सशक्त साम्राज्य भी एक वानर के सामने टिक नहीं सकता।
- लंका दहन का रहस्य हमें यह सिखाता है कि जो सत्य के पक्ष में है, वह अग्नि में भी जले बिना विजय प्राप्त करता है।