Is Your Kathavachak Truly Trained? शौनक-सूत संवाद से जानिए सच्चे वक्ता की पहचान

Sooraj Krishna Shastri
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Is Your Kathavachak Truly Trained? शौनक-सूत संवाद से जानिए सच्चे वक्ता की पहचान

 यह विषय अत्यंत गंभीर, शास्त्रीय और समाज को जागरूक करने वाला है। इसमें न केवल कथा श्रवण की मर्यादा की चर्चा है, बल्कि उस आध्यात्मिक अनुशासन और शास्त्र-सम्मत परंपरा की पुनः स्थापना का आग्रह भी है, जो आज के कथा-जगत में दुर्लभ होती जा रही है। आइए इसे और भी विस्तृत, सुगठित और शास्त्रीय रूप से सुव्यवस्थित रूप में प्रस्तुत करते हैं:


शास्त्रसिद्ध कथावाचक की अनिवार्यता: शौनक और सूत संवाद से आधुनिक समाज के लिए मार्गदर्शन

प्रस्तावना:

आज की कथा-परंपरा में जब कोई भी स्त्री-पुरुष, बालक-बालिका, या अल्पज्ञ व्यक्ति बिना किसी शास्त्रीय प्रशिक्षण के व्यासासन पर बैठ जाता है और लोगों के मन में यह धारणा बना दी जाती है कि — “जो भी भगवान की कथा कह रहा है, उसका अपमान नहीं करना चाहिए”, तब यह जानना आवश्यक हो जाता है कि शास्त्र क्या कहते हैं? श्रद्धा का क्या स्वरूप है? और क्या श्रोता को वक्ता की परीक्षा करनी चाहिए या नहीं?

Is Your Kathavachak Truly Trained? शौनक-सूत संवाद से जानिए सच्चे वक्ता की पहचान
Is Your Kathavachak Truly Trained? शौनक-सूत संवाद से जानिए सच्चे वक्ता की पहचान


इस संदर्भ में महाभारत के आदिपर्व (अध्याय 5) में वर्णित शौनक और सूतजी का संवाद अत्यंत प्रासंगिक है, जो स्पष्ट करता है कि — केवल ज्ञानी, गुरुसेवी, शास्त्रपारगामी वक्ता से ही कथा श्रवण करना चाहिए।


1. ऋषियों द्वारा सूत जी से प्रश्न: विद्वत्ता की परख आवश्यक

✦ श्लोक:

पुराणमखिलं तात पिता तेऽधीतवान्पुरा।
कच्चित्त्वमपि तत्सर्वमधीषे लौमहर्षणे।। (महाभारत, आदिपर्व 5/1)

✦ भावार्थ:

शौनक ऋषि कहते हैं:

"हे तात! तुम्हारे पिता रोमहर्षण ने भगवान वेदव्यास से समस्त पुराणों का अध्ययन किया था। क्या तुमने भी अपने पिता के समान ही गुरुजनों से सम्पूर्ण शास्त्रों का अध्ययन किया है?"

✦ विश्लेषण:

यह प्रश्न केवल औपचारिक नहीं है, यह एक नैतिक और शास्त्रीय जिम्मेदारी का बोध है, जिसे श्रोता निभाता है। शौनक जैसे महर्षि, जो स्वयं ज्ञानी हैं, वे भी यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि जो कथा उन्हें सुनाने आ रहा है, वह पात्र है या नहीं।


2. श्रद्धा और मूढ़ता में अंतर:

आज के समाज में यह प्रचारित किया जाता है कि —

“कथा कहने वाले से कुछ पूँछना श्रद्धा का अपमान है।”

यह धारणा मूढ़ता है, श्रद्धा नहीं।
श्रद्धा का अर्थ है — ज्ञान, विवेक और शास्त्रसम्मत विश्वास। श्रद्धा तभी स्थिर होती है, जब वक्ता स्वयं श्रद्धालु, शास्त्रज्ञ और गुरुसेवी हो।


3. शौनक ऋषि का अगला प्रश्न:

✦ श्लोक:

पुराणे हि कथा दिव्या आदिवंशांश्च धीमताम्।
कथ्यन्ते ये पुरास्माभिः श्रुतपूर्वाः पितुस्तव।। (महाभारत, आदिपर्व 5/2)

✦ भावार्थ:

"हे सूतपुत्र! पुराणों में जो दिव्य कथाएँ हैं, जिन्हें हमने पूर्व में तुम्हारे पिता से सुना है, क्या तुम भी उन दिव्य कथाओं को उसी प्रकार शास्त्रसम्मत रीति से कह सकोगे?"


4. उग्रश्रवा सूत जी का उत्तर:

✦ श्लोक:

यदधीतं पुरा सम्यक् द्विजश्रेष्ठैर्महात्मभिः।
वैशम्पायनविप्राग्यैस्तैश्चापि कथितं यथा।।
यदधीतं च पित्रा मे सम्यक् चैव ततो मया।। (महाभारत, आदिपर्व 5/4)

✦ भावार्थ:

उग्रश्रवा सूत जी ने कहा:

“मैंने श्रेष्ठ ब्राह्मणों एवं महात्माओं से, तथा स्वयं अपने पिता से जो भी महाभारत एवं पुराणों का विधिपूर्वक अध्ययन किया है, वही आपको सुनाऊँगा।”

✦ शिक्षाप्रद निष्कर्ष:

उग्रश्रवा जी ने शान्तिपूर्वक यह बताया कि वे केवल स्वाधीन वक्ता नहीं हैं, वे शास्त्रपारंगत, गुरुसेवी और परंपरा से दीक्षित हैं। इसलिए वे प्रामाणिक वक्ता हैं।


5. आधुनिक परिप्रेक्ष्य में मूढ़ श्रद्धा की हानियाँ:

आजकल —

▪︎ बिना शास्त्रपाठ किए हुए,
▪︎ बिना संस्कृतज्ञान के,
▪︎ केवल प्रशिक्षणों से मुख्य कथानक रटकर,
▪︎ बालकों या बालिकाओं द्वारा,

कथाएं करवाई जाती हैं। न वे वक्ता शास्त्रज्ञ होते हैं, न श्रोता विवेकी।

✦ दुष्परिणाम:

  • धन की लूट,
  • भावनात्मक शोषण,
  • अप्रमाणिक वक्तव्यों से भ्रम,
  • भक्तों में वास्तविक श्रद्धा का ह्रास।

6. श्रोता की जिम्मेदारी क्या है?

किसी कथावाचक को बुलाने से पहले यह अवश्य पूँछें:

  • क्या आपने संस्कृत सीखी है?
  • क्या आपने किसी गुरु के सान्निध्य में पुराणों का अध्ययन किया है?
  • किस शास्त्र, गुरु या परंपरा से आपने दीक्षा ली है?
  • क्या आप केवल मुख्य कथानक रटकर बोलते हैं या भावार्थ और तत्वज्ञान भी जानते हैं?

यदि वे नाराज हों या टालें – तो समझिए कि वहां से दूर रहना ही श्रेयस्कर है।


7. शास्त्रीय परंपरा की पुनः स्थापना आवश्यक है:

कथा केवल मनोरंजन नहीं, मोक्ष का साधन है।
वह तभी संभव है जब —

✓ वक्ता शास्त्रज्ञ, गुरुसेवी, तपस्वी हो,
✓ श्रोता जिज्ञासु, विवेकी, मर्यादाबद्ध हो,
✓ कथा की दिशा भाव, ज्ञान, और भक्ति में हो, न कि धन, दिखावा और प्रसिद्धि में।


8. निष्कर्ष व सन्देश:

▪︎ कथा वही श्रवणीय है जो शास्त्रसम्मत हो।
▪︎ वक्ता वही योग्य है जो गुरुपरंपरा और शास्त्रज्ञान से दीक्षित हो।
▪︎ श्रोता वही श्रद्धालु है जो विवेकपूर्वक चयन करता है।

🌿 “श्रवण के साथ विवेक का होना ही सच्ची श्रद्धा है।”


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