Ann ka Adar – Respect Food, Save Life | अन्न का महत्व और जीवन की सच्ची कहानी

Sooraj Krishna Shastri
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Ann ka Adar – Respect Food, Save Life | अन्न का महत्व और जीवन की सच्ची कहानी

🌾 अन्न का आदर – जीवन का अमूल्य संदेश 🌾

१. प्रस्तावना

भारतीय संस्कृति में अन्न को "अन्नदेवता" कहा गया है। शास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है –
"अन्नं ब्रह्मेति व्यजानात्" – अर्थात् अन्न ही ब्रह्म है।
जो भोजन हमें जीवन देता है, उसका अनादर करना पाप तुल्य माना गया है। यह कथा हमें अन्न के महत्व और उसका अपमान करने पर होने वाले परिणामों की गहरी शिक्षा देती है।


२. कथा का प्रसंग

एक बार सोनू अपने परिवार के साथ एक रिश्तेदार की शादी में गया। जैसे ही वह पंक्ति में पहुँचा, उसने अपनी प्लेट में ढेर सारे व्यंजन परोस लिए – पनीर की सब्ज़ी, चावल, दही-भल्ले, पापड़, अचार, सलाद इत्यादि।

प्लेट भर जाने के बाद वह एक ओर जाकर बैठा और खाने लगा। लेकिन दो चम्मच चावल खाते ही उसने मुँह बिचकाया – "इसमें तो नमक ज़्यादा है।"
उसे लगा – "ऐसा खाना तो रोज़ घर पर मिलता है। मुझे तो रसगुल्ले, गुलाब जामुन और आइसक्रीम खानी है।"

यह सोचकर सोनू ने अपनी भरी हुई प्लेट चुपचाप टेंट के एक कोने से बाहर रख दी और वापस आकर मिठाई लेने चला गया।

Ann ka Adar – Respect Food, Save Life | अन्न का महत्व और जीवन की सच्ची कहानी
Ann ka Adar – Respect Food, Save Life | अन्न का महत्व और जीवन की सच्ची कहानी



३. अप्रत्याशित दृश्य

गुलाब जामुन लेकर जब सोनू उसी स्थान पर लौटा और अपनी खाली प्लेट फेंकने गया, तो उसने देखा कि उसकी छोड़ी हुई थाली से एक गरीब बच्चा खाना खा रहा है।

सोनू ने हैरानी से कहा –
"अरे बच्चे, तुम ये क्या कर रहे हो?"

बच्चा घबराकर सोनू के पैरों में गिर पड़ा और बोला –
"भैया, मुझे खाने दो। मैंने तीन दिन से कुछ नहीं खाया है। मैं आपसे विनती करता हूँ।"

यह सुनकर सोनू की आँखों से आँसू बहने लगे। उसने बच्चे को समझाते हुए कहा –
"बेटा, यह खाना तो ज़मीन पर रखा था और इसमें नमक भी ज़्यादा है।"

बच्चा रोते हुए बोला –
"भैया, आपके लिए यह खाना जैसा भी हो, पर मेरे लिए तो यही जीवन है। इसे मत छीनो।"


४. बच्चे का गहरा संदेश

सोनू ने बच्चे से पूछा –
"गुलाब जामुन खाओगे? मैं तुम्हारे लिए लाता हूँ।"

पर बच्चे ने मुस्कुराते हुए कहा –
"नहीं भैया, मेरे लिए तो यही काफी है।"

फिर वह बोला –
"आप क्यों रो रहे हो? रोना तो मुझे चाहिए। आप किस्मत वाले हो कि इतना अच्छा भोजन आपको नसीब होता है। मेरे जैसे कितने बच्चे रोज़ भूखे पेट सो जाते हैं। मैं तो इस थाली के सहारे आज पेट भर लूँगा, पर कल फिर भूखा रह जाऊँगा। आप तो कल भी स्वादिष्ट खाना खाएँगे, इसलिए किस्मत वाले आप हैं, मैं नहीं।"


५. माँ का त्याग

बच्चे ने जाते-जाते सोनू से कहा –
"भैया, अगर कृपा करनी ही है तो मुझे थोड़ा सा खाना घर ले जाने दीजिए। मेरी माँ हमेशा मुझे खिलाकर ही खाती है। मैंने तीन दिन से नहीं खाया, तो सोचिए माँ ने भी तीन दिन से नहीं खाया होगा। क्या मैं उसके लिए खाना ले जा सकता हूँ?"

यह सुनकर सोनू का हृदय द्रवित हो उठा। उसने बहुत सारा खाना बच्चे को दिया।


६. शिक्षा और जीवन परिवर्तन

उस दिन से सोनू की सोच बदल गई। जब भी उसे खाना अच्छा न लगता या वह उसे छोड़ने का विचार करता, उसकी आँखों के सामने वही बच्चा आ जाता और कहता –
"भैया, देखो, आप किस्मत वाले हो। मैं आज भी भूखा हूँ और आपको खाना मिल रहा है।"

तब सोनू हर कौर को भगवान का प्रसाद समझकर ग्रहण करता और अन्न का आदर करने लगा।


७. निष्कर्ष

  • अन्न केवल भोजन नहीं, बल्कि जीवन है।

  • हमें कभी भी खाने को व्यर्थ नहीं करना चाहिए।

  • जो हमारे लिए साधारण है, वही किसी भूखे के लिए जीवनदान है।

  • माँसाहार, मदिरा और अपवित्र भोजन त्यागकर शुद्ध सात्त्विक अन्न ग्रहण करना ही मन और जीवन को शुद्ध करता है।

संदेश:
"अन्न का अपमान मत करो। हर दाना किसी भूखे की भूख मिटा सकता है।"


👉 यह कथा विद्यालयों, सामाजिक आयोजनों और पारिवारिक जीवन में बच्चों को सुनाई जानी चाहिए ताकि उनमें अन्न और श्रम का सम्मान करने की भावना विकसित हो।

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