कृष्ण का जन्म क्यों और कैसे हुआ? | Devaki-Vasudev से Nandotsav तक Full Kahani
(देवकी-विवाह से कृष्ण-जन्म और नन्दोत्सव तक की कथा)
देवकी का विवाह
मथुरा के राजा उग्रसेन के छोटे भाई देवक की सात कन्याएँ थीं। इनमें देवकी सबसे प्रसिद्ध और तेजस्विनी थी। उग्रसेन के सामन्तों में शूरसेन का पुत्र वसुदेव था। देवक ने अपनी सातों कन्याओं का विवाह वसुदेव से कर दिया, और इस प्रकार देवकी वसुदेव की पत्नी बनी।
कंस, जो देवकी का चचेरा भाई था, अपनी बहन देवकी को बहुत प्रेम करता था। विवाह के बाद जब देवकी को विदा किया जा रहा था, तो कंस स्वयं रथ का सारथी बनकर वसुदेव और देवकी को ससुराल पहुँचा रहा था।
आकाशवाणी और कंस का क्रोध
यह सुनते ही कंस का हृदय काँप उठा। बहन के प्रति उसका स्नेह एक क्षण में शत्रुता में बदल गया। उसने तलवार खींचकर उसी समय देवकी का वध करना चाहा।
वसुदेव के वचन से कंस शांत तो हो गया, पर भीतर का भय समाप्त नहीं हुआ। वह दोनों को मथुरा ले आया और आजीवन कारावास में डाल दिया।
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कृष्ण का जन्म क्यों और कैसे हुआ? | Devaki-Vasudev से Nandotsav तक Full Kahani |
कारागार का जीवन और संतानों का वध
अब देवकी और वसुदेव का जीवन कारागार की अंधेरी कोठरी में बीतने लगा। कठोर बेड़ियों और पहरे के बीच भी दोनों एक-दूसरे का सहारा लेकर समय काटते रहे।
नारद की बात सुनकर कंस का संदेह और बढ़ गया। उसने तुरन्त बालक को छीनकर शिला पर पटक दिया। उसी दिन से कंस ने देवकी और वसुदेव को और भी कठोर कैद में डाल दिया।
इसी प्रकार देवकी के एक-एक कर छह पुत्र हुए और प्रत्येक को कंस ने निर्ममता से मार डाला।
बलराम का गुप्त अवतरण
सातवें गर्भ में शेषनाग ने प्रवेश किया। भगवान की लीला से वह गर्भ योगमाया द्वारा वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया गया। इस प्रकार बलराम जी का जन्म हुआ, पर कंस को इसका कुछ पता ही न चला।
कृष्ण का प्राकट्य
समय बीता और देवकी ने भाद्रपद मास की अष्टमी की मध्य रात्रि में आठवें पुत्र को जन्म दिया। जैसे ही बालक प्रकट हुआ, पूरी कारागार में दिव्य प्रकाश छा गया। देवकी और वसुदेव की बेड़ियाँ स्वतः खुल गईं, प्रहरी गहरी नींद में सो गए और कारागार के द्वार स्वयं खुल गए।
वसुदेव की यमुना यात्रा
बाहर भीषण वर्षा हो रही थी, आकाश में बिजली चमक रही थी और यमुना नदी उफान पर थी। फिर भी वसुदेव शिशु को सिर पर लेकर कारागार से निकले। भगवान शेषनाग ने अपना विशाल फन फैलाकर बालक को वर्षा से बचाया।
दैवी शक्ति से यमुना नदी मार्ग देने लगी और वसुदेव सुरक्षित गोकुल पहुँच गए। वहाँ नंद और यशोदा के यहाँ कन्या जन्मी थी। वसुदेव ने बालक कृष्ण को यशोदा के पास शय्या पर सुला दिया और कन्या को लेकर पुनः कारागार लौट आए।
कंस का भ्रम और योगमाया का प्रकट होना
कंस विस्मित और भयभीत रह गया।
नन्दोत्सव
उधर गोकुल में नंदबाबा के घर पुत्र जन्म पर अत्यन्त हर्षोल्लास छा गया। सम्पूर्ण ब्रजभूमि में उत्सव मनाया गया। गायें, बछड़े, गोप-गोपियाँ सभी आनंदित हो उठे। मिठाई और धन का वितरण हुआ। ढोल-नगाड़े और गीतों से पूरा गोकुल गूंज उठा। यही उत्सव इतिहास में नन्दोत्सव कहलाया।
नंद ने यह सलाह मानी और आनन्दपूर्वक अपने गाँव लौट गए।
✨ इस प्रकार देवकी-विवाह से लेकर कृष्ण-जन्म और नन्दोत्सव तक की कथा दिव्य और अद्भुत लीलाओं से पूर्ण होती है।