संस्कृत श्लोक "यथा खरः चन्दनभारवाही भारस्य वेत्ता न तु चन्दनस्य" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
🌸 जय श्रीराम! सुप्रभातम् 🌸
यह श्लोक अत्यंत व्यावहारिक शिक्षा देता है। यह बताता है कि केवल ग्रंथ-पाठ (reading) ही पर्याप्त नहीं है, उनके वास्तविक अर्थ और तत्त्व को समझना ही सच्चा ज्ञान है। आइए विस्तार से समझते हैं—
१. संस्कृत मूल
यथा खरः चन्दनभारवाही
भारस्य वेत्ता न तु चन्दनस्य।
एवं हि शास्त्राणि बहून्यधीत्य
अर्थेषु मूढाः खरवद्वहन्ति॥
२. अंग्रेज़ी ट्रान्सलिटरेशन (IAST)
yathā kharaḥ candana-bhāra-vāhī
bhārasya vettā na tu candanasya ।
evaṁ hi śāstrāṇi bahūny adhītya
artheṣu mūḍhāḥ kharavad vahanti ॥
३. पद-पद अर्थ (Word-by-Word Meaning)
पद | अर्थ |
---|---|
यथा | जैसे |
खरः | गधा |
चन्दन-भार-वाही | चन्दन की लकड़ी का बोझ उठाने वाला |
भारस्य वेत्ता | केवल भार को जानता है |
न तु | परंतु नहीं |
चन्दनस्य | चन्दन (के गुणों) को |
एवं हि | इसी प्रकार |
शास्त्राणि | शास्त्र, ग्रंथ |
बहूनि | बहुत से |
अधीत्य | पढ़कर |
अर्थेषु | उनके अर्थ में |
मूढाः | मूर्ख |
खरवत् | गधे की तरह |
वहन्ति | ढोते हैं |
४. हिन्दी अनुवाद
जिस प्रकार चन्दन का भार ढोने वाला गधा केवल बोझ का अनुभव करता है, पर चन्दन की सुगंध और गुण को नहीं जानता,
उसी प्रकार अनेक शास्त्र पढ़ लेने पर भी जो मूर्ख उनके अर्थ को नहीं समझते, वे केवल गधे की तरह पठन का बोझ ढोते रहते हैं।
५. English Translation
Just as a donkey carrying sandalwood knows only the weight but not the fragrance or value of sandal,
similarly, fools who study many scriptures but fail to understand their meaning carry the burden of learning like donkeys.
६. व्याकरणिक विश्लेषण
- खरः → पुंलिंग, प्रथमा एकवचन।
- चन्दन-भार-वाही → बहुव्रीहि समास = चन्दनस्य भारं वहति इति।
- अधीत्य → "अधि + ई" (to study), अव्यय (absolutive form: having studied)।
- मूढाः → प्रथमा बहुवचन (मूढ = अविवेकी)।
- वहन्ति → धातु "वह्" (to carry), लट् लकार, बहुवचन।
७. आधुनिक सन्दर्भ
🔹 आज बहुत से लोग डिग्रियाँ, प्रमाणपत्र, अथवा ज्ञान का संग्रह कर लेते हैं, परंतु उसका सही उपयोग करना नहीं जानते।
🔹 “सूचना” (Information) और “ज्ञान” (Wisdom) में यही अंतर है।
🔹 यदि शास्त्रों, पुस्तकों या शिक्षा का सार जीवन में उतारा न जाए, तो वह केवल संग्रह का बोझ रह जाता है।
८. संवादात्मक नीति कथा
“गधा और चन्दन”
एक व्यापारी ने अपने गधे पर चन्दन की लकड़ियाँ लाद दीं। गधा भारी बोझ से दुखी होकर सोचने लगा—“आज बहुत कठिन बोझ है।”
पास ही खड़े एक मनुष्य ने कहा—“मूर्ख! तू केवल बोझ देख रहा है, पर जानता नहीं कि यह चन्दन है, जिसकी सुगंध और मूल्य अनमोल है।”
उसी प्रकार, यदि हम केवल ग्रंथ पढ़कर रटते रहें और जीवन में उनका मर्म न समझें, तो हम भी उस गधे की तरह केवल बोझ ढो रहे होंगे।
९. सार-सूत्र (Takeaway)
👉 केवल पढ़ना पर्याप्त नहीं; समझना और अपनाना ही सच्चा ज्ञान है।
👉 ज्ञान का बोझ नहीं, बल्कि उसका जीवन-प्रयोग मूल्यवान है।
👉 मूर्ख वह नहीं जो कम पढ़े, बल्कि वह है जो पढ़कर भी समझ न पाए।