संस्कृत श्लोक "श्लिष्टा क्रिया कस्यचिदात्मसंस्था" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
🌸 जय श्रीराम! सुप्रभातम् 🌸
यह श्लोक सर्वश्रेष्ठ शिक्षक के लक्षण स्पष्ट करता है। आइए इसे क्रमबद्ध ढंग से समझें—
१. संस्कृत मूल
श्लिष्टा क्रिया कस्यचिदात्मसंस्था
संक्रान्तिरन्यस्य विशेषयुक्ता।
यस्योभयं साधु स शिक्षकाणां
धुरि प्रतिष्ठापयितव्य एव ॥
२. अंग्रेज़ी ट्रान्सलिटरेशन (IAST)
śliṣṭā kriyā kasyacid ātmasaṃsthā
saṃkrāntir anyasya viśeṣayuktā ।
yasyobhayaṃ sādhu sa śikṣakāṇāṃ
dhuri pratiṣṭhāpayitavya eva ॥
३. पद-पद अर्थ (Word-by-Word Meaning)
पद | अर्थ |
---|---|
श्लिष्टा क्रिया | उत्तम कर्म, निपुण क्रिया |
कस्यचित् | किसी-किसी के लिए |
आत्मसंस्था | स्वयं तक सीमित |
संक्रान्तिः | स्थानान्तरण, दूसरों तक पहुँचना (ज्ञान का संचार) |
अन्यस्य | किसी दूसरे का |
विशेषयुक्ता | विशेष गुणों से युक्त |
यस्य उभयम् | जिसके पास दोनों हैं |
साधु | श्रेष्ठ, उत्तम |
शिक्षकाणाम् | शिक्षकों में |
धुरि | अग्रभाग, प्रधान स्थान |
प्रतिष्ठापयितव्यः | प्रतिष्ठित किया जाना चाहिए |
४. हिन्दी अनुवाद
कुछ लोग स्वयं काम करने में तो निपुण होते हैं, पर दूसरों को सिखाने में उतने नहीं।
कुछ लोग दूसरों को सिखाने में तो प्रवीण होते हैं, पर स्वयं उतने अच्छे कार्यकर्ता नहीं।
किन्तु जिसके भीतर दोनों गुण — स्वयं करने की क्षमता और दूसरों को सिखाने की कला — एकसाथ हों, वही श्रेष्ठ शिक्षक होता है और उसे गुरुजनों में सर्वप्रथम स्थान मिलना चाहिए।
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संस्कृत श्लोक "श्लिष्टा क्रिया कस्यचिदात्मसंस्था" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण |
५. English Translation
Some people can perform a task well but cannot teach it effectively.
Some others can teach well but are not efficient performers.
But the one who can both perform and teach excellently deserves to be placed at the forefront among teachers.
६. व्याकरणिक विश्लेषण
- श्लिष्टा क्रिया → स्त्रीलिंग, प्रथमा एकवचन।
- आत्मसंस्था → समास = आत्मनि संस्थिता, "अपने तक सीमित।"
- संक्रान्तिः → स्त्रीलिंग, "ज्ञान का संचार।"
- प्रतिष्ठापयितव्यः → तव्यप्रत्यय, "प्रतिष्ठित किया जाना चाहिए।"
७. आधुनिक सन्दर्भ
🔹 आज के समय में केवल कुशल इंजीनियर, डॉक्टर, कलाकार होना पर्याप्त नहीं है।
🔹 एक सच्चे शिक्षक को अपनी कला/ज्ञान दूसरों में स्थानांतरित करने की भी क्षमता होनी चाहिए।
🔹 दुनिया को ऐसे प्रेरक शिक्षक चाहिए जो करने वाले और सिखाने वाले दोनों हों।
८. संवादात्मक नीति कथा
“गुरु और शिष्य”
एक शिष्य ने दो अलग-अलग आचार्यों से कला सीखी।
पहला आचार्य स्वयं बहुत कुशल था, पर सिखाने में कठोर और अस्पष्ट।
दूसरा आचार्य मध्यम स्तर का कर्मठ था, पर बहुत धैर्यवान शिक्षक।
शिष्य को दोनों से कुछ न कुछ मिला, पर पूर्णता नहीं।
अंततः वह तीसरे आचार्य से मिला, जो स्वयं कुशल कारीगर था और धैर्यपूर्वक समझाने वाला भी।
शिष्य ने कहा—“गुरुदेव, आप ही वास्तविक शिक्षक हैं। क्योंकि आपके पास करने की शक्ति और सिखाने की योग्यता दोनों हैं।”
९. सार-सूत्र (Takeaway)
👉 केवल कार्यकुशलता पर्याप्त नहीं।
👉 केवल शिक्षण-कौशल भी पर्याप्त नहीं।
👉 दोनों का संगम ही सच्चे शिक्षक की पहचान है।