संस्कृत श्लोक "न सा सभा यत्र न सन्ति वृद्धा" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण

Sooraj Krishna Shastri
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संस्कृत श्लोक "न सा सभा यत्र न सन्ति वृद्धा" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण 

🌸 जय श्रीराम! सुप्रभातम् 🌸

 प्रस्तुत श्लोक अत्यंत गम्भीर नीतिशास्त्रीय शिक्षा देता है – सभा, वृद्ध, धर्म और सत्य की वास्तविक परिभाषा।


१. संस्कृत मूल

न सा सभा यत्र न सन्ति वृद्धा
न ते वृद्धा ये न वदन्ति धर्मम्।
नासौ धर्मो यत्र न सत्यमस्ति
न तत्सत्यं यच्छलेनानुविद्धम्॥


२. IAST Transliteration

na sā sabhā yatra na santi vṛddhā
na te vṛddhā ye na vadanti dharmam।
nāsau dharmo yatra na satyam asti
na tat satyaṃ yac chalena-anuviddham॥


३. पद-पद अर्थ

पद अर्थ
न सा सभा वह सभा नहीं है
यत्र जहाँ
न सन्ति वृद्धाः जहाँ वृद्ध (ज्ञानी, अनुभवी) न हों
न ते वृद्धाः वे वृद्ध नहीं हैं
ये न वदन्ति धर्मम् जो धर्म की बातें नहीं कहते
न असौ धर्मः वह धर्म नहीं है
यत्र न सत्यम् अस्ति जहाँ सत्य नहीं है
न तत् सत्यम् वह सत्य नहीं है
यत् शलेन अनुविद्धम् जो छल-कपट से मिश्रित हो

४. हिन्दी भावार्थ

जहाँ ज्ञानी और अनुभवी पुरुष उपस्थित नहीं होते, वह सभा नहीं कहलाती। जो लोग धर्म (न्याय, सदाचार) की बात नहीं करते, वे वृद्ध नहीं कहलाते। जहाँ सत्य नहीं है, वह धर्म नहीं है। और जो छल-कपट से युक्त है, वह सत्य भी नहीं है।

संस्कृत श्लोक "न सा सभा यत्र न सन्ति वृद्धा" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
संस्कृत श्लोक "न सा सभा यत्र न सन्ति वृद्धा" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण 



५. English Translation

That is not an assembly where wise and experienced men are absent. Those are not elders who do not speak about righteousness. That is not righteousness where truth is absent. That is not truth which is tainted with deceit.


६. व्याकरणिक विश्लेषण

  • सभा (sabha) → स्त्रीलिङ्ग, प्रथमा एकवचन – assembly.
  • वृद्धाः (vṛddhāḥ) → पुंलिङ्ग बहुवचन – elders, wise men.
  • धर्मम् (dharmam) → पुल्लिंग/नपुंसक, द्वितीया एकवचन – righteousness.
  • सत्यं (satyaṃ) → नपुंसक, प्रथमा/द्वितीया एकवचन – truth.
  • शल (śala) → छल, कपट, deceit.

७. नीतिपरक शिक्षा

  1. सभा की महत्ता – सभा वही है जहाँ ज्ञान और अनुभव के स्वर गूँजें। केवल भीड़ को सभा नहीं कहा जा सकता।
  2. वृद्ध का लक्षण – उम्र से कोई वृद्ध नहीं होता, बल्कि धर्मोपदेश से होता है।
  3. धर्म और सत्य का सम्बन्ध – धर्म वही है जहाँ सत्य है।
  4. सत्य और कपट का भेद – छल से मिश्रित सत्य, सत्य कहलाने योग्य नहीं है।

८. आधुनिक सन्दर्भ

  • संसद, न्यायालय, पंचायत या परिवार की बैठक – यदि वहाँ अनुभवी और धर्मपरायण व्यक्ति न हों तो निर्णय टिकाऊ नहीं हो सकते।
  • आज बहुत लोग "अर्धसत्य" या "कपटयुक्त सत्य" बोलते हैं – पर शास्त्र कहता है, ऐसा सत्य असत्य ही है।

९. नीति-कथा (संवाद रूप में)

👦 शिष्य: गुरुदेव! क्या केवल लोगों की भीड़ भी सभा कहलाती है?
👴 गुरु: नहीं पुत्र! जहाँ अनुभवी और धर्मप्रिय पुरुष न हों, वह सभा केवल कोलाहल है।
👦 शिष्य: और क्या हर वृद्ध ही पूज्य है?
👴 गुरु: नहीं, जो धर्म नहीं कहता, वह सच्चा वृद्ध नहीं।
👦 शिष्य: धर्म और सत्य में क्या सम्बन्ध है?
👴 गुरु: जहाँ सत्य नहीं, वहाँ धर्म नहीं। और जो छल से ढँका हो, वह सत्य भी असत्य है।


१०. सार-सूत्र

👉 सभा का मूल्य ज्ञान और धर्म पर आधारित है।
👉 वृद्ध वही है जो धर्म का उपदेश दे।
👉 धर्म और सत्य अविभाज्य हैं।
👉 छलयुक्त सत्य वास्तव में असत्य है।

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