संस्कृत श्लोक "सन्दिग्धे परलोकेऽपि कर्तव्यो धर्मसञ्चयः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
🌸 जय श्रीराम! सुप्रभातम् 🌸
प्रस्तुत श्लोक वास्तव में अत्यन्त गहन दार्शनिक और नैतिक दृष्टिकोण लिए हुए है। यह शंका, तर्क और आस्था तीनों का सुंदर संतुलन प्रस्तुत करता है। आइए विस्तार से देखें—
१. संस्कृत मूल
सन्दिग्धे परलोकेऽपि कर्तव्यो धर्मसञ्चयः।
नास्ति चेत् तत्र का हानिः अस्ति चेत् नास्तिको हतः॥
२. IAST Transliteration
sandigdhe paraloke’pi kartavyo dharmasañcayaḥ ।
nāsti cet tatra kā hāniḥ asti cet nāstiko hataḥ ॥
३. पद-पद अर्थ
पद | अर्थ |
---|---|
सन्दिग्धे | संदिग्ध होने पर, शंका में होने पर |
परलोके | परलोक के विषय में (afterlife) |
अपि | भी |
कर्तव्यः | करना चाहिए |
धर्मसञ्चयः | धर्म का संचय, पुण्य का अर्जन |
नास्ति चेत् | यदि परलोक न हो |
तत्र | उसमें, वहाँ |
का हानिः | क्या हानि है? |
अस्ति चेत् | यदि परलोक हो |
नास्तिकः | न मानने वाला (atheist) |
हतः | नष्ट, बर्बाद, हानि को प्राप्त |
४. हिन्दी भावार्थ
यदि परलोक के अस्तित्व पर शंका भी हो, तो भी धर्म और पुण्य का संचय करना चाहिए।
क्योंकि—
- यदि परलोक नहीं हुआ तो कोई हानि नहीं।
- परंतु यदि परलोक हुआ, तो नास्तिक अर्थात् परलोक न मानने वाला व्यक्ति हानि को प्राप्त होगा।
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संस्कृत श्लोक "सन्दिग्धे परलोकेऽपि कर्तव्यो धर्मसञ्चयः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण |
५. English Translation
Even if the existence of the afterlife is uncertain, one should continue to accumulate righteousness (dharma).
If the afterlife does not exist, there is no loss.
But if it does exist, the atheist (who rejected it) is ruined.
६. व्याकरणिक विश्लेषण
- सन्दिग्धे परलोके → लोकसप्तमी, “when the afterlife is uncertain.”
- कर्तव्यः धर्मसञ्चयः → कर्तव्य (obligation) + धर्मसञ्चयः (accumulation of righteousness)।
- नास्ति चेत् तत्र का हानिः → शर्तीय वाक्य, "If it does not exist, what loss is there?"
- अस्ति चेत् नास्तिको हतः → "If it exists, the atheist is destroyed."
७. आधुनिक सन्दर्भ
यह श्लोक आस्तिक और नास्तिक दोनों के लिए संदेश देता है:
- धर्म और सद्गुण का आचरण जीवन को स्वयं में सुखमय और सार्थक बनाता है, चाहे परलोक हो या न हो।
- परलोक का अस्तित्व यदि सिद्ध हुआ, तो केवल धर्म का आचरण ही वहाँ सहायक होगा।
- अतः धर्मपालन में हानि नहीं, केवल लाभ है।
८. नीति-कथा (संक्षिप्त)
“सावधान व्यापारी”
एक व्यापारी समुद्र यात्रा पर जाने से पहले दोनों प्रकार का प्रबन्ध करता था—
जहाज के डूबने की सम्भावना के लिए नाव और तैरना सीखता, और सफल यात्रा की सम्भावना के लिए व्यापारिक सामान भी ले जाता।
लोग हँसते थे कि यह इतना सतर्क क्यों है।
परन्तु एक दिन तूफ़ान आया, जहाज डूबा और वही व्यापारी बच निकला।
👉 यही धर्म का नियम है — शंका हो तब भी धर्म अपनाओ, क्योंकि उससे कभी हानि नहीं होती।
९. सार-सूत्र (Takeaway)
✔ धर्म आचरण जीवन को यहाँ भी लाभकारी बनाता है और यदि परलोक है तो वहाँ भी।
✔ अधर्म और नास्तिकता, यदि परलोक है, तो विनाश का कारण है।
✔ यह श्लोक हमें सत्कर्म में निश्चिन्त होकर लगे रहने की प्रेरणा देता है।