संस्कृत श्लोक "कालाशी स्वल्पसन्तुष्टः सुनिद्रः शीघ्रचेतनः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण

Sooraj Krishna Shastri
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 संस्कृत श्लोक "कालाशी स्वल्पसन्तुष्टः सुनिद्रः शीघ्रचेतनः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण

🙏 जय श्रीराम 🌷 सुप्रभातम् 🙏
 प्रस्तुत श्लोक एक अत्यंत महत्वपूर्ण नीतिशतकीय उपदेश है, जो जीवन के व्यवहारिक पक्ष में पशुओं से सीख लेने की बात करता है। प्रस्तुत है इसका संस्कृत मूल, अंग्रेज़ी लिप्यंतरण, हिन्दी अनुवाद, व्याकरणिक विश्लेषण, आधुनिक सन्दर्भ, और संवादात्मक नीति कथा के साथ विस्तृत विवेचन:


🌺 संस्कृत मूल श्लोक:

कालाशी स्वल्पसन्तुष्टः सुनिद्रः शीघ्रचेतनः ।
प्रभुभक्तश्च शूरश्च ज्ञातव्याः षट् शुनो गुणाः ॥


🔤 Transliteration (English):

kālāśī svalpa-santuṣṭaḥ su-nidraḥ śīghra-cetanaḥ |
prabhu-bhaktaś ca śūraś ca jñātavyāḥ ṣaṭ śuno guṇāḥ ||


🇮🇳 हिन्दी अनुवाद:

कुत्ते के छह गुण जानने योग्य हैं –
वह समय पर भोजन करता है,
थोड़े में संतुष्ट हो जाता है,
अच्छी नींद लेता है,
जल्दी जाग जाता है,
अपने स्वामी का भक्त होता है,
और वह पराक्रमी (शूरवीर) भी होता है।
संस्कृत श्लोक "कालाशी स्वल्पसन्तुष्टः सुनिद्रः शीघ्रचेतनः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
संस्कृत श्लोक "कालाशी स्वल्पसन्तुष्टः सुनिद्रः शीघ्रचेतनः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण



🔍 व्याकरणात्मक विश्लेषण:

पद पदच्छेद शब्द रूप अर्थ
कालाशी काल + आशी पुं. संज्ञा समय पर खाने वाला
स्वल्पसन्तुष्टः स्वल्पे सन्तुष्टः विशेषण थोड़े में संतुष्ट
सुनिद्रः सु + निद्रः विशेषण अच्छी नींद लेने वाला
शीघ्रचेतनः शीघ्रं चेतनं यस्य सः विशेषण जो जल्दी जाग जाता है
प्रभुभक्तः प्रभौ भक्तः विशेषण स्वामीभक्त
शूरः शूर विशेषण पराक्रमी
ज्ञातव्याः ज्ञा (धातु) + तव्य (कृदन्त) क्रियाविशेषण जानने योग्य
षट् संख्या - छह
शुनः शुन (कुत्ता) + षष्ठी पुं. संज्ञा कुत्ते के
गुणाः गुण पुं. बहुवचन गुण

🌐 आधुनिक सन्दर्भ:

आज के युग में जब जीवन तेज़, प्रतिस्पर्धी और अनिश्चितताओं से भरा हुआ है, ऐसे में यह श्लोक हमें सिखाता है कि एक साधारण प्राणी से भी हम अनुशासन, संतोष, स्वास्थ्य, सजगता, निष्ठा और साहस जैसे गुणों को अपना सकते हैं।
मनुष्य के 'पेट', 'नींद', 'जागरण', 'निष्ठा' और 'पराक्रम' में यदि यह संतुलन आ जाए, तो जीवन सरल, सशक्त और मूल्यवान बन सकता है।


🎭 संवादात्मक नीति कथा (कुत्ते से प्रेरणा):

🔸 बालक अर्जुन और ऋषि:

एक दिन एक बालक अर्जुन जंगल में गया और एक ऋषि से पूछा –
"गुरुदेव! क्या कोई पशु भी गुरु हो सकता है?"

ऋषि मुस्काए और बोले –
"पुत्र! पशुओं में भी अनेक गुण छिपे हैं। उदाहरण देखो – कुत्ता।"

अर्जुन: "गुरुदेव, कुत्ता तो आम पशु है! उसमें क्या विशेष है?"

ऋषि: "जानो पुत्र! वह समय पर भोजन करता है (कालाशी),
थोड़े में संतुष्ट रहता है (स्वल्पसन्तुष्टः),
गहरी नींद लेता है (सुनिद्रः),
सावधान रहता है और शीघ्र जागता है (शीघ्रचेतनः),
अपने स्वामी के प्रति पूर्ण समर्पण रखता है (प्रभुभक्तः),
और जब कोई संकट हो, तो निडर होकर सामना करता है (शूरः)।"

अर्जुन: "गुरुदेव, ये तो मेरे लिए जीवन का पाठ बन गया।
अब से मैं मनुष्य से पहले अपने व्यवहार में ये गुण लाने का प्रयास करूंगा।"

ऋषि: "यही नीति है पुत्र – 'गुरु रूपे पशवो अपि' –
जहाँ गुण है, वहीं से ज्ञान लो।"


📚 संक्षेप में शिक्षा:

ज्ञान, गुण, नीति और प्रेरणा – केवल महापुरुषों से नहीं,
बल्कि एक कुत्ते जैसे छोटे प्राणी से भी मिल सकती है, यदि दृष्टि विवेकपूर्ण हो।

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