संस्कृत श्लोक "गुणाः सर्वत्र पूज्यन्ते न महत्योऽपि सम्पदः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
🌸 जय श्रीराम! सुप्रभातम् 🌸
यह श्लोक बहुत सुंदर रूप से बताता है कि संपत्ति नहीं, बल्कि गुण ही सच्चा सम्मान दिलाते हैं। आइए क्रमवार समझते हैं—
१. संस्कृत मूल
गुणाः सर्वत्र पूज्यन्ते न महत्योऽपि सम्पदः।
पूर्णेन्दुः किं तथा वन्द्यो निष्कलङ्को यथा कृशः॥
२. अंग्रेज़ी ट्रान्सलिटरेशन (IAST)
guṇāḥ sarvatra pūjyante na mahatyo’pi sampadaḥ ।
pūrṇenduḥ kiṁ tathā vandyo niṣkalaṅko yathā kṛśaḥ ॥
३. पद-पद अर्थ
पद | अर्थ |
---|---|
गुणाः | सद्गुण, अच्छे स्वभाव और योग्यताएँ |
सर्वत्र | हर जगह |
पूज्यन्ते | पूजित होते हैं, सम्मानित होते हैं |
न | नहीं |
महत्यः अपि | बड़ी से बड़ी भी |
सम्पदः | सम्पत्तियाँ |
पूर्णेन्दुः | पूर्ण चन्द्रमा |
किं | क्या |
तथा | उसी प्रकार |
वन्द्यः | पूज्य, नमन योग्य |
निष्कलङ्कः | निर्दोष, कलंक-रहित |
यथा | जैसे |
कृशः | पतला, छोटा (शुक्ल पक्ष का द्वितीया चन्द्र) |
४. हिन्दी अनुवाद
गुण सर्वत्र पूजनीय हैं, बड़ी से बड़ी सम्पत्तियाँ भी नहीं।
क्या पूर्णिमा का पूर्ण चन्द्रमा वैसे वन्दनीय है, जैसे शुक्ल द्वितीया का छोटा पर निष्कलंक (निर्दोष) चन्द्रमा है?
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संस्कृत श्लोक "गुणाः सर्वत्र पूज्यन्ते न महत्योऽपि सम्पदः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण |
५. English Translation
Virtues are respected everywhere, not even great riches.
Is the full moon worshipped as much as the slender crescent moon of the bright fortnight, which is stainless?
६. व्याकरणिक विश्लेषण
- गुणाः → प्रथमा बहुवचन (गुण)।
- पूज्यन्ते → धातु √पूज् (to worship), लट् लकार, कर्मणि प्रयोग, बहुवचन।
- सम्पदः → प्रथमा बहुवचन (संपत्ति, wealth)।
- पूर्णेन्दुः → तत्पुरुष समास = पूर्णः चन्द्रमा।
- निष्कलङ्कः → बहुव्रीहि समास = यस्य कलङ्कः नास्ति सः।
- कृशः → विशेषण = छोटा, पतला।
७. आधुनिक सन्दर्भ
🔹 आज समाज में लोग धन-संपत्ति को देखकर प्रभावित हो जाते हैं, परंतु सच्चा आदर गुणी व्यक्तियों को ही मिलता है।
🔹 उदाहरण: महात्मा गांधी साधारण वस्त्र पहनते थे, पर उनकी सत्य और अहिंसा की महत्ता के कारण विश्व ने उन्हें पूज्य माना।
🔹 जैसे छोटी-सी चंद्रकला (crescent moon) को शिवजी के मस्तक पर स्थान मिला, वैसे ही शुद्धता और गुण ही अमर सम्मान दिलाते हैं।
८. संवादात्मक नीति कथा
“चाँद का रहस्य”
एक बालक ने अपने गुरु से पूछा —
“गुरुजी! लोग पूर्णिमा के पूर्ण चन्द्रमा को देखकर प्रसन्न तो होते हैं, पर शिवजी के मस्तक पर तो छोटी सी अर्धचंद्रकला ही शोभती है। क्यों?”
गुरु ने मुस्कराकर कहा —
“बेटा! पूर्णिमा का चन्द्रमा तो कलंकों से युक्त होता है, पर वह छोटी चंद्रकला निष्कलंक है।
इसी प्रकार, संसार में धनवान अनेक मिलेंगे, पर गुणवान वही आदर पाएगा, जिसके भीतर कोई दोष न हो।”
९. सार-सूत्र (Takeaway)
👉 धन अस्थायी है, पर गुण शाश्वत हैं।
👉 संसार में सच्चा सम्मान निर्दोष चरित्र और सद्गुणों से ही मिलता है।
👉 "निष्कलंकता" (purity) धन से बड़ी है।