संस्कृत श्लोक "सन्तोषक्षतये पुंसाम् आकस्मिकधनागमः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण

Sooraj Krishna Shastri
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संस्कृत श्लोक "सन्तोषक्षतये पुंसाम् आकस्मिकधनागमः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण

🌺 🙏 जय श्रीराम। सुप्रभातम् 🙏
यह एक अत्यंत गूढ़ और नैतिक दृष्टि से समृद्ध संस्कृत श्लोक है। आइए इसका एक व्यवस्थित, विस्तृत और बहुआयामी विश्लेषण करें:


🟡 संस्कृत मूल श्लोक:

सन्तोषक्षतये पुंसाम् आकस्मिकधनागमः।
सरसां सेतुभेदाय वर्षौघः स च न स्थिरः॥


🔤 Transliteration (IAST):

santoṣakṣataye puṁsām ākasmikadhanāgamaḥ |
sarasāṁ setubhedāya varṣaughaḥ sa ca na sthiraḥ ||


🇮🇳 हिंदी अनुवाद (भावार्थ सहित):

मनुष्यों के संतोष को भंग करने के लिए ही अचानक धन का आगमन होता है।
जैसे वर्षा का अधिक प्रवाह (बाढ़) सरोवरों के पुलों को तोड़ देता है, वैसे ही यह आकस्मिक धन भी जीवन की स्थिरता को नष्ट करता है; यह टिकाऊ नहीं होता।
संस्कृत श्लोक "सन्तोषक्षतये पुंसाम् आकस्मिकधनागमः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
संस्कृत श्लोक "सन्तोषक्षतये पुंसाम् आकस्मिकधनागमः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण



📚 व्याकरणिक विश्लेषण:

पद प्रकार अर्थ
सन्तोष पुं., प्रातिपदिक संतुष्टि
क्षतये स्त्री., चतुर्थी विभक्ति एकवचन क्षति के लिए
पुंसाम् पुं., षष्ठी बहुवचन पुरुषों का
आकस्मिक विशेषण आकस्मिक, अचानक
धनागमः पुं., प्रातिपदिक धन का आगमन
सरसाम् स्त्री., षष्ठी बहुवचन जलाशयों (सरों) का
सेतुभेदाय पुं., चतुर्थी एकवचन पुल को तोड़ने के लिए
वर्षौघः पुं., प्रातिपदिक वर्षा की बाढ़
सः सर्वनाम वह (वर्षौघः / धनागमः)
अव्यय नहीं
स्थिरः विशेषण स्थायी, टिकाऊ

🌐 आधुनिक सन्दर्भ / Contemporary Relevance:

  • आकस्मिक धन, जैसे अचानक लॉटरी, विरासत या शेयर बाज़ार की अप्रत्याशित कमाई, मनुष्यों को भ्रमित, असंतुलित, और संकट में डाल सकती है यदि बुद्धि व संयम न हो।
  • जैसे अत्यधिक वर्षा पुलों व तटबंधों को तोड़ देती है, वैसे ही अप्रत्याशित संपत्ति मन के संयम, संतोष और रिश्तों की नींव को तोड़ सकती है।
  • यह श्लोक आर्थिक प्रबंधन, संयम और संतुलित जीवन दृष्टिकोण की शिक्षा देता है।

🎭 संवादात्मक नीति कथा (एक लघु दृष्टान्त):

राजा और दो व्यापारी

एक बार एक राजा ने दो व्यापारियों को पुरस्कृत किया—एक को धीमे-धीमे दस वर्षों में धन दिया, और दूसरे को एक साथ भारी स्वर्णदान।
पहले व्यापारी ने धन से स्कूल, कुएँ, धर्मशालाएं बनवाईं और राज्य में सम्मान पाया।
दूसरे ने उत्सव, विलासिता और जुए में सब खो दिया और ऋण में डूब गया।

राजा ने कहा: "जो धीरे-धीरे मिले, वही स्थिर होता है।
अकस्मात् धन – वर्षा की बाढ़ के समान है – जो यदि दिशा न पाए तो विनाश ही लाता है।"


🧘‍♂️ नैतिक सन्देश:

  • धन का मूल्य प्राप्ति की विधि और उपयोग के विवेक से होता है।
  • जो अचानक और अत्यधिक मिलता है, वह संतोष, सदाचार और स्थिरता को डिगा सकता है।
  • संतोष ही सच्चा सुख है, आकस्मिक वैभव नहीं।

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