Jamuna Bahe Agam Apar: Vasudev Krishna Story और जीवन का संदेश
यह सुंदर कथा बहुत गहरी प्रेरणा देती है। इसे व्यवस्थित ढंग से, प्रसंग और भाव के अनुरूप प्रस्तुत करता हूँ—
जमुना जी का अगम अपार स्वरूप
वसुदेव जी अचानक ठिठक गए।
चारों ओर केवल जल ही जल दिखाई दे रहा था।
जमुना जी इतनी प्रबल वेग से बह रही थीं कि उनका दूसरा किनारा कहीं दिखाई ही नहीं देता था।
लहरें इतनी ऊँची मानो पूरे संसार को डुबाने निकली हों।
क्षणभर को वसुदेव जी का हृदय भी काँप उठा।
हालाँकि उन्होंने यमुना जी का उफनता रूप पहले भी देखा था—सावन-भादो के दिनों में जब वे तैर कर झटपट पार उतर जाते थे।
पर आज की स्थिति भिन्न थी।
वर्षों की कालकोठरी की यातना ने शरीर को दुर्बल कर दिया था।
शौर्य, बल और साहस हर समय एक-सा कहाँ रहते हैं?
आल्हा गाने वाले बूढ़ों की कही पंक्तियाँ स्मरण हो आईं—
"गइल जवानी फेर न लौटी, केतनो घीव मलीदा खाय..."
शीश पर समस्त विश्वास
फिर भी उनके सिर पर जो अमूल्य भार था, वह केवल बालक नहीं,
समस्त संसार का विश्वास था।
इसलिए पार तो उतरना ही था।
वसुदेव जी ने क्षणभर के लिए टोकरी उतारी, बालक कृष्ण की आँखों में देखा और बोले—
"और महाराज! देख रहे हैं जमुना जी को? बताइए, यह लहरें कैसे पार होंगी?"
बालक के मुख पर मंद-मंद मुस्कान फैल गई।
पिता भी मुस्कुरा उठे।
क्षणभर के लिए भय और संकट दोनों ही लुप्त हो गए।
उन्होंने फिर कहा—
"तुम तो देवता हो न? कंस के अत्याचार से संसार को बचाने आये हो।
पर इन लहरों से हमें कौन बचाएगा लल्ला?"
जमुना जी भी मानो यह पिता-पुत्र का संवाद सुन रही थीं।
लहरों का गर्जन धीरे-धीरे मंद पड़ने लगा।
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Jamuna Bahe Agam Apar: Vasudev Krishna Story और जीवन का संदेश |
साहस और स्मरण
वसुदेव जी ने बालक के गाल थपथपाए और कहा—
"चलो भई! रुकने से काम नहीं चलता।
पार करना है तो पहले नदी में उतरना ही होगा।
नदी में उतरना और लहरों से लड़ते हुए बढ़ते जाना हमारे हिस्से,
और इन प्रचंड लहरों को रोकना तुम्हारे जिम्मे..."
टोकरी फिर सिर पर रखी।
ईश्वर का स्मरण किया।
भय को त्याग दिया, केवल कर्तव्य याद रखा।
कर्म और विश्वास
वसुदेव जी सोचने लगे—
"यदि डूबना ही नियति है तो डूबेंगे,
पर रुकेंगे नहीं।
रुकना, प्रतीक्षा करना, या दोष देना—
इससे कभी काम नहीं बनता।
युद्धभूमि में उतरना होगा, संघर्ष करना होगा,
जीत-हार तो उसी के हाथ में है..."
सोचिए न!
जमुना जी तो एक क्षण में शांत भी हो सकती थीं।
वे चाहतीं तो पहले ही लहरें थम जातीं,
बारिश रुक जाती,
अंधकार छँट जाता,
या कोई पुल बन जाता।
परंतु ऐसा नहीं हुआ।
क्योंकि फल केवल उसे ही मिलता है जो कर्म करता है।
यहाँ हिसाब बड़ा कठोर है,
रत्तीभर इधर-उधर नहीं।
अंततः पार
वसुदेव जी लड़े।
साहस किया।
अथाह जल में उतरे।
बालक पर भरोसा रखा।
फिर उसके लिए तो यह सब चुटकी का खेल था।
जमुना जी चरण छूकर शान्त हो गईं,
और वसुदेव जी भी बालक सहित पार उतर गए।
संदेश
उस पर भरोसा रखिए,
और साहस के साथ अपना कर्तव्य निभाइए।
पार उतारना तो उसके लिए सचमुच चुटकी का खेल है।
👉 यह कथा केवल एक प्रसंग नहीं, जीवन का संदेश है—
- संकट चाहे कितना भी अगम क्यों न लगे।
- भय चाहे जितना भी गहरा क्यों न हो।
- हमें पहले कदम बढ़ाना होता है।
- जब कर्म और विश्वास एक साथ हों, तब हर यमुना शांत हो जाती है।