श्राद्ध पक्ष (Pitru Paksha) और पुराणों में महत्व – Shraadh Rituals, Pitra Tarpan Significance

Sooraj Krishna Shastri
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यह बहुत अच्छा विषय है जिसमें श्राद्ध पक्ष और उससे संबंधित पुराणों के आधार पर महत्वपूर्ण बातें संकलित की हैं। मैं इसे व्यवस्थित, विस्तृत, सन्दर्भ और श्लोक सहित तथा भावपूर्ण रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ—


श्राद्ध पक्ष (Pitru Paksha) और पुराणों में महत्व – Shraadh Rituals, Pitra Tarpan Significance

श्राद्ध पक्ष जिसे पितृ पक्ष भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण काल है। यह काल भाद्रपद मास की पूर्णिमा से प्रारंभ होकर आश्विन मास की अमावस्या तक (लगभग 16 दिन) चलता है।
इस अवधि को पितरों की तृप्ति के लिए सर्वोत्तम समय माना गया है। धर्मशास्त्रों एवं पुराणों में स्पष्ट उल्लेख है कि इस पक्ष में किए गए श्राद्ध, तर्पण और दान कर्म से पितर संतुष्ट होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

पुराणों और शास्त्रों में श्राद्ध पक्ष के महत्व का विस्तृत वर्णन मिलता है। आइए इसे क्रमवार समझते हैं—

श्राद्ध पक्ष (Pitru Paksha) और पुराणों में महत्व – Shraadh Rituals, Pitra Tarpan Significance
श्राद्ध पक्ष (Pitru Paksha) और पुराणों में महत्व – Shraadh Rituals, Pitra Tarpan Significance



१) गरुड़ पुराण में श्राद्ध का महत्व

  • गरुड़ पुराण को मृत्यु और परलोक संबंधी ज्ञान का सबसे प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है।
  • इसमें बताया गया है कि श्राद्ध पक्ष में ब्राह्मण भोजन, अन्न, जल, तर्पण और पिंडदान करने से पितर तृप्त होते हैं।
  • पितरों की तृप्ति से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और वे मोक्ष या उत्तम लोक की प्राप्ति करते हैं।
  • यह भी कहा गया है कि यदि संतान पितरों का श्राद्ध न करें तो वे अतृप्त रह जाते हैं और वंशजों की उन्नति में बाधा उत्पन्न होती है।

👉 गरुड़ पुराण कथन

 "श्राद्धकर्म से पितरों को संतोष मिलता है, और वे अपने वंशजों के कल्याण हेतु आशीर्वाद देते हैं।"

गरुड़ पुराण में श्राद्ध और पितृ तर्पण का अत्यंत विस्तृत वर्णन है। इसमें बताया गया है कि अन्न और जल से किया गया तर्पण पितरों तक अवश्य पहुँचता है।

📖 गरुड़ पुराण श्लोक

पिण्डोदकक्रियायुक्तं श्राद्धं पितृहितं स्मृतम्।

अन्नोदकं हि पितृणां प्रीत्यै स्यात् प्रियोपहारः ॥

भावार्थ – अन्न और जल से सम्पन्न श्राद्ध कर्म पितरों के लिए हितकारी है। अन्न और जल पितरों के प्रिय उपहार हैं।


२) विष्णु पुराण में श्राद्ध और तर्पण

  • विष्णु पुराण में पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध, तर्पण और दान की प्रक्रिया का वर्णन है।
  • इसमें कहा गया है कि विधिपूर्वक तर्पण करने से पितरों की आत्मा प्रसन्न होकर वंशजों को आयु, आरोग्य और संतान सुख प्रदान करती है।
  • इसमें विशेष रूप से जल तर्पण और पवित्र मंत्रों का उच्चारण करने की महत्ता बताई गई है।
  • साथ ही दान (विशेषकर अन्न व वस्त्र का दान) को पितरों को प्रसन्न करने का उत्तम साधन माना गया है।

👉 विष्णु पुराण वचन – 

"पितरों के लिए किया गया तर्पण और दान न केवल उन्हें तृप्त करता है, बल्कि वंशजों के जीवन में शांति और समृद्धि भी लाता है।"

विष्णु पुराण में पितृ तर्पण और जलदान की विशेष महत्ता का वर्णन है।

📖 विष्णु पुराण श्लोक (३.१५.३)

पिण्डं दत्त्वा तु यो भक्त्या जलं दत्त्वा च श्रद्धया।

तृप्तिं गच्छन्ति ते पितरस्तेन तुष्टा विशन्ति ते ॥

भावार्थ – जो व्यक्ति पिण्ड और जल श्रद्धा-भक्ति से अर्पित करता है, उसके पितर तृप्त होकर तुष्ट होते हैं और उसे आशीर्वाद प्रदान करते हैं।


३) महाभारत (अनुशासन पर्व) में श्राद्ध की महिमा

  • महाभारत के अनुशासन पर्व में श्राद्ध कर्म का विशेष उल्लेख है।
  • भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को बताया था कि श्राद्ध करने से पापों का नाश होता है और व्यक्ति को पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
  • श्राद्ध करने वाला व्यक्ति दीर्घायु, समृद्ध और संतोषपूर्ण जीवन प्राप्त करता है।
  • इस पर्व में यह भी कहा गया है कि श्राद्ध से न केवल पितरों को तृप्ति मिलती है, बल्कि देवताओं और ऋषियों को भी संतोष प्राप्त होता है।

👉 महाभारत सिद्धांत – 

"श्राद्ध करने वाला पितरों, देवताओं और ऋषियों को एक साथ संतुष्ट करता है।"

महाभारत में भीष्म पितामह युधिष्ठिर को श्राद्ध की महिमा बताते हैं।

📖 महाभारत, अनुशासन पर्व (८८.१)

श्राद्धं प्रज्वलिताग्नौ तु पिण्डं दत्त्वा यथाविधि।

तृप्तिं गच्छन्ति ते देवा ऋषयश्च पितामहाः ॥

भावार्थ – यथाविधि प्रज्वलित अग्नि के सम्मुख श्राद्ध और पिण्डदान करने से देवता, ऋषि और पितामह सभी तृप्त होते हैं।


४) मनुस्मृति में श्राद्ध का स्वरूप

  • मनुस्मृति में श्राद्ध का परिभाषात्मक वर्णन मिलता है।
  • इसमें कहा गया है कि श्रद्धा भाव से पितरों को अर्पित किया गया अन्न, जल, और पिंड ही श्राद्ध कहलाता है।
  • यदि तर्पण श्रद्धा से किया जाए तो पितर प्रसन्न होकर परिवार को सुख-समृद्धि और संतति-वृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
  • यहाँ श्रद्धा को श्राद्ध का मूल आधार बताया गया है।

👉 मनुस्मृति कथन – 

"श्रद्धया यत् क्रियते तत् श्राद्धम्" – अर्थात श्रद्धा से किया गया तर्पण ही श्राद्ध है।

मनुस्मृति में स्पष्ट कहा गया है कि श्रद्धा भाव से किया गया कर्म ही श्राद्ध कहलाता है।

📖 मनुस्मृति (३.२०३)

श्रद्धया यत् क्रियते यत् च न श्रद्धया।

तयोः श्रद्धासमायुक्तं श्राद्धं पितृहितं स्मृतम् ॥

भावार्थ – जो तर्पण श्रद्धा से किया जाता है, वही पितरों के लिए हितकारी है। श्रद्धा रहित श्राद्ध पितरों को संतोष नहीं देता।


५) ब्रह्म पुराण में पिण्डदान की महत्ता

  • ब्रह्म पुराण में श्राद्ध पक्ष के दौरान दान को सर्वोत्तम बताया गया है।
  • इसमें कहा गया है कि इस समय गाय, भूमि, अन्न, स्वर्ण और वस्त्र का दान करने से पितर अत्यंत प्रसन्न होते हैं।
  • इन दानों से वंशजों के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का प्रवेश होता है और सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं।
  • विशेषकर अन्नदान को सर्वश्रेष्ठ दान माना गया है।

👉 ब्रह्म पुराण सिद्धांत – 

"श्राद्ध में दान, भोजन और तर्पण से पितर संतुष्ट होते हैं और जीवन की समस्त विपत्तियाँ दूर हो जाती हैं।"

ब्रह्म पुराण में श्राद्ध पक्ष में दान और तर्पण की अनिवार्यता बताई गई है।

📖 ब्रह्म पुराण श्लोक

गवां दानं भूमिदानं वस्त्रदानं तु सर्वशः।

अन्नदानं विशेषेण श्राद्धे पितृप्रीतिकारकम् ॥

भावार्थ – श्राद्ध के समय गाय, भूमि, वस्त्र और अन्न का दान पितरों को प्रसन्न करता है, विशेषकर अन्नदान को सर्वश्रेष्ठ माना गया है।


निष्कर्ष

श्राद्ध पक्ष केवल एक कर्मकांड नहीं, बल्कि पितरों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर है।
पुराणों, महाकाव्यों और स्मृतियों में इसके महत्व का गहन वर्णन मिलता है।
श्राद्ध करने से—

  • पितरों की आत्मा को तृप्ति और शांति मिलती है।
  • वंशजों को आयु, आरोग्य, संतति, समृद्धि और संतोष का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
  • व्यक्ति के पाप नष्ट होकर उसका मार्ग सुगम होता है।

इस प्रकार श्राद्ध पक्ष हमारे जीवन और आध्यात्मिक यात्रा का अभिन्न अंग है।

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