Samrat Ashok: Kaling Yudh se Buddhism Tak ka Safar | Maurya Empire History in Hindi

Sooraj Krishna Shastri
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इस पोस्ट में सम्राट अशोक पर विस्तृत विवरण व्यवस्थित, कालक्रमिक और विषयवार रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ। इसमें हम उनके जीवन परिचय, कलिंग युद्ध और परिवर्तन, धार्मिक नीतियाँ, धर्म प्रचार और प्रशासनिक सुधार, जनोपयोगी कार्य, मृत्यु और प्रभाव, तथा बौद्ध धर्म में योगदान को क्रमशः व्यवस्थित करेंगे।


सम्राट अशोक : जीवन, परिवर्तन और योगदान

1. परिचय एवं शासनकाल

  • नाम : अशोक मौर्य
  • शासनकाल : लगभग 265–238 ईसा पूर्व (कई विद्वान 273–232 ईसा पूर्व भी मानते हैं)
  • वंश : मौर्य वंश
  • स्थान : प्राचीन भारत
  • विशेष पहचान : भारतीय इतिहास का सबसे शक्तिशाली सम्राट एवं बौद्ध धर्म का प्रमुख प्रवर्तक।

अशोक मौर्य वंश के तृतीय शासक थे। वे न केवल साम्राज्य विस्तार के लिए जाने जाते हैं, बल्कि जीवन के मध्यकाल में हुए उनके गहन आध्यात्मिक परिवर्तन और धर्म आधारित शासन नीति के लिए भी प्रसिद्ध हैं।

Samrat Ashok: Kaling Yudh se Buddhism Tak ka Safar | Maurya Empire History in Hindi
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2. प्रारंभिक शासन और कलिंग युद्ध

अपने शासन के प्रारंभिक वर्षों में अशोक ने विजय की नीति अपनाई। उनका सबसे प्रसिद्ध अभियान कलिंग युद्ध (आधुनिक ओडिशा) था, जो उनके शासनकाल के लगभग आठवें वर्ष में हुआ।

  • युद्ध में हज़ारों लोगों की मृत्यु और लाखों का विस्थापन हुआ।
  • अशोक ने स्वयं अपने शिलालेखों में स्वीकार किया कि इस रक्तपात ने उन्हें गहरा पश्चाताप दिया।

3. आध्यात्मिक परिवर्तन और बौद्ध धर्म की ओर अग्रसरता

कलिंग युद्ध के बाद अशोक बौद्ध धर्म के सिद्धांतों – अहिंसा, करुणा, दया, और परोपकार – से गहराई से प्रभावित हुए।

  • उन्होंने सशस्त्र विजय का त्याग कर "धम्मविजय" (धर्म के सिद्धांतों द्वारा विजय) को अपनाया।
  • यह परिवर्तन न केवल व्यक्तिगत था, बल्कि उनके शासन और नीतियों का आधार बन गया।

4. धर्म की अवधारणा और नीति

अशोक के शिलालेखों के अनुसार, "धर्म" का अर्थ किसी विशेष धार्मिक पंथ से नहीं, बल्कि सार्वभौमिक नैतिक मूल्यों से था, जैसे:

  • ईमानदारी, सत्यनिष्ठा, करुणा, दया, परोपकार
  • अहिंसा, सभी के प्रति सद्भावपूर्ण व्यवहार
  • अपव्यय और लालच से बचना
  • पशु-क्रूरता का परित्याग
  • "थोड़ा पाप और बहुत सारे अच्छे कर्म"

उन्होंने सभी धार्मिक संप्रदायों का सम्मान किया और उन्हें अपने सिद्धांतों के अनुसार जीने की पूर्ण स्वतंत्रता दी, किंतु साथ ही उनसे आग्रह किया कि वे "अपनी आंतरिक योग्यता की वृद्धि" के लिए प्रयासरत रहें।


5. धार्मिक सहिष्णुता और सामाजिक सद्भाव

  • अशोक ने लोगों को दूसरे पंथों का सम्मान करने, दूसरों की अच्छाइयों की प्रशंसा करने, और कठोर आलोचना से बचने की प्रेरणा दी।
  • वे बौद्ध धर्म के बारे में केवल अपने सहधर्मियों से बात करते थे, दूसरों पर थोपने का प्रयास नहीं करते थे।

6. धर्म प्रचार और प्रशासनिक सुधार

अशोक ने केवल व्यक्तिगत धर्म पालन पर बल नहीं दिया, बल्कि इसे राज्य-स्तर पर लागू किया:

  1. धम्म-यात्राएँ – समय-समय पर ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर धर्मोपदेश देना और लोगों के कष्ट दूर करना।
  2. अधिकारियों के आदेश – सामान्य प्रशासनिक कार्यों के साथ-साथ जनता के सुख-दुख पर सतत ध्यान देना।
  3. "धर्म मंत्री" की नियुक्ति
    • महिलाओं, दूरस्थ क्षेत्रों के लोगों, पड़ोसी राज्यों और विभिन्न धार्मिक समुदायों की विशेष आवश्यकताओं की पूर्ति।
    • जहाँ भी दुख है, उसका निवारण करना।
    • जनकल्याण मामलों की सूचना तत्काल सम्राट तक पहुँचाना।

7. जनोपयोगी और कल्याणकारी कार्य

अशोक के सार्वजनिक कार्य उनके मानवीय दृष्टिकोण के प्रमाण हैं:

  • लोगों और पशुओं के लिए अस्पताल बनवाना
  • सड़क किनारे वृक्षारोपण, कुएँ खोदना, पानी के लिए शेड और विश्राम गृह बनवाना
  • पशु-क्रूरता पर रोक लगाने के आदेश
  • सार्वजनिक लापरवाही को रोकने हेतु नियम

8. शिलालेख और स्तंभ

अशोक ने अपने सिद्धांतों और नीतियों को चट्टानों और स्तंभों पर खुदवाकर पूरे साम्राज्य में फैलाया।

  • शिला शिलालेख – धर्म के मूल सिद्धांत और जनकल्याण की नीतियाँ।
  • स्तंभ शिलालेख – प्रमुख स्थानों पर धार्मिक और नैतिक संदेश।
  • सारनाथ का सिंह स्तंभ – आज भारत का राष्ट्रीय प्रतीक।

9. बौद्ध धर्म में योगदान

  • बौद्ध संघ के भीतर मतभेदों को दूर करना।
  • अनुयायियों के लिए शास्त्र अध्ययन का पाठ्यक्रम बनवाना।
  • विदेशों में धर्म प्रचार मिशन भेजना – श्रीलंका में उनके पुत्र महेंद्र और पुत्री संगमित्रा ने बौद्ध धर्म फैलाया।
  • स्तूप और विहार निर्माण में व्यापक योगदान।

10. मृत्यु और विरासत

  • अशोक की मृत्यु लगभग 238 ईसा पूर्व में हुई।
  • उनकी मृत्यु के बाद मौर्य साम्राज्य शीघ्र ही बिखर गया।
  • किंतु उनके आदर्श – धार्मिक सहिष्णुता, नैतिक शासन और जनकल्याण – आज भी प्रासंगिक हैं।
  • बौद्ध धर्म के वैश्विक प्रसार में उनका योगदान सबसे स्थायी रहा।

11. ऐतिहासिक महत्व

अशोक का शासन न केवल एक साम्राज्य का प्रशासनिक आदर्श है, बल्कि यह राजनीति और नैतिकता के संतुलन का अद्वितीय उदाहरण भी है।
उनका नाम आज भी "धर्मराज" और "चक्रवर्ती सम्राट" के रूप में सम्मानित है।

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