वर-वधु Selection की परंपरागत Kasautiyan vs Modern Mental Confusion

Sooraj Krishna Shastri
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यह विषय अत्यंत गंभीर है – वर-वधु चयन की परंपरागत कसौटियाँ बनाम आज के समय में मीडिया व फिल्मों द्वारा गढ़ी गई कंडीशनिंग। मैं इसे व्यवस्थित (structured), विस्तृत (detailed), तथा प्रभावी (impactful) रूप में प्रस्तुत करता हूँ।


वर-वधु Selection की परंपरागत Kasautiyan vs Modern Mental Confusion

(वर-वधु चयन की परंपरागत कसौटियाँ बनाम आधुनिक मानसिक भ्रम)

🔹 प्राचीन मार्गदर्शन : विवाह से पूर्व वर में 7 गुण

शास्त्रों में कहा गया है कि पुत्री का विवाह करने से पहले वर के सात गुण अवश्य परखे जाएँ –

आदौ कुलं परीक्षेत ततो विद्यां ततो वयं।
शीलं धनं ततो रूपं देशं पश्चाद्विवाहयेत्॥

अर्थात् –

  1. कुल – परिवार की पृष्ठभूमि, माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी का चरित्र व आचरण।
  2. विद्या (योग्यता) – शिक्षा, संस्कार, जीविका चलाने की क्षमता।
  3. वय (अवस्था) – आयु का संतुलन, बहुत अधिक अंतर न हो।
  4. शील – स्वभाव, धैर्य, मित्रता, सहनशीलता, गम्भीरता।
  5. धन – कमाने व बचाने की प्रवृत्ति, परिवार संभालने की आर्थिक क्षमता।
  6. रूप – स्वास्थ्य, कद-काठी, रंग-रूप, जो कन्या के अनुकूल हो।
  7. देश – वह स्थान जहाँ वर रहता है, उसका सामाजिक-सांस्कृतिक वातावरण।

👉 वहीं दूसरी ओर, विवाह-निर्णय में स्त्री-पुरुष और परिवार अलग-अलग दृष्टिकोण रखते हैं:

कन्या वरयते रूपं माता वित्तं पिता श्रुतम्।
बान्धवा: कुलमिच्छन्ति, मिष्टान्नमितरे जना:।।
  • कन्या – रूप देखती है।
  • माता – धन पर ध्यान देती है।
  • पिता – श्रुत (पद, प्रतिष्ठा, भौकाल) देखता है।
  • बंधु-बांधव – कुल (परिवार/वंश) को देखते हैं।
  • आमन्त्रित जन – पकवान/भोजन का मूल्यांकन करते हैं।
वर-वधु Selection की परंपरागत Kasautiyan vs Modern Mental Confusion
वर-वधु Selection की परंपरागत Kasautiyan vs Modern Mental Confusion



🔹 आधुनिक समय की विसंगति : मीडिया की कंडीशनिंग

फिल्मों और धारावाहिकों ने पिछले तीन दशकों में विवाह व प्रेम की कसौटियों को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया।

  1. फिल्म ‘डर’ (1993)

    • शाहरुख खान एक साइको-स्टॉकर की भूमिका में, जो ‘किरन’ नामक विवाहित स्त्री का पीछा करता है।
    • भारतीय नौसेना अधिकारी पति (सनी देओल) को मार देता है।
    • दर्शकों की सहानुभूति नायक (सैनिक) से हटकर खलनायक (स्टॉकर) को मिल जाती है।
    • संदेश : “पागलपन ही सच्चा प्यार है।”
  2. फिल्म ‘अंजाम’ (1994)

    • शाहरुख का किरदार एकतरफा प्रेम में एयरहोस्टेस शिवानी के परिवार का विनाश करता है।
    • पति, बहन, बेटी की हत्या; झूठे केस; जेलभेजना।
    • परन्तु अंत में वही स्त्री उसकी देखभाल करती है → स्टॉकहोम सिंड्रोम का महिमामंडन।
  3. फिल्म ‘बाजीगर’ (1992)

    • बदले के नाम पर भोलीभाली टीनएज लड़की को मार देना।
    • सहेलियों और परिवार का कत्ल।
    • फिर भी माँ की गोद में मरते हुए “बेचारा, बदले की आग का शिकार” बनकर दर्शकों की सहानुभूति पाना।

👉 निष्कर्ष :

ग्रे-शेड वाले, हिंसक, दबंग, दबाव डालने वाले पुरुष पात्रों को ‘हॉट’, ‘डैशिंग’, ‘पैशनेट लवर’ बताकर नायक बना दिया गया।
धीरे-धीरे यह कंडीशनिंग समाज की मानसिकता में बैठ गई कि –

  • पीछा करना = प्यार
  • धमकाना = पैशन
  • पजेसिवनेस = रोमांस
  • हिंसा = आकर्षण

🔹 सामाजिक परिणाम

  • 8वीं–10वीं की बच्चियाँ तक कहने लगीं – “इतना गुस्सैल है तो बैड में कितना हॉट होगा।”
  • लव जिहाद, स्टॉकिंग, एसिड अटैक जैसी घटनाओं को रोमांटिक जुनून का रूप दे दिया गया।
  • अंकिता जैसी मासूम बच्चियाँ एकतरफा जुनून की आग में जलकर राख हो गईं।
  • युवाओं की समझ गड़बड़ा गई कि सहमति ही प्रेम की पहली शर्त है।

🔹 माता-पिता की जिम्मेदारी

आज आवश्यक है कि अभिभावक अपने बच्चों से इस विषय पर सीधे और स्पष्ट संवाद करें:

  1. बेटियों से कहें

    • जो व्यक्ति आपकी इच्छा के विरुद्ध पीछा करता है, वह प्रेमी नहीं अपराधी है।
    • जबरन प्रेम जताना ‘एब्यूज’ है, ‘रोमांस’ नहीं।
  2. बेटों से कहें

    • अस्वीकृति (NO) का अर्थ है – No Means No.
    • प्रेम में अधिकार नहीं, सहमति ही सर्वोपरि है।
    • आक्रामकता, धमकी, हिंसा कभी आकर्षण का साधन नहीं।
  3. दोनों से कहें

    • किशोरावस्था का आकर्षण एक अस्थायी फेज है।
    • इसे ‘परिपक्व दोस्ती’ में बदलना ही स्वस्थ मार्ग है।
    • सच्चा प्रेम वही है जो सम्मान, स्वतंत्रता और सुरक्षा दे।

🔹 निष्कर्ष

शास्त्रों ने विवाह के लिए वर में सात गुण बताए, पर आधुनिक मीडिया ने ‘साइको-लवर’ को आदर्श बना दिया।
समाज और परिवार की जिम्मेदारी है कि बच्चों को यह समझाएँ कि –

👉 प्रेम का आधार सम्मान, सहमति और सुरक्षा है।
👉 हिंसा, पीछा करना, पजेसिवनेस – प्रेम नहीं, अपराध हैं।

यदि माता-पिता यह संवाद आज नहीं करेंगे तो कल कोई और ‘अंकिता’ निर्दोष होकर आग में झोंक दी जाएगी।

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