आध्यात्मिक दोहे: नारायण दास जी के उपदेश भावार्थ सहित | Adhyatmik Dohe with Meaning in Hindi
आध्यात्मिक दोहे (Adhyatmik Dohe) पढ़ें जिनमें नारायण दास जी ने जीवन का सार, हरिभजन का महत्व, सत्संग की महिमा और धन-यौवन की नश्वरता पर गहन उपदेश दिए हैं। हर दोहे का सरल भावार्थ भी प्रस्तुत है।
१. संत समागम और हरिकथा का महत्व
सन्त समागम हरिकथा, तुलसी दुर्लभ होय।
दारा सुत अरु लक्ष्मी, पापी के भी होय॥
भावार्थ:
संतों का सान्निध्य और भगवान की कथा सुनना बहुत ही दुर्लभ है। इसके विपरीत स्त्री, पुत्र और लक्ष्मी (धन) तो पापियों को भी मिल जाते हैं। इसलिए सच्चा सौभाग्य वही है जो हरिकथा और सत्संग के रूप में प्राप्त होता है।
२. आयु का क्षय और समय का सदुपयोग
बहुत गई थोरी रही, नारायण अब चेत।
काल चिरैया चुग रही, निसि दिन आयू खेत॥
भावार्थ:
जीवन का अधिकांश समय बीत चुका है, अब थोड़ी सी आयु शेष है। हे नारायण! अब तो चेत जाओ। समय रूपी चिरैया रात-दिन हमारी आयु रूपी खेत को चुग रही है।
३. धन और यौवन की नश्वरता
धन जोबन यों जायगो, या विधि उड़त कपूर।
नारायण गोपाल भज, क्यों चाटै जग धूर॥
भावार्थ:
धन और यौवन क्षणभर में उड़ जाते हैं, जैसे कपूर जलकर उड़ जाता है। इसलिए हे मनुष्य! क्यों व्यर्थ संसार की धूल चाटता है? तू गोपाल भगवान का भजन कर।
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आध्यात्मिक दोहे: नारायण दास जी के उपदेश भावार्थ सहित | Adhyatmik Dohe with Meaning in Hindi |
४. राजा-महाराजाओं का सत्य उदाहरण
नारायण संसार में, भूपत्ति भये अनेक।
मैं मेरी करते रहे, लै न गए तृन एक॥
भावार्थ:
इस संसार में असंख्य राजा-महाराजा हुए। वे सब ‘मेरा-मेरा’ कहते रहे, परंतु अंत समय कुछ भी साथ नहीं ले गए, यहाँ तक कि तिनका भी नहीं।
५. संसार और मन का शुद्धिकरण
तेरे भावैं जो करौ, भलौ बुरौ संसार।
नारायण तू बैठिकै, अपनौ भवन बुहार॥
भावार्थ:
यह संसार तेरे अनुसार चलता नहीं। यहाँ भला-बुरा सब कुछ होगा। इसलिए हे मनुष्य! तू संसार की चिंता छोड़, अपने मन-मंदिर (भवन) को स्वच्छ कर और हरि का स्मरण कर।
६. सत्संग और भजन की आवश्यकता
नारायण सत्संग कर, सीख भजन की रीत।
काम क्रोध मद लोभ में, गई आर्बल बीत॥
भावार्थ:
हे मनुष्य! सत्संग कर और हरिभजन की रीति सीख। क्योंकि तेरा अब तक का बहुमूल्य समय काम, क्रोध, मद और लोभ में व्यर्थ चला गया है।
७. वास्तविक बड़प्पन किसे कहते हैं?
धन विद्या गुण आयु बल, ये न बड़प्पन देत।
नारायण सोइ बड़ो, जाकों हरिसों हेत॥
भावार्थ:
धन, विद्या, गुण, आयु और बल – ये सब वास्तविक बड़प्पन नहीं देते। सच्चा महान वही है जिसके हृदय में भगवान हरि के प्रति सच्चा प्रेम है।
८. हरिभजन में देर क्यों नहीं करनी चाहिए
नारायण हरि भजन में, तू जनि देर लगाय।
का जाने या देर में, श्वासा रहै कि जाय॥
भावार्थ:
हे मनुष्य! भगवान का भजन करने में देर मत कर। कौन जाने, देर करते-करते प्राण श्वास रुक जाएँ और जीवन समाप्त हो जाए।
👉 इन दोहों में मुख्य शिक्षा है – जीवन नश्वर है, समय अमूल्य है, और सच्चा लाभ केवल हरिभजन और सत्संग से ही मिलता है।