Spoon and Wisdom Analogy in Sanskrit Shlok: संस्कृत श्लोक "यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा केवलं तु बहुश्रुतः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण

Sooraj Krishna Shastri
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Spoon and Wisdom Analogy in Sanskrit Shlok: संस्कृत श्लोक "यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा केवलं तु बहुश्रुतः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण

"यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा केवलं तु बहुश्रुतः – यह संस्कृत श्लोक हमें बताता है कि केवल शास्त्र पढ़ लेने से वास्तविक ज्ञान नहीं मिलता, बल्कि अपनी बुद्धि और विवेक का प्रयोग करना आवश्यक है। जैसे चमच (spoon) कभी भोजन का स्वाद नहीं जान पाती, वैसे ही बिना प्रज्ञा का मनुष्य शास्त्रार्थ को नहीं समझ सकता। इस श्लोक का हिन्दी अनुवाद, शब्दार्थ, व्याकरण विश्लेषण और आधुनिक जीवन में उपयोग यहाँ विस्तार से समझाया गया है।"

📜 श्लोक (देवनागरी)

यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा केवलं तु बहुश्रुतः ।
न स जानाति शास्त्रार्थं दर्वी सूपरसानिव ॥

🔤 अंग्रेज़ी ट्रान्सलिटरेशन (simple + IAST-style)

Simple:
yasya naasti svayam prajna kevalam tu bahushrutah |
na sa janati shastra-artham darvi soopa-rasan iva ||

IAST-style (approx.):
yasya nāsti svayaṃ prajñā kevalaṃ tu bahuśrutaḥ ।
na sa jānāti śāstra-ārthaṃ darvī sūpa-rasaān iva ॥

नोट: अंत पंक्ति का मुहावरा अर्थगत रूप से यही है — “जैसे कलछी/दरवी को उस पकवान का स्वाद पता नहीं चलता जिसे वह सर्व करते/हिलाती है” — इसलिए यहाँ शब्दों का संयोजन रूपक के लिए है।

🇮🇳 हिन्दी अनुवाद (सुस्पष्ट)

"जिसके पास अपनी स्वाभाविक प्रज्ञा (आत्मिक समझ, सोचने-समझने की शक्ति) नहीं है और जो केवल बहुश्रुत (पढ़ा-लिखा/कई बातें सुननेवाला) है, वह शास्त्रों का सार (शास्त्रार्थ) नहीं समझता — ठीक उसी प्रकार जैसे एक कलछी/चम्मच जिसे खाना हिलाने के लिए प्रयुक्त किया जाता है, उसे उस व्यंजन का स्वाद नहीं पता चलता।"

Spoon and Wisdom Analogy in Sanskrit Shlok: संस्कृत श्लोक "यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा केवलं तु बहुश्रुतः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
Spoon and Wisdom Analogy in Sanskrit Shlok: संस्कृत श्लोक "यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा केवलं तु बहुश्रुतः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण 


🪔 शब्दार्थ (मुख्य शब्दों का अर्थ)

  • यस्य — जिसका / जिसके पास (he who / of whom)
  • नास्ति — नहीं है / न हो (does not have)
  • स्वयं प्रज्ञा — स्व-प्रज्ञा = आत्म-ज्ञाना, वास्तविक समझ, आत्म-चेतना या विवेक
  • केवलं तु बहुश्रुतः — केवल बहुत सुनने/पढ़नेवाला (bookish, well-read only)
  • न स जानाति — वह जानता नहीं है
  • शास्त्रार्थं — शास्त्र का सार/अर्थ (meaning of scriptures/teaching)
  • दरवी (दर्वी) — कलछी/तवा/चम्मच (एक उपकरण जो भोजन हिलाता/परोसता है)
  • सूपरसानिव / सूप-रसा-अनिव — ‘सूप’ = व्यंजन/शोरबा, ‘रस’ = स्वाद; इवा = 'इव' मतलब ‘जैसे’ — अर्थात् "जैसे कलछी को व्यंजन का स्वाद न पता चले"।

📖 व्याकरणात्मक विश्लेषण (संक्षेप में)

  • यस्य नास्ति — 'यस्य' सम्बन्धवाचक सर्वनाम (जिसके पास), आगे 'नास्ति' क्रिया = न + अस्ति (न है)।
  • स्वयं प्रज्ञा — 'स्वयं' (स्वतः) + 'प्रज्ञा' (ज्ञान/विवेक) — यह कर्ता/अर्थसूचक है कि स्वयं-समझ न होना।
  • केवलं तु बहुश्रुतः — 'केवलं' (केवल), 'तु' (परन्तु), 'बहुश्रुतः' (वह जो बहुत सुनता/पढ़ता है — बहुश्रुत रूप से)।
  • न स जानाति शास्त्रार्थं — न + स (सः = वह) + जानाति (वर्तमान, 3rd person sing.) + शास्त्रार्थं (कर्म = शास्त्र का अर्थ)।
  • दरवी सूपरसानिव — उपमेया रूपक; 'दरवी' (कलछी) विभक्तिगत रूप से प्रयोग, 'इव' परिकल्पना = "मानो/जैसे" — उपमा द्वारा निष्कर्ष को दृश्यमान किया गया है।

➡ सार: वाक्य रचना साधारण सा-वाक्य है — पहले गुण (प्रज्ञा-नाभाव) का उल्लेख, फिर उसका नतीजा (शास्त्रार्थ न जाना), और अंत में रूपक (कलछी) से स्पष्टिकरण।

🌍 आधुनिक संदर्भ — कहाँ लागू होता है यह संदेश?

  1. rote learning vs understanding: आज की शिक्षा प्रणाली में बहुत पढ़ लिया/बहुत सुना लेकिन स्वतंत्र सोच/समझ न हो — वही छात्र “दरवी” जैसा है।
  2. religion & ritual: जो केवल श्लोक/पूजा रट ले पर उसका हृदय/चरित्र नहीं बदले — शास्त्रार्थ (आत्मिक सार) नहीं समझा।
  3. corporate / professional life: जो केवल SOPs/नीतियाँ पढ़ते हैं पर परिस्थिति में विवेकपूर्वक निर्णय नहीं ले पाते — ज्ञान व्यर्थ।
  4. social media era: जानकारी की बहुत भरमार (बहुश्रुत) पर वे लोग जिन्होंने उसकी जाँच, आत्मसात् या प्रयोग नहीं किया, वे सतही ज्ञान रखते हैं।

🗣 संवादात्मक नीति-कथा (संवादी उदाहरण)

शिष्य: "गुरुदेव, मैंने इतने ग्रन्थ पढ़ लिए, पर कुछ सार नहीं समझ आ रहा। क्या मुझमें कमी है?"
गुरु: "बेटे, बहुत पढ़ना अच्छा है, पर पढ़े का रस निकालना और उसे आत्मसात् करना बुद्धि है। याद रखना — कलछी जितनी भी भोजन हिलाए, उसे भोजन का स्वाद न पता चले; वैसा ही व्यष्टि जो केवल बहुश्रुत है पर स्वयं-प्रज्ञा से रहित है। पढ़ो, पर समझो; पढ़ो, तो प्रयोग करो; समझो, तो चरितार्थ करो।"

✅ निष्कर्ष (सार)

  • ज्ञान का मूल्य तभी है जब वह आत्म-प्रज्ञा (inner wisdom) से जुड़कर समझ और क्रिया में बदलता है।
  • केवल 'बहुश्रुत' होना (यानी बहुत सुनना/पढ़ना) बुद्धि का प्रमाण नहीं; असली बुद्धिमत्ता वह है जो शास्त्रों के अर्थ को आत्मिक रूप से ग्रहण कर सके और व्यवहार में उतारे।
  • उपमा (कलछी) स्पष्ट करती है: साधन (कलछी/शिक्षा) और अनुभव (स्वाद/प्रज्ञा) अलग हैं — दोनों का समन्वय आवश्यक है।

🛠️ Practical Takeaways — तत्काल लागू करने योग्य (5 सूत्र)

  1. रोट-रट परीक्षा-ज्ञान से आगे बढ़ो — पढ़ते समय हर पाठ का 'क्यों' और 'कैसे' पूछो।
  2. रिफ्लेक्ट करो (प्रतिदिन 10 मिनट) — पढ़े हुए का संक्षेप लिखो / किन स्थितियों में लागू होगा यह सोचो।
  3. सभी ज्ञान को लागू करो (teach to learn) — किसी को समझाकर बताओ; सिखाते समय असली समझ खुलती है।
  4. आत्मिक अभ्यास जोड़ो — ध्यान/मनन से अंदर की प्रज्ञा को उजागर करो; शास्त्रार्थ तभी स्पष्ट होता है।
  5. प्रयोगात्मक प्रयोग — सिद्धांत को वास्तविक जीवन के छोटे-छोटे प्रयोगों में आजमाओ।


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