संस्कृत श्लोक "उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
🌸🙏 जय श्रीराम 🌸 सुप्रभातम् 🌸
आपने गीता का अत्यंत प्रसिद्ध और प्रेरणादायक श्लोक प्रस्तुत किया है। यह भगवद्गीता, अध्याय 6 (ध्यानयोग), श्लोक 5 है। आइए इसे विस्तार से समझते हैं—
1. श्लोक
संस्कृत (देवनागरी):
उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसादयेत् ।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः ॥
IAST Transliteration (English):
uddhared ātmanātmānaṁ nātmānam avasādayet ।
ātmaiva hy ātmano bandhur ātmaiva ripur ātmanaḥ ॥
2. शाब्दिक अर्थ (Word-to-word meaning)
- उद्धरेत् = ऊपर उठाए, उद्धार करे
- आत्मना = अपने द्वारा (अपने मन से)
- आत्मानम् = स्वयं को, अपने आत्मा/मनुष्य को
- न अवसादयेत् = नीचे न गिराए, अधोगति में न डाले
- आत्मा एव = स्वयं ही
- हि = निश्चय ही
- आत्मनः बन्धुः = अपने लिए मित्र है
- आत्मा एव = स्वयं ही
- आत्मनः रिपुः = अपने लिए शत्रु है
3. हिन्दी अनुवाद (भावार्थ)
“मनुष्य को अपने द्वारा ही अपना उद्धार करना चाहिए और अपने को अधोगति में नहीं डालना चाहिए। क्योंकि मनुष्य स्वयं ही अपना मित्र है और स्वयं ही अपना शत्रु है।”
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संस्कृत श्लोक "उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण |
4. व्याकरणिक विश्लेषण
- उद्धरेत् – लोट् लकार (आज्ञार्थक), परस्मैपदी, प्रथमपुरुष एकवचन, धातु √धृ (धारण करना) उपसर्ग ‘उद्’।
- आत्मना – तृतीया एकवचन (करण कारक) “अपने द्वारा”।
- आत्मानम् – द्वितीया एकवचन (कर्म कारक) “अपने आप को”।
- अवसादयेत् – विधिलिङ्, परस्मैपदी, प्रथमपुरुष एकवचन, √सद् धातु (बैठना, गिरना) उपसर्ग ‘अव’।
- बन्धुः / रिपुः – प्रथमा एकवचन (कर्ता कारक) “मित्र/शत्रु”।
5. आधुनिक सन्दर्भ
यह श्लोक Self–Management और Mind–Control का मूल मंत्र है।
- आज की दुनिया में लोग अक्सर बाहरी मित्र और शत्रु ढूँढते हैं, जबकि असली मित्र या शत्रु हमारा मन और विचार ही हैं।
- यदि मन नियंत्रित हो → वही हमारा सबसे बड़ा सहायक है (Motivation, Discipline, Growth)।
- यदि मन अनियंत्रित हो → वही हमारा सबसे बड़ा शत्रु बन जाता है (Depression, Negativity, Laziness)।
- आधुनिक मनोविज्ञान भी कहता है: "You are your own best friend and your own worst enemy."
6. संवादात्मक नीति-कथा
कथा – “राजा और दो सैनिक”
एक बार एक राजा ने अपने दो सैनिकों को कहा—
“तुम दोनों मेरे लिए सबसे खतरनाक शत्रु और सबसे भरोसेमंद मित्र को खोजकर लाओ।”
पहला सैनिक बाहर गया और पड़ोसी राज्य का नाम लेकर आया।
दूसरा सैनिक बोला—“महाराज! मैंने खोज लिया। मेरा सबसे बड़ा शत्रु मेरा असंयमित मन है और सबसे बड़ा मित्र मेरा संयमित मन है।”
राजा मुस्कुराया और कहा—“वास्तव में यही गीता का उपदेश है। बाहर के शत्रु को जीतना कठिन नहीं, पर अपने मन को जीतना सबसे बड़ी विजय है।”
नीति: मनुष्य का उद्धार और पतन, दोनों उसी के मन पर निर्भर हैं।